Haryana Election 2024: क्या आंतरिक कलह और ओवर कॉन्फिडेंस बना कांग्रेस की हार का कारण? जानें हार के 5 बड़े कारण

Haryana Election 2024: क्या आंतरिक कलह और ओवर कॉन्फिडेंस बना कांग्रेस की हार का कारण? जानें हार के 5 बड़े कारण
Last Updated: 6 घंटा पहले

हरियाणा विधानसभा चुनाव 2024 के नतीजे अब लगभग स्पष्ट हो गए हैं, जिसमें भाजपा ने लगातार तीसरी बार सरकार बनाने में सफलता प्राप्त की है। इस बार कांग्रेस के लिए चुनाव में कई चुनौतियाँ रही, जिसके चलते उन्हें अपेक्षित परिणाम नहीं मिल सके।

चंडीगढ़: हरियाणा विधानसभा चुनाव 2024 के परिणाम लगभग स्पष्ट हो गए हैं, जिसमें भारतीय जनता पार्टी लगातार तीसरी बार बहुमत हासिल करती हुई नजर रही है। यह पहली बार है जब हरियाणा में एक ही पार्टी लगातार तीन बार सत्ता में आई है। चुनाव से पहले सभी ओपिनियन और एग्जिट पोल में कांग्रेस को आसान जीत का दावा किया गया था, लेकिन वास्तविक परिणाम इसके विपरीत आए हैं। इस असफलता ने कांग्रेस के नेताओं में चिंता पैदा कर दी है, और सभी यह चर्चा कर रहे हैं कि आखिर पार्टी ने इस चुनाव में कहां चूक की। आइए, जानते हैं कुछ प्रमुख कारणों के बारे में जिन्होंने हरियाणा में कांग्रेस को बैकफुट पर ला दिया।

1. पार्टी में आंतरिक कलह

चुनाव शुरू होने के आखिरी तक कांग्रेस पार्टी आंतरिक कलह से जूझती रही। पार्टी के भीतर भूपेंद्र हुड्डा, कुमारी शैलजा और रणदीप सुरजेवाला जैसे कई गुटों के बीच मतभेद उभरकर सामने आए। इस स्थिति ने पार्टी की एकजुटता को कमजोर किया और चुनावी रणनीति पर नकारात्मक प्रभाव डाला। कुमारी शैलजा और रणदीप सुरजेवाला ने चुनाव प्रचार को शुरू करने में काफी देरी की, जिससे चुनावी माहौल में कांग्रेस की उपस्थिति कमजोर पड़ी। इस सब के बीच, राहुल गांधी को रैलियों में भूपेंद्र हुड्डा और कुमारी शैलजा का हाथ मिलवाते हुए दिखाया गया, जो यह दर्शाता है कि पार्टी नेतृत्व भी आंतरिक संघर्ष को दूर करने में विफल रहा।

2. केवल भूपेंद्र हुड्डा पर पूरा भरोसा जताना

हरियाणा विधानसभा चुनाव 2024 में कांग्रेस पूरी तरह से भूपेंद्र हुड्डा पर निर्भर होती दिखाई दी। टिकट बंटवारे से लेकर चुनाव प्रचार तक, हुड्डा का वर्चस्व स्पष्ट था। जब कांग्रेस ने विधानसभा चुनाव के लिए टिकट बांटने का फैसला किया, तो इसमें ज्यादातर टिकट हुड्डा गुट के विधायकों को दिए गए। इस एकतरफा टिकट वितरण ने अन्य गुटों में असंतोष पैदा किया और पार्टी में एकता को कमजोर किया। भूपेंद्र हुड्डा की अगुवाई में चुनावी रणनीति बनाने के कारण, कांग्रेस ने समग्र दृष्टिकोण से विभिन्न मुद्दों पर अपनी बात रखने का मौका खो दिया। इसके चलते अन्य नेताओं की आवाज दब गई, जिससे पार्टी की चुनावी संभावनाएं और भी प्रभावित हुईं।

