हरियाणा चुनाव में कांग्रेस को हुड्डा की अहमियत समझनी होगी: सैलजा को मनाना बनी चुनौती, राहुल गांधी करेंगे प्रचार

हरियाणा चुनाव में कांग्रेस को हुड्डा की अहमियत समझनी होगी: सैलजा को मनाना बनी चुनौती, राहुल गांधी करेंगे प्रचार
Last Updated: 1 दिन पहले

हरियाणा चुनाव 2024: हरियाणा में कांग्रेस भूपेंद्र हुड्डा को नजरअंदाज नहीं कर सकती। क्योंकि हुड्डा ने लोकसभा चुनाव में 5 सीटों पर जीत हासिल कर अपनी ताकत साबित की है। यदि कांग्रेस को

विधानसभा चुनाव में सत्ता में वापसी करनी है, तो उसे हुड्डा की राय पर ध्यान देना होगा। कुमारी सैलजा इस समय नाराज चल रही हैं, और राहुल गांधी ने हुड्डा से परामर्श करके सैलजा को मनाने की कोशिश की है।

कांग्रेस की मजबूरी, हुड्डा की अहमियत और सैलजा का मनाना

अनुराग अग्रवाल, चंडीगढ़। हरियाणा में कांग्रेस भले ही आंतरिक कलह से जूझ रही हो, लेकिन पार्टी को पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा की अनदेखी नहीं करनी चाहिए। नौ लोकसभा सीटों में से पांच पर जीत हासिल कर कांग्रेस ने हाईकमान को स्पष्ट संदेश दिया है कि हुड्डा के बिना राज्य में सत्ता में लौटने की संभावनाएं कम हैं।

इसी कारण कांग्रेस ने कुछ समय तक नाराज सांसद कुमारी सैलजा को मनाने का प्रयास नहीं किया, लेकिन दलित वर्ग का समर्थन जीतने की रणनीति के चलते सैलजा को मनाना पार्टी के लिए एक मजबूरी बन गई।

भूपेंद्र सिंह हुड्डा के साथ चर्चा के बाद ही राहुल गांधी ने सैलजा को मनाने में रुचि दिखाई है। हुड्डा इस बात पर स्पष्ट हैं कि जब राज्य में कांग्रेस को बहुमत मिलेगा और विधायकों द्वारा नेता चुनने की प्रक्रिया होगी, तो उस समय नंबर गेम महत्वपूर्ण साबित होगा।

हुड्डा के बिना वैतरणी पार करना मुश्किल

72 सीटों पर भूपेंद्र सिंह हुड्डा समर्थकों को टिकट दिया गया है, जबकि कुमारी सैलजा समर्थकों को केवल 10 सीटों पर टिकट मिले हैं। इसके अलावा, रणदीप सुरजेवाला को दो टिकट और कांग्रेस हाईकमान ने अपनी मर्जी से चार से पांच टिकट दिए हैं। लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को करीब 44 प्रतिशत वोट मिले हैं।

कांग्रेस हाईकमान यह समझ चुका है कि बिना हुड्डा के चेहरे के हरियाणा में चुनावी वैतरणी पार करना मुश्किल होगा। इसकी एक वजह यह है कि हुड्डा का जाटों के साथ-साथ दलितों, ब्राह्मणों, वैश्यों, पंजाबियों और ओबीसी में भी मजबूत प्रभाव है।

हालांकि, विघटन की आशंका के चलते पार्टी ने अभी तक हुड्डा को चुनाव पूर्व सीएम का चेहरा घोषित करने का जोखिम नहीं लिया है। कांग्रेस के सामने कई राज्यों के उदाहरण हैं, जहां पार्टी से ज्यादा चेहरों को वोट मिले और वही चेहरे सत्ता में आने में सफल रहे हैं।

सैलजा, राहुल गांधी के साथ मंच साझा करेंगी

कांग्रेस के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी वीरवार को करनाल के असंध और हिसार के बरवाला में चुनावी रैलियों को संबोधित करेंगे। चुनाव प्रचार से 12 दिनों तक दूर रहने वाली कांग्रेस महासचिव और सिरसा की सांसद कुमारी सैलजा असंध में राहुल गांधी के साथ मंच साझा करेंगी। मंगलवार को उनका जन्मदिन था और बुधवार को उन्होंने चुनाव प्रचार के कार्यक्रमों को अंतिम रूप दिया।

कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने सैलजा को उनके जन्मदिन पर केक खिलाने की एक तस्वीर इंटरनेट पर वायरल हुई, जिसमें सैलजा संतुष्ट नजर आ रही हैं। सैलजा ने 13 सितंबर को अंतिम बार सार्वजनिक कार्यक्रम में भाग लिया था। बीती रात राहुल गांधी का फोन आने के बाद उन्होंने खरगे से मुलाकात की।

शमशेर गोगी सैलजा के समर्थक हैं, और इसके बाद वह टोहाना और हिसार में जनसभाओं को संबोधित करेंगी। हालांकि, सैलजा द्वारा जारी कार्यक्रम में बरवाला रैली में भाग लेने का उल्लेख नहीं किया गया है, जहां हुड्डा समर्थकों द्वारा रैली का आयोजन किया जा रहा है, और इसमें सैलजा की भागीदारी पर संशय बना हुआ है।

कांग्रेस महाराष्ट्र-बंगाल की गलतियाँ नहीं दोहराएगी

कांग्रेस के रणनीतिकारों का मानना है कि काडर बेस्ड पार्टियों, जैसे भाजपा और माकपा, ने अपने चेहरों के जरिए सफलताएँ हासिल की हैं। भाजपा में अटल बिहारी वाजपेयी और नरेंद्र मोदी, जबकि माकपा में ज्योति बसु और बुद्धदेब भट्टाचार्य इसके उदाहरण हैं। इन दोनों नेताओं के नेतृत्व में कम्युनिस्ट पार्टियों ने 33 वर्षों तक बंगाल पर राज किया।

हालांकि, बसु और भट्टाचार्य के बाद कम्युनिस्ट पार्टी का एक भी विधायक नहीं बचा। भूपेंद्र सिंह हुड्डा एक ऐसा चेहरा हैं, जिनके पीछे एक बड़ा वोट बैंक है, और उन्होंने पूर्व उप प्रधानमंत्री देवीलाल को भी चुनाव में हराया है।

महाराष्ट्र और बंगाल में कांग्रेस कमजोर पड़ी है, क्योंकि वहाँ पवार और ममता बनर्जी का कोई सशक्त चेहरा नहीं रहा। कांग्रेस इस बार अपनी पुरानी गलतियों को नहीं दोहराने का मन बना चुकी है।

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