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क्या है शिमला समझौता जिसे पाकिस्तान ने किया रद्द? जानें इसके बारे में सबकुछ

क्या है शिमला समझौता जिसे पाकिस्तान ने किया रद्द? जानें इसके बारे में सबकुछ
अंतिम अपडेट: 6 घंटा पहले

शिमला समझौता एक ऐतिहासिक समझौता है जिसे 1972 में भारत और पाकिस्तान के बीच हस्ताक्षरित किया गया था। यह समझौता 1971 के युद्ध के बाद शांति बहाल करने के उद्देश्य से किया गया था, जो एक निर्णायक युद्ध था और जिसके परिणामस्वरूप बांगलादेश का गठन हुआ था।

Simla Agreement: पाकिस्तान द्वारा शिमला समझौता रद्द करने के बाद यह एक बार फिर चर्चा के केंद्र में आ गया है। 1972 में भारत और पाकिस्तान के बीच एक निर्णायक युद्ध के बाद दोनों देशों के बीच शांति बहाल करने के लिए इस समझौते पर हस्ताक्षर किए गए थे। अब, जब दोनों देशों के रिश्ते एक बार फिर तनावपूर्ण हो गए हैं, पाकिस्तान का यह कदम दोनों देशों के बीच एक नई जटिलता को जन्म दे सकता है। 

यह समझौता न केवल उस समय के युद्धों के बाद शांति की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम था, बल्कि इसके कारण दोनों देशों के बीच रिश्तों का एक नया अध्याय शुरू हुआ था। इस लेख में हम जानेंगे शिमला समझौते के बारे में विस्तार से, इसकी अहमियत, इसके उल्लंघन की घटनाएं, और पाकिस्तान द्वारा इसे रद्द करने के बाद उत्पन्न हो रही नई परिस्थितियों के बारे में।

शिमला समझौता: इतिहास और उद्देश्य

भारत और पाकिस्तान के बीच 1971 में हुआ युद्ध, जिसे पूर्वी पाकिस्तान के स्वतंत्रता संग्राम के रूप में भी जाना जाता है, दोनों देशों के लिए अत्यधिक महत्वपूर्ण था। इस युद्ध में भारत ने पाकिस्तान को पराजित किया और परिणामस्वरूप पाकिस्तान के पूर्वी प्रांत (अब बांग्लादेश) को स्वतंत्रता प्राप्त हुई। इस युद्ध में भारतीय सेनाओं ने पाकिस्तान के करीब 90,000 सैनिकों को बंदी बना लिया था। 

इसके बाद दोनों देशों के रिश्ते सुधारने की आवश्यकता महसूस की गई और शांति स्थापित करने के लिए एक समझौता किया गया। 2 जुलाई 1972 को शिमला में भारत और पाकिस्तान के बीच एक ऐतिहासिक समझौता हुआ, जिसे शिमला समझौता कहा जाता है। इस समझौते पर भारत की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और पाकिस्तान के राष्ट्रपति जुल्फिकार अली भुट्टो ने हस्ताक्षर किए थे। 

यह समझौता दोनों देशों के बीच भविष्य में युद्धों को रोकने और शांति की दिशा में बातचीत को बढ़ावा देने के उद्देश्य से किया गया था। इस समझौते के तहत दोनों देशों ने एक-दूसरे की संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता का सम्मान करने की शपथ ली और यह तय किया कि भविष्य में किसी भी विवाद का समाधान बातचीत के माध्यम से किया जाएगा।

