झारखंड में विधानसभा चुनावों का इतिहास दिलचस्प रहा है, जहां 2000 में राज्य के गठन के बाद से अब तक सात मुख्यमंत्रियों ने पद संभाला है। 2005 में हुए पहले विधानसभा चुनाव में झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) के नेतृत्व में महागठबंधन ने जीत हासिल की, जिसके बाद हेमंत सोरेन मुख्यमंत्री बने। 2010 में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने सत्ता में वापसी की और अर्जुन मुंडा मुख्यमंत्री बने।
रांची: झारखंड में दो चरणों में विधानसभा चुनाव हो रहे हैं, जिसमें 13 और 20 नवंबर को मतदाता अपने मताधिकार का उपयोग करेंगे। चुनावी नतीजे 23 नवंबर को घोषित किए जाएंगे। सभी राजनीतिक पार्टियाँ चुनावी परीक्षा के लिए अपने चेहरों का चयन करने में जुटी हैं, और इस दौरान दिल्ली से लेकर झारखंड तक बैठकों का सिलसिला जारी है। भाजपा और आजसू के एनडीए गठबंधन ने तो दूसरी ओर कांग्रेस ने उम्मीदवारों की पहली सूची जारी कर दी हैं।
2019 के विधानसभा चुनाव के बाद राज्य की राजनीति में कई बदलाव आए हैं और झारखंड ने बीते पांच वर्षों में दो व्यक्तियों को तीन बार मुख्यमंत्री बनने का अवसर दिया हैं। वर्ष 2000 में झारखंड के गठन के बाद से यहां भाजपा और झामुमो के नेतृत्व में अधिकांश सरकारें बनी हैं। कुल मिलाकर, 24 वर्षों में झारखंड में 13 अलग-अलग सरकारें बन चुकी हैं, जिनका नेतृत्व सात विभिन्न व्यक्तियों ने किया हैं।
झारखंड में कैसे बनी पहली सरकार?
लंबे समय तक बिहार का हिस्सा रहे झारखंड ने 15 नवंबर 2000 को भारत के 28वें राज्य के रूप में अस्तित्व में आया। इस ऐतिहासिक क्षण का श्रेय तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के कार्यकाल को जाता है, जब संसद ने बिहार पुनर्गठन अधिनियम के माध्यम से झारखंड का निर्माण किया। इसी वर्ष की शुरुआत में बिहार में हुए चुनावों के परिणामों ने झारखंड की पहली विधानसभा के गठन का आधार तैयार किया। इन चुनावों के परिणामस्वरूप भाजपा ने सहयोगियों के साथ मिलकर राज्य में पहली सरकार बनाई।
15 नवंबर 2000 को बाबूलाल मरांडी ने झारखंड के पहले मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली। मुख्यमंत्री बनने से पहले, मरांडी ने दूसरी और तीसरी वाजपेयी सरकार में पर्यावरण और वन राज्य मंत्री के रूप में कार्य किया था। उन्होंने लोकसभा से इस्तीफा देकर मुख्यमंत्री पद पर बने रहने के लिए विधानसभा उपचुनाव जीता। उनका कार्यकाल ढाई साल तक चला, जिसके बाद भाजपा के मंत्री अर्जुन मुंडा ने झारखंड के दूसरे मुख्यमंत्री के रूप में पदभार ग्रहण किया।
2005 में 81 सदस्यीय झारखंड विधानसभा के लिए पहली बार चुनाव हुए। सत्ताधारी भाजपा और उसके गठबंधन को 41 सीटों के जादुई आंकड़े से पीछे रहना पड़ा। भाजपा ने 23.57% मतों के साथ 30 सीटें जीतीं, जबकि झामुमो ने 17 सीटें हासिल कीं। कांग्रेस ने नौ सीटें जीतकर तीसरी सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी। इस तरह झारखंड की जनता ने किसी एक राजनीतिक दल को सरकार बनाने का स्पष्ट जनादेश नहीं दिया।
झामुमो के नेता शिबू सोरेन ने सरकार बनाने का दावा पेश किया, लेकिन आवश्यक संख्या जुटाने में असफल रहे और उन्हें मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा। इसके बाद, अर्जुन मुंडा ने भाजपा के नेतृत्व वाली गठबंधन सरकार का नेतृत्व किया, लेकिन यह सरकार भी केवल डेढ़ साल तक ही चली।
