भारत और अमेरिका की व्यापार वार्ता में भारत ने 10% बेसलाइन टैरिफ और 16% अतिरिक्त टैरिफ हटाने की मांग रखी है। दिल्ली में पांचवें राउंड में यह मुद्दा चर्चा का केंद्र है। जवाबी टैरिफ का विकल्प भी तल पर है।
US Baseline Tariff: भारत और अमेरिका के बीच व्यापार वार्ता एक निर्णायक मोड़ पर पहुंच चुकी है। केंद्र में है अमेरिका द्वारा आयात पर लगाए गए 10% बेसलाइन टैरिफ और 9 जुलाई से प्रस्तावित 16% अतिरिक्त शुल्क। भारत ने स्पष्ट कर दिया है कि अगर अमेरिका ने ये शुल्क नहीं हटाए, तो भारत भी अमेरिकी वस्तुओं पर जवाबी टैरिफ लागू करने को मजबूर होगा।
बेसलाइन टैरिफ क्या है और यह विवाद क्यों बना?
2 अप्रैल 2025 को ट्रंप प्रशासन ने सभी देशों से होने वाले आयात पर 10% बेसलाइन टैरिफ लागू किया था। इसका उद्देश्य अमेरिकी उद्योगों की सुरक्षा था, लेकिन इस फैसले का असर भारत जैसे साझेदार देशों पर भी पड़ा। भारत और अमेरिका के बीच व्यापारिक संबंध मजबूत रहे हैं, लेकिन इस टैरिफ के बाद व्यापार में असंतुलन देखने को मिला।
भारत की स्पष्ट मांग
भारत के वार्ताकारों ने साफ-साफ अमेरिका से कहा है कि वह सिर्फ 10% बेसलाइन टैरिफ ही नहीं, बल्कि 9 जुलाई से लागू होने वाले 16% अतिरिक्त टैरिफ को भी हटाए। भारत का तर्क है कि यह शुल्क ‘अनुचित’ और ‘एकतरफा’ हैं। अगर अमेरिका इन्हें जारी रखता है, तो भारत को भी 26% जवाबी टैरिफ जारी रखने का अधिकार है। एक अधिकारी ने कहा, "हम समानता के आधार पर बातचीत कर रहे हैं। हम नहीं चाहते कि केवल एक पक्ष को लाभ हो।"
दिल्ली में पांचवें दौर की बातचीत: गंभीरता से उठे मुद्दे
4 जून को अमेरिकी व्यापार प्रतिनिधि ब्रेंडन लिंच के नेतृत्व में एक उच्चस्तरीय प्रतिनिधिमंडल दिल्ली पहुंचा। यह दोनों देशों के बीच इस मुद्दे पर पांचवां राउंड है। पहले इसे सिर्फ दो दिन की यात्रा माना गया था, लेकिन अब यह 10 जून तक चलेगा, जो इस मुद्दे की गंभीरता को दर्शाता है।
भारतीय पक्ष ने वार्ता में बार-बार ज़ोर देकर कहा है कि किसी भी व्यापार समझौते की बुनियाद पारस्परिक लाभ, निष्पक्षता और जन स्वीकृति पर आधारित होनी चाहिए।
मोदी-ट्रंप की मुलाकात और 'मिशन 500' का लक्ष्य
13 फरवरी 2025 को वॉशिंगटन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के बीच हुई बैठक में दोनों नेताओं ने 'फेयर ट्रेड टर्म्स' और 'म्यूचुअली बेनिफिशियल डील' पर सहमति जताई थी।
इसी के तहत 'मिशन 500' की घोषणा हुई, जिसका लक्ष्य 2030 तक भारत-अमेरिका द्विपक्षीय व्यापार को 500 अरब डॉलर तक पहुंचाना है। लेकिन अगर टैरिफ जैसे मुद्दे बने रहे तो यह लक्ष्य मुश्किल हो सकता है।
ब्रिटेन-अमेरिका डील से भारत ने सबक लिया
भारत ने अमेरिका-UK डील का विश्लेषण किया है और साफ कह दिया है कि वह ऐसा मॉडल नहीं अपनाएगा, जिसमें टैरिफ जस का तस बना रहे। ब्रिटेन को ‘इकोनॉमिक प्रॉस्पेरिटी डील’ (EPD) के तहत कुछ व्यापारिक छूट मिली हैं, लेकिन 10% बेसलाइन टैरिफ अब भी लागू है। भारत नहीं चाहता कि वह भी इसी ढर्रे पर चले।
‘अर्ली हार्वेस्ट डील’ की तैयारी
दोनों देशों की कोशिश है कि 9 जुलाई से पहले एक प्रारंभिक समझौते यानी ‘Early Harvest Deal’ को अंतिम रूप दे दिया जाए। यह डील 16% अतिरिक्त शुल्क के प्रभाव से पहले राहत दे सकती है। इसके बाद सितंबर-अक्टूबर 2025 तक पूर्ण द्विपक्षीय व्यापार समझौते (BTA) को अंतिम रूप देने की योजना है।