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इसरो के पूर्व अध्यक्ष डॉ. कृष्णास्वामी कस्तूरीरंगन का निधन, जानें भारतीय अंतरिक्ष विज्ञान में उनका योगदान

इसरो के पूर्व अध्यक्ष डॉ. कृष्णास्वामी कस्तूरीरंगन का निधन, जानें भारतीय अंतरिक्ष विज्ञान में उनका योगदान
अंतिम अपडेट: 5 घंटा पहले

भारतीय अंतरिक्ष विज्ञान के दिग्गज और भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) के पूर्व अध्यक्ष कृष्णस्वामी कस्तूरीरंगन का शुक्रवार को बेंगलुरु में निधन हो गया। वह 84 वर्ष के थे और उन्होंने बेंगलुरु स्थित अपने आवास पर अंतिम सांस ली।

बेंगलुरु: भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के पूर्व अध्यक्ष और प्रतिष्ठित स्पेस साइंटिस्ट डॉ. कृष्णास्वामी कस्तूरीरंगन का शुक्रवार को बेंगलुरु में निधन हो गया। वह 84 वर्ष के थे और अपने निवास स्थान पर सुबह लगभग 10 बजे उन्होंने अंतिम सांस ली। उनका निधन भारतीय वैज्ञानिक समुदाय के लिए एक अपूरणीय क्षति है। रविवार को उनके पार्थिव शरीर को रमन रिसर्च इंस्टीट्यूट में अंतिम दर्शन के लिए रखा जाएगा, जिसके बाद उनका अंतिम संस्कार किया जाएगा।

भारतीय अंतरिक्ष क्षेत्र को मिली नई दिशा

डॉ. कस्तूरीरंगन का जीवन भारतीय अंतरिक्ष विज्ञान के क्षेत्र में एक मील का पत्थर रहा है। उन्होंने 1994 से 2003 तक इसरो के अध्यक्ष के रूप में कार्य किया और भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम को नई ऊंचाइयों तक पहुंचाया। उनका कार्यकाल इसरो के लिए अत्यंत सफल रहा, जिसमें कई ऐतिहासिक उपग्रहों का प्रक्षेपण और महत्त्वपूर्ण तकनीकी सफलताएं शामिल हैं। उनकी नेतृत्व क्षमता और वैज्ञानिक दृष्टिकोण ने भारत को वैश्विक अंतरिक्ष क्षेत्र में एक प्रमुख ताकत के रूप में स्थापित किया।

डॉ. कस्तूरीरंगन के मार्गदर्शन में इसरो ने कई महत्वपूर्ण मील के पत्थर हासिल किए। विशेष रूप से, उन्होंने भारतीय ध्रुवीय उपग्रह प्रक्षेपण यान (PSLV) के सफल प्रक्षेपण और संचालन को सुनिश्चित किया, जो आज भी भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम की रीढ़ है। इसके अलावा, जियोसिंक्रोनस सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल (GSLV) के पहले सफल उड़ान परीक्षण की देखरेख भी डॉ. कस्तूरीरंगन ने की, जो इसरो के लिए एक महत्वपूर्ण उपलब्धि थी।

उपग्रह विकास में योगदान

डॉ. कस्तूरीरंगन के कार्यकाल में भारत ने कई महत्वपूर्ण उपग्रहों का विकास किया, जिनमें आईआरएस-1सी और आईआरएस-1डी जैसे उपग्रहों का प्रक्षेपण और विकास शामिल है। इन उपग्रहों ने न केवल भारत के सुदूर संवेदन क्षमताओं को बढ़ाया, बल्कि भारत को वैश्विक उपग्रह क्षेत्र में भी महत्वपूर्ण स्थान दिलवाया। 

इसके साथ ही, उन्होंने दूसरी और तीसरी पीढ़ी के इनसैट उपग्रहों के विकास में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया, जो आज भारत के संचार और मौसम विज्ञान के प्रमुख उपकरण बने हुए हैं।

इससे पहले, डॉ. कस्तूरीरंगन इसरो उपग्रह केंद्र के निदेशक भी रहे थे, जहां उन्होंने भारतीय राष्ट्रीय उपग्रह (इनसैट-2) और भारतीय सुदूर संवेदन उपग्रहों (आईआरएस-1ए और आईआरएस-1बी) के विकास की दिशा में अहम भूमिका निभाई। उपग्रह आईआरएस-1ए के विकास में उनके योगदान ने भारत की उपग्रह क्षमता को मजबूत किया और देश को अंतरिक्ष विज्ञान के क्षेत्र में वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धा करने की शक्ति प्रदान की।

सरकार और नीति निर्माण में योगदान

डॉ. कस्तूरीरंगन ने अपने कार्यकाल में केवल अंतरिक्ष विज्ञान में ही योगदान नहीं दिया, बल्कि सरकारी नीतियों के निर्माण में भी उनका महत्वपूर्ण हाथ था। उन्होंने अंतरिक्ष क्षेत्र में सरकार की रणनीतियों को आकार देने में भी मदद की, जिससे भारत की अंतरिक्ष नीति को वैश्विक संदर्भ में मजबूत और प्रभावशाली बनाया गया।

भारत के लिए अपूरणीय क्षति

डॉ. कृष्णास्वामी कस्तूरीरंगन के निधन से भारतीय विज्ञान और अंतरिक्ष समुदाय में गहरा शोक है। उनका योगदान भारतीय अंतरिक्ष विज्ञान के लिए अनमोल रहेगा। वह न केवल एक सक्षम वैज्ञानिक थे, बल्कि एक प्रेरणादायक नेतृत्वकर्ता भी थे, जिनकी दृष्टि और मेहनत ने इसरो को नई ऊंचाइयों पर पहुंचाया। उनका योगदान भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम की नींव को मजबूत करने में अहम था और यह आने वाली पीढ़ियों के लिए मार्गदर्शक बना रहेगा।

भारत सरकार और इसरो ने डॉ. कस्तूरीरंगन की सेवाओं को उच्च सम्मान में स्वीकार किया है और उनका कार्य हमेशा याद किया जाएगा। भारतीय अंतरिक्ष विज्ञान के क्षेत्र में उनके योगदान को सदा सम्मानित किया जाएगा।

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