बिहार के सांसदों ने एक महत्वपूर्ण कदम उठाते हुए, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से सोन नदी पर कदवन डैम बनाने और नहरों के आधुनिकीकरण की मांग की है। उनका कहना है कि इंद्रपुरी बराज से मिलने वाला पानी पर्याप्त नहीं है और इसके कारण राज्य के कई क्षेत्रों में सिंचाई की समस्या लगातार बढ़ रही है। सांसदों ने इस मुद्दे को प्रधानमंत्री के ध्यान में लाने के लिए पीएमओ में ज्ञापन सौंपा और इसके समाधान के लिए जरूरी कदम उठाने की अपील की हैं।
सोन नदी और नहरों का महत्व
बिहार के रोहतास, औरंगाबाद, अरवल, भोजपुर, पटना, कैमूर, बक्सर और गया जिलों में स्थित सोन नहर, जिसे बिहार का "धान का कटोरा" भी कहा जाता है, इन क्षेत्रों की कृषि के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। यह क्षेत्र देश के बहुफसली क्षेत्रों में से एक है, लेकिन सिंचाई के लिए आवश्यक पानी की कमी के कारण नहर हर साल सूख जाती है। इसका सीधा असर किसानों की कृषि उपज पर पड़ता है, जो इस नहर पर पूरी तरह निर्भर होते हैं।
समस्या का समाधान जलाशय और नहरों का आधुनिकीकरण
सांसदों ने ज्ञापन में यह स्पष्ट किया कि सोन नदी पर इंद्रपुरी जलाशय का निर्माण और नहरों का आधुनिकीकरण ही इस समस्या का स्थायी समाधान हो सकता है। भाकपा (माले) लिबरेशन के सांसद राजा राम सिंह और सुदामा प्रसाद, कांग्रेस सांसद मनोज कुमार, और राजद सांसद सुरेंद्र प्रसाद यादव एवं सुधाकर सिंह ने इस महत्वपूर्ण मुद्दे को उठाते हुए प्रधानमंत्री के नाम ज्ञापन पीएमओ के अधिकारियों को सौंपा।
इतिहासिक सोन नहरें और उनका बिगड़ता हाल
सोन नहरों का इतिहास काफी पुराना है, और इनका निर्माण 1874 में हुआ था। हालांकि, अब इन नहरों की हालत बहुत खराब हो चुकी है। इंद्रपुरी बराज से मिलने वाला पानी पर्याप्त नहीं है और इस कारण नहरों में पानी की आपूर्ति में भारी कमी आ गई है। सांसदों ने अपनी मांग में कहा है कि अगर जल्द ही इंद्रपुरी डैम का निर्माण नहीं होता और नहरों का आधुनिकीकरण नहीं किया जाता, तो यह क्षेत्र कृषि संकट का सामना करेगा।
इंद्रपुरी जलाशय का लंबित शिलान्यास
इंद्रपुरी जलाशय का शिलान्यास 1990 में बिहार के तत्कालीन मुख्यमंत्री ने किया था, लेकिन आज तक यह परियोजना पूरी नहीं हो सकी है। सांसदों ने इस बात पर जोर दिया कि इंद्रपुरी डैम का निर्माण न केवल बिहार के सिंचाई संकट को हल करेगा, बल्कि इस क्षेत्र में कृषि के विकास में भी मदद करेगा।
सांसदों ने की बैठक की मांग
भाकपा (माले) लिबरेशन ने एक बयान जारी करते हुए बताया कि सांसदों ने प्रधानमंत्री से इस मुद्दे पर बैठक करने की भी मांग की थी, लेकिन 40 मिनट तक इंतजार करने के बावजूद यह बैठक संभव नहीं हो सकी। हालांकि, उन्होंने कहा कि वे इस मामले को लेकर निरंतर प्रयास करेंगे और किसी भी तरह से प्रधानमंत्री से इस मुद्दे पर बैठक का समय प्राप्त करने का प्रयास जारी रखेंगे।
आखिरकार क्या होगा समाधान?
बिहार के सांसदों द्वारा उठाया गया यह मुद्दा न केवल राज्य की कृषि को बचाने का सवाल है, बल्कि यह एक गंभीर पर्यावरणीय संकट से भी जुड़ा हुआ है। अगर जल्द ही इस समस्या का समाधान नहीं निकाला गया, तो यह न सिर्फ बिहार के किसानों, बल्कि राज्य की अर्थव्यवस्था के लिए भी एक बड़ा संकट साबित हो सकता है। ऐसे में सांसदों की यह कोशिश इस दिशा में एक सकारात्मक कदम हो सकती है, लेकिन इसके लिए जरूरी है कि केंद्र सरकार और राज्य सरकार मिलकर इस मुद्दे पर गंभीरता से काम करें और जलाशय निर्माण और नहरों के आधुनिकीकरण को प्राथमिकता दें।