संबंधित राजनीतिक बदलावों के बीच, मधु कोड़ा ने पहली बार एक निर्दलीय विधायक के रूप में मुख्यमंत्री पद संभाला। कोड़ा की सरकार को झामुमो और अन्य दलों का समर्थन मिला, लेकिन दो साल बाद झामुमो ने समर्थन वापस ले लिया, जिससे उनकी सरकार गिर गई। इसके बाद, शिबू सोरेन ने अगस्त 2008 में दूसरी बार मुख्यमंत्री पद ग्रहण किया, लेकिन उपचुनाव हारने के बाद उन्हें फिर से इस्तीफा देना पड़ा। इस प्रकार, झारखंड में राजनीतिक अनिश्चितता का दौर चलता रहा, जिसके चलते दिसंबर 2009 तक राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू हो गया।
2009 के बाद कई बार सरकारें बनीं और गिरीं
2009 में झारखंड में दूसरी बार विधानसभा चुनाव हुए और जब नतीजे घोषित हुए, तो कोई भी दल 41 सीटों के जादुई आंकड़े को नहीं छू सका। भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने सबसे अधिक 20.18% मतों के साथ 18 सीटें हासिल कीं, जबकि झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) ने भी 18 सीटें जीतीं, लेकिन इसके पास 15.20% मत थे। कांग्रेस ने 14 सीटें जीतकर तीसरी सबसे बड़ी पार्टी बनते हुए 16.16% वोट हासिल किए। बाबूलाल मरांडी की झारखंड विकास मोर्चा (प्रजातांत्रिक) को 11 सीटें मिलीं, जिसके खाते में 8.99% मत आए।
अन्य दलों में राजद और आजसू के पांच-पांच विधायक चुने गए, जबकि जदयू के दो उम्मीदवारों ने जीत दर्ज की। इसके अतिरिक्त, निर्दलीय और अन्य दलों के कुल आठ प्रत्याशियों ने चुनाव जीतने में सफलता पाई। खंडित जनादेश के कुछ महीनों बाद, झामुमो और भाजपा ने अन्य दलों के साथ मिलकर गठबंधन सरकार बनाई, जिसका नेतृत्व शिबू सोरेन ने किया। सोरेन का तीसरा कार्यकाल लगभग पांच महीने (दिसंबर 2009 से मई 2010) तक चला, जब भाजपा ने सरकार से अपना समर्थन वापस ले लिया। इसके बाद कुछ समय के लिए राष्ट्रपति शासन लागू रहा।
सितंबर 2010 में, भाजपा के अर्जुन मुंडा ने तीसरी बार मुख्यमंत्री पद ग्रहण किया, लेकिन उनका कार्यकाल जनवरी 2013 में समाप्त हो गया। राष्ट्रपति शासन हटने के बाद, हेमंत सोरेन, जो झामुमो के नेता और शिबू सोरेन के बेटे हैं, मुख्यमंत्री बने। झामुमो-कांग्रेस गठबंधन की सरकार डेढ़ साल तक चली। 2014 के नवंबर में, झारखंड में तीसरी बार विधानसभा चुनाव हुए, जिसमें 81 सदस्यीय विधानसभा में भाजपा ने सबसे अधिक 37 सीटें जीतीं, जिसने 31.26% वोट हासिल किए। झामुमो को 17 सीटें मिलीं, जिसके खाते में 20.43% मत आए।
झारखंड विकास मोर्चा (प्रजातांत्रिक) ने आठ विधायकों के साथ तीसरा स्थान प्राप्त किया, जिसके पास 9.99% वोट थे। कांग्रेस ने 10.46% वोट के साथ छह विधायक और आजसू ने 3.68% वोट के साथ पांच विधायक जीते। इसके अलावा, छह अन्य विधायक भी विधानसभा में पहुंचे। भाजपा के वरिष्ठ नेता रघुबर दास ने दिसंबर 2014 में मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली। उनकी सरकार ने राज्य के इतिहास में पहली बार पूरे पांच साल का कार्यकाल पूरा किया।
2019 में तीसरी बार हेमंत सोरेन बने सीएम
