महाराष्ट्र की राजनीति में उस वक्त हलचल मच गई जब केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने नांदेड़ की एक रैली में शिवसेना के संस्थापक बाल ठाकरे का हवाला देते हुए कहा कि अगर वह जीवित होते तो ‘ऑपरेशन सिंदूर’ की सफलता पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को गले लगा लेते।
मुंबई: केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने सोमवार, 26 मई, को महाराष्ट्र के नांदेड़ में एक जनसभा के दौरान शिवसेना (यूबीटी) पर तीखा हमला बोला। उन्होंने कहा कि अगर शिवसेना संस्थापक बालासाहेब ठाकरे आज जीवित होते, तो वे ‘ऑपरेशन सिंदूर’ की सफलता पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को गले लगा लेते। अमित शाह ने इस ऑपरेशन को भारत की आतंकवाद के खिलाफ एक ठोस और निर्णायक कार्रवाई करार दिया और कहा कि यह इस बात का प्रमाण है कि भारत अब आतंकवाद को उसकी भाषा में जवाब देने में सक्षम है।
उन्होंने बालासाहेब ठाकरे का हवाला देते हुए कहा कि वे हमेशा राष्ट्रवादी नीतियों और निर्णयों के पक्षधर रहे हैं, और अगर आज वे होते तो इस कार्रवाई को खुले दिल से समर्थन देते।
क्या था अमित शाह का बयान?
नांदेड़ में एक चुनावी जनसभा को संबोधित करते हुए शाह ने कहा, अगर बालासाहेब ठाकरे जीवित होते, तो वे ऑपरेशन सिंदूर की सफलता पर गर्व करते और नरेंद्र मोदी को गले लगाते। बालासाहेब हमेशा राष्ट्रवाद और आतंकवाद विरोधी कार्रवाई के पक्ष में खड़े रहते थे। ऑपरेशन सिंदूर भारत की संप्रभुता और सुरक्षा को लेकर हमारी प्रतिबद्धता का प्रतीक है।
शाह ने उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली शिवसेना-यूबीटी पर हमला बोलते हुए कहा कि ये पार्टी अब ऐसे मुद्दों का मज़ाक बना रही है जिनमें देश की एकता और सुरक्षा दांव पर है। उन्होंने कहा, सात सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल पाकिस्तान के खिलाफ भारत की कूटनीतिक स्थिति को मजबूत करने गए, लेकिन इसे ‘बारात’ कहा गया। यह दुर्भाग्यपूर्ण है।
शिवसेना-यूबीटी ने दिया करारा जवाब
शाह के इस बयान से तिलमिलाई शिवसेना (उद्धव बालासाहेब ठाकरे) ने पलटवार किया। पार्टी के नेता और विधान परिषद में विपक्ष के नेता अंबादास दानवे ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स (पूर्व ट्विटर) पर तीखी प्रतिक्रिया दी। उन्होंने लिखा, बालासाहेब ठाकरे ऐसे लोगों को अपने दरवाज़े पर भी खड़ा न होने देते, जिन्होंने उनकी बनाई शिवसेना को ही धोखा दिया है।
दानवे ने कटाक्ष करते हुए कहा, अगर बालासाहेब आज होते तो पूछते कि उस हमले में शामिल छह आतंकवादियों का क्या हुआ, जिन्होंने हिन्दुओं की पहचान कर उन्हें मौत के घाट उतारा? क्या उन्होंने अपने किए की सज़ा पाई?
संघर्षविराम पर उठाए सवाल
अंबादास दानवे ने यह भी सवाल खड़े किए कि जब पूरा देश आतंकवादी हमले के खिलाफ एकजुट था, तब पाकिस्तान के साथ संघर्षविराम की घोषणा का दबाव किसने डाला? उन्होंने आरोप लगाया कि सरकार एक तरफ राष्ट्रवाद की बात करती है, दूसरी ओर कूटनीति के नाम पर झुक जाती है। शिवसेना-यूबीटी के कई नेताओं ने यह सवाल उठाया कि भाजपा को हर बार बाल ठाकरे का नाम सिर्फ चुनावों के दौरान क्यों याद आता है? क्या भाजपा वाकई में उनके विचारों की कद्र करती है, या सिर्फ चुनावी लाभ के लिए उन्हें उद्धृत करती है?
राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि बालासाहेब ठाकरे के नाम पर राजनीति करना महाराष्ट्र की राजनीति में नया नहीं है, लेकिन भाजपा और शिवसेना-यूबीटी के बीच बढ़ती तल्खी इस बार साफ दिखाई दे रही है। अमित शाह का बयान भले ही राष्ट्रवाद को उभारने की रणनीति हो, लेकिन शिवसेना-यूबीटी इसे अपनी पार्टी और संस्थापक की छवि पर हमला मान रही है।