शिमला समझौते की मुख्य बातें

  1. सीमा विवादों का समाधान: शिमला समझौते के अनुसार दोनों देशों ने यह तय किया कि भविष्य में कोई भी सीमा विवाद या अन्य विवाद सीधे बातचीत से हल किया जाएगा और किसी भी तीसरे पक्ष को मध्यस्थ के रूप में स्वीकार नहीं किया जाएगा।
  2. युद्धबंदियों का आदान-प्रदान: इस समझौते के अंतर्गत भारत और पाकिस्तान ने युद्धबंदियों को मुक्त करने और उन्हें स्वदेश वापस भेजने का निर्णय लिया था।
  3. सीधी वार्ता का प्रारंभ: यह तय किया गया कि दोनों देशों के बीच नियमित बातचीत होती रहेगी, ताकि आपसी विवादों का समाधान शांतिपूर्ण तरीके से किया जा सके।
  4. आतंकी गतिविधियों पर रोक: दोनों देशों ने इस बात पर सहमति जताई कि वे एक-दूसरे के खिलाफ आतंकी गतिविधियों को प्रोत्साहित नहीं करेंगे और एक-दूसरे की संप्रभुता का उल्लंघन नहीं करेंगे।
  5. व्यापार और आर्थिक सहयोग: समझौते के अनुसार दोनों देशों के बीच व्यापार और अन्य आर्थिक गतिविधियों को बढ़ावा देने की बात की गई थी, जिससे दोनों देशों के नागरिकों के बीच संपर्क और विश्वास बढ़ सके।

शिमला समझौता: पाकिस्तान द्वारा उल्लंघन

शिमला समझौते का उल्लंघन पाकिस्तान ने 1999 में किया, जब पाकिस्तान की सेना ने जम्मू और कश्मीर के भारतीय क्षेत्र में घुसपैठ की। यह घटना कारगिल युद्ध के रूप में जानी जाती है। पाकिस्तान के सैनिकों ने भारतीय सीमा में घुसकर भारतीय जवानों से लड़ा और इस संघर्ष के परिणामस्वरूप एक भीषण युद्ध हुआ। इस युद्ध में भारत ने पाकिस्तान के सैनिकों को खदेड़ने के लिए 'ऑपरेशन विजय' चलाया और पाकिस्तान को बड़ी हार का सामना करना पड़ा।

कारगिल युद्ध के दौरान पाकिस्तान ने शिमला समझौते का उल्लंघन किया, जिसमें यह सहमति बनी थी कि दोनों देश अपनी सीमाओं का सम्मान करेंगे और युद्ध जैसी स्थिति से बचेंगे। हालांकि इस युद्ध के बाद पाकिस्तान ने शिमला समझौते को फिर से लागू करने की कोशिश की, लेकिन दोनों देशों के बीच विश्वास की कमी और कश्मीर को लेकर लगातार चल रहे विवादों ने इसे सफल नहीं होने दिया।

शिमला समझौता का प्रभाव और सीमाएं

शिमला समझौता दोनों देशों के लिए शांति की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम था, लेकिन समय के साथ दोनों देशों के संबंधों में गिरावट आनी शुरू हो गई। 1980 के दशक में सियाचिन ग्लेशियर को लेकर भारत और पाकिस्तान के बीच टकराव हुआ, जो एक नई सीमा विवाद के रूप में सामने आया। 1984 में भारत ने ऑपरेशन मेघदूत के तहत सियाचिन पर नियंत्रण स्थापित किया, जिससे पाकिस्तान ने शिमला समझौते का उल्लंघन माना। 

पाकिस्तान ने यह आरोप लगाया कि सियाचिन पर नियंत्रण के मुद्दे को शिमला समझौते में स्पष्ट रूप से शामिल नहीं किया गया था, और इसके कारण शिमला समझौते का उल्लंघन हुआ था। इसके अलावा, कश्मीर मुद्दे को लेकर दोनों देशों के बीच लगातार तनाव बना रहा। भारत और पाकिस्तान के बीच शांति की कोशिशों के बावजूद, पाकिस्तान की ओर से अक्सर आतंकवादियों का समर्थन और सीमा पर घुसपैठ की घटनाएं बढ़ती रहीं, जिससे शिमला समझौते का उद्देश्य सफल नहीं हो पाया।

पाकिस्तान द्वारा शिमला समझौता रद्द करने का असर

पाकिस्तान द्वारा शिमला समझौते को रद्द करने के फैसले के बाद दोनों देशों के रिश्तों में एक नई जटिलता उत्पन्न हो सकती है। यह कदम पाकिस्तान द्वारा भारत के खिलाफ एक और आक्रामक नीति अपनाने की ओर इशारा करता है, जो दोनों देशों के लिए चिंताजनक हो सकता है। इसके अलावा, शिमला समझौते के रद्द होने के बाद दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय बातचीत की संभावना और भी कम हो सकती है, जिससे क्षेत्रीय स्थिरता पर विपरीत प्रभाव पड़ सकता है।

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