झारखंड में पिछले विधानसभा चुनाव 30 नवंबर से 20 दिसंबर 2019 के बीच पांच चरणों में हुए थे, जिसमें कुल 65.18% मतदान दर्ज किया गया। नतीजे 23 दिसंबर 2019 को घोषित किए गए, और जब परिणाम सामने आए, तो सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) को बड़ा झटका लगा, क्योंकि वह 41 सीटों के जादुई आंकड़े से पिछड़ गई। झामुमो, जो हेमंत सोरेन की अगुवाई में चुनावी मैदान में थी, को सबसे अधिक 30 सीटें मिलीं, जिसके साथ उसे 18.72% वोट मिले।
इसके बाद भाजपा को 25 सीटें मिलीं, जिसने 33.37% मत हासिल किए। अन्य दलों में कांग्रेस के 16 विधायक (13.88% वोट), झारखंड विकास मोर्चा (झाविमो) के तीन विधायक (5.45% वोट), और आजसू के दो विधायक (8.1% वोट) शामिल थे। इसके अतिरिक्त, दो निर्दलीय विधायक और राजद, भाकपा (माले) और एनसीपी के एक-एक विधायक भी विधानसभा पहुंचे।
हार के बाद, भाजपा सरकार में मुख्यमंत्री रहे रघुबर दास ने इस्तीफा दे दिया, जिससे झामुमो के नेतृत्व में महागठबंधन की सरकार बन गई। इस सरकार में झामुमो को कांग्रेस, राजद, सीपीआई (एमएल) और एनसीपी का समर्थन प्राप्त हुआ। साथ ही, झाविमो के प्रमुख और झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी ने भी हेमंत सोरेन की सरकार को समर्थन देने का ऐलान किया। इसके बाद, 29 दिसंबर 2019 को झामुमो विधायक दल के नेता हेमंत सोरेन ने मुख्यमंत्री पद की शपथ ली।
झारखंड की राजनीति में हुई उथल-पुथल
फरवरी 2020 में झारखंड के पहले मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी ने 'घर वापसी' करते हुए भाजपा में शामिल होने का निर्णय लिया, साथ ही उन्होंने अपनी पार्टी झारखंड विकास मोर्चा (झाविमो) का भाजपा में विलय भी कर दिया। वहीं, हेमंत सोरेन का दूसरा कार्यकाल कई चुनौतियों से भरा रहा। 2022 में चुनाव आयोग ने झारखंड के तब के राज्यपाल रमेश बैस को एक याचिका पर अपनी राय भेजी, जिसमें मांग की गई थी कि मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को खुद को एक खनन पट्टा देकर चुनावी कानून का उल्लंघन करने के लिए विधायक के रूप में अयोग्य ठहराया जाए। हालांकि, इस याचिका पर बाद में कोई कार्रवाई नहीं की गई।
हेमंत की मुश्किलें यहीं समाप्त नहीं हुईं। 31 जनवरी 2024 को भूमि घोटाले के आरोपों के बाद प्रवर्तन निदेशालय ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया। गिरफ्तारी से ठीक पहले उन्होंने पद से त्यागपत्र दिया, जिसके बाद राज्य की कमान शिबू सोरेन के करीबी माने जाने वाले चंपई सोरेन को सौंपी गई। 2 फरवरी 2024 को चंपई ने राज्य के मुख्यमंत्री के तौर पर शपथ ली।
हालांकि, हेमंत सोरेन की रांची की जेल में पांच महीने की बंदी के बाद 28 जून को झारखंड उच्च न्यायालय ने उन्हें मनी लॉन्ड्रिंग मामले में जमानत दे दी, जिसके बाद राज्य में नेतृत्व परिवर्तन हुआ। अदालत से राहत मिलने के बाद, हेमंत ने चंपई की जगह ली और 4 जुलाई को तीसरी बार राज्य के मुख्यमंत्री बने।
हालांकि, हेमंत सोरेन के सत्ता संभालने के बाद पूर्व मुख्यमंत्री चंपई सोरेन की पाला बदलने की पटकथा शुरू हो गई। अगस्त के मध्य में, झामुमो के वरिष्ठ नेता चंपई सोरेन ने भाजपा नेताओं से मुलाकात की। 18 अगस्त को उन्होंने एक लंबा सोशल मीडिया पोस्ट लिखा, जिसमें उन्होंने पार्टी नेतृत्व पर खुद को अपमानित करने का आरोप लगाया। 26 अगस्त को चंपई नई दिल्ली पहुंचे, जहां उन्होंने भाजपा के वरिष्ठ नेताओं से फिर मुलाकात की। अंततः, 30 अगस्त को चंपई सोरेन ने रांची