Haryana Elections 2024: हरियाणा चुनाव में भाजपा -कांग्रेस के सामने आई बड़ी चुनौती, सावित्री जिंदल और कमल गुप्ता के बीच होगा दिलचस्प मुकाबला

Haryana Elections 2024: हरियाणा चुनाव में भाजपा -कांग्रेस के सामने आई बड़ी चुनौती, सावित्री जिंदल और कमल गुप्ता के बीच होगा दिलचस्प मुकाबला
Last Updated: 20 सितंबर 2024

हिसार विधानसभा क्षेत्र प्रदेश की एक महत्वपूर्ण हॉट सीट है, जहां चुनावी मुकाबला बेहद दिलचस्प होने वाला है। एक ओर भाजपा के डॉ.कमल गुप्ता चुनावी मैदान में हैं, वहीं उन्हें चुनौती देने के लिए देश की सबसे अमीर महिला, सावित्री जिंदल, निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में ताल ठोक रही हैं। इसके अलावा, कांग्रेस के रामनिवास टांडा और गौतम सरदाना भी जबरदस्त टक्कर देने के लिए पूरी तैयारी में हैं।

Hisar Assembly Seat: वर्ष 1354 में मुगल शासक फिरोजशाह तुगलक द्वारा निर्मित किला अब राज्य के 15वें विधानसभा चुनावों में एक महत्वपूर्ण चुनावी केंद्र बन गया है। इससे पहले भी इसे कई बार यह प्रतिष्ठा प्राप्त हो चुकी है। केवल देश में, बल्कि एशिया की सबसे धनी महिला सावित्री जिंदल यहां से निर्दलीय चुनावी मैदान में उतर रही हैं।

इसके अलावा, भाजपा के निवर्तमान स्वास्थ्य मंत्री डॉक्टर कमल गुप्ता और कांग्रेस के रामनिवास राड़ा भी चुनावी जंग में शामिल हैं। भाजपा के पूर्व मेयर गौतम सरदाना और पूर्व जिला उपाध्यक्ष तरुण जैन भी निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में मुकाबला कर रहे हैं। यहां निर्दलीय उम्मीदवारों की मजबूत स्थिति पार्टी के प्रत्याशियों के लिए चुनौतीपूर्ण साबित हो सकती है।

47 साल पहले निर्दलीय चुनाव में उतरे थे जिंदल

जिंदल परिवार का हिसार विधानसभा सीट पर एक मजबूत वर्चस्व रहा है। 1968 में, जिंदल परिवार के ओम प्रकाश जिंदल ने इस सीट पर पहला चुनाव लड़ा था। 1977 में वे निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में चुनावी मैदान में उतरे थे। अब, सावित्री जिंदल भी निर्दलीय चुनाव में अपनी किस्मत आजमा रही हैं, और वह इसे अपना आखिरी चुनाव मान रही हैं।

तीन समाज के प्रत्याशियों में दिलचस्प मुकाबला

इस क्षेत्र में वैश्य और पंजाबी समाज का वोट बैंक सबसे अधिक महत्वपूर्ण है। इसके बाद सैनी समाज का वोट बैंक आता है। वैश्य समाज से मुख्य रूप से तीन प्रत्याशी चुनावी लड़ाई में हैं, जबकि पंजाबी समाज से पूर्व मेयर और सैनी समाज से कांग्रेस पार्टी के उम्मीदवार चुनावी मैदान में मौजूद हैं।

कमल गुप्ता और सावित्री जिंदल: दो बार विधायक बने

डॉ.कमल गुप्ता ने 2014 में सावित्री जिंदल को हराकर पहली बार विधायक बनने का गौरव हासिल किया। इसके बाद, डॉ. कमल गुप्ता 2019 में फिर से विधायक बने और मंत्री पद पर भी रहे। वहीं, सावित्री जिंदल ने 2005 में ओम प्रकाश जिंदल के निधन के बाद राजनीति में कदम रखा और उन्होंने दो बार विधायक और मंत्री के रूप में कार्य किया। 2014 में चुनाव हारने के बाद, वह दस साल तक राजनीति से दूर रहीं।

कांग्रेस और भाजपा की जीत का आंकड़ा

कांग्रेस ने इस क्षेत्र से छह बार जीत हासिल की है, जिसमें से चार बार जिंदल परिवार का सदस्य विधायक बना। हाल के दो चुनावों में भाजपा के प्रत्याशी ने विजय प्राप्त की है। यहां वैश्य, पंजाबी और सैनी समाज के नेताओं का प्रमुख रूप से कब्जा रहा है।

रामनिवास राड़ा की चुनौती

कांग्रेस के टिकट पर चुनाव में उतरे रामनिवास राड़ा के सामने उनके अपने समाज से ही बड़ी चुनौती उत्पन्न हो रही है, क्योंकि उनके समाज के कई लोग उनका समर्थन करने को तैयार नहीं हैं। वहीं, भाजपा ने सैनी समाज से मुख्यमंत्री होने के कारण अपनी स्थिति मजबूत की है।

सरदाना के लोगों में नाराजगी

भाजपा से मेयर रहने के पांच साल बाद गौतम सरदाना अपनी छाप छोड़ने में पूरी तरह सफल नहीं हो पाए हैं। लोग उनके कामकाज पर सवाल उठा रहे हैं, और पंजाबी समाज भी विभाजित हो चुका है। पर्याप्त कार्य करने के कारण मतदाताओं में नाराजगी देखी जा रही है।

डॉ.कमल गुप्ता: अपनी पार्टी के नेता बनने के लिए मिली चुनौती

पूर्व विधायक और पूर्व मंत्री डॉ.कमल गुप्ता को अपनी पार्टी से निर्दलीय खड़े हुए तीन प्रत्याशियों का सामना करना पड़ रहा है। सावित्री जिंदल सहित अन्य नेताओं के प्रवेश के बाद वैश्य समाज में मतभेद उत्पन्न हो गए हैं। इसके अलावा, पूर्व राज्यसभा सदस्य सुभाष चंद्रा भी उनसे दूरी बना रहे हैं। इस कारण, 2014 के चुनावों में डॉ.कमल गुप्ता, सावित्री जिंदल और गौतम सरदाना आमने-सामने थे। उस समय तीनों ने विभिन्न पार्टियों से चुनाव लड़ा था। इस बार, डॉ. कमल गुप्ता भाजपा से और अन्य दोनों निर्दलीय प्रत्याशियों के रूप में मैदान में हैं। कांग्रेस ने भी जातिगत समीकरणों को ध्यान में रखते हुए अपना प्रत्याशी उतारा है।

सावित्री: 10 सालों तक रहीं दूर

सावित्री जिंदल के 10 सालों तक राजनीति से दूर रहने के कारण उनके समर्थक भी उनसे दूर हो गए थे। वह निर्दलीय हैं, लेकिन अभी भी काफी कार्यकर्ता कांग्रेस या भाजपा से जुड़े हुए हैं। इसके साथ ही, वैश्य समाज का वोट बैंक भी बंट गया है, और पंजाबी समाज का वोट बैंक अपने दूसरे प्रत्याशी की तरफ देख रहा है।

 

 

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