3. पहलवानों पर राजनीतिक करना

कांग्रेस को हरियाणा विधानसभा चुनाव में पहलवानों के आंदोलन को राजनीतिक बनाने की कोशिश भी भारी पड़ गई। पहलवानों का यह आंदोलन, जिसे शुरू में लोगों की व्यापक हमदर्दी मिल रही थी, कांग्रेस की एंट्री के बाद राजनीतिक रंग में बदल गया। कांग्रेस ने इस आंदोलन का फायदा उठाने की कोशिश करते हुए विनेश फोगाट और बजरंग पूनिया जैसे प्रमुख पहलवानों को पार्टी में शामिल किया।

हालांकि, इस कदम ने पार्टी की छवि पर नकारात्मक प्रभाव डाला। लोगों ने यह आरोप लगाया कि कांग्रेस इस आंदोलन को राजनीतिक स्वार्थ के लिए भुना रही है। इससे पहलवानों के आंदोलन की प्रामाणिकता पर सवाल उठने लगे और समर्थकों में असंतोष बढ़ गया। ऐसे में, कांग्रेस की यह रणनीति केवल पहलवानों के आंदोलन को कमजोर करने में सहायक सिद्ध हुई, बल्कि पार्टी की चुनावी स्थिति को भी नुकसान पहुंचाया।

4. पार्टी में जीत का ओवर कॉन्फिडेंस

लोकसभा चुनाव 2024 में कांग्रेस पार्टी ने 2014 और 2019 के मुकाबले काफी बेहतर प्रदर्शन किया, और हरियाणा की 10 में से 5 सीटें भी जीतीं। हालांकि, इस जीत के बाद ऐसा प्रतीत हुआ जैसे कांग्रेस ओवर कॉन्फिडेंस में गई। पार्टी ने भाजपा को कमजोर समझने की भूल की, जिससे उसे विधानसभा चुनाव परिणाम में गंभीर खामियाजा भुगतना पड़ा।

कांग्रेस ने यह उम्मीद जताई कि लोकसभा चुनाव की सफलता उनके लिए विधानसभा चुनाव में भी फायदेमंद साबित होगी, लेकिन यह एक गलत आकलन था। भाजपा ने चुनावी मैदान में अपनी मजबूत स्थिति बनाए रखी और कांग्रेस के आत्मविश्वास का फायदा उठाया। इससे कांग्रेस की रणनीतियों में खामियां रहीं और चुनाव के परिणाम उनकी आशाओं के विपरीत आए। पार्टी को यह समझने की आवश्यकता थी कि हर चुनाव का अपना अलग समीकरण होता है और सफलताओं के आधार पर आत्मसंतुष्ट होना कभी-कभी हानिकारक साबित हो सकता हैं।

5. केवल जाति और आरक्षण का मुद्दा

हरियाणा में कांग्रेस और राहुल गांधी का पूरा चुनावी कैंपेन जाति और आरक्षण के इर्द-गिर्द ही घूमता रहा। इसके विपरीत, भाजपा ने अपने 10 साल के कार्यकाल के दौरान की उपलब्धियों को लेकर प्रचार किया, जिससे मतदाताओं के सामने एक ठोस विकल्प प्रस्तुत किया। भाजपा ने कांग्रेस की पूर्ववर्ती सरकार की नीतियों पर भी कटाक्ष किया, जो कांग्रेस के लिए चुनावी माहौल को और भी चुनौतीपूर्ण बना गया।

भाजपा ने राहुल गांधी द्वारा अमेरिका में आरक्षण खत्म करने के मुद्दे को भी प्रमुखता से उठाया, जिससे उनके विरोधियों को एक नया हथियार मिला। यह मुद्दा मतदाताओं के बीच बहस का कारण बना और कांग्रेस के लिए एक बड़ा राजनीतिक बोझ बन गया। कांग्रेस का मुख्य फोकस जाति और आरक्षण पर था, जबकि भाजपा ने विकास, सुशासन और अपने पिछले कार्यकाल की उपलब्धियों को प्रचारित किया, जिससे उन्हें चुनावी लाभ मिला। इस प्रकार, कांग्रेस की रणनीतियों में स्पष्टता और व्यापक दृष्टिकोण की कमी ने पार्टी के लिए परिणामों को निराशाजनक बना दिया।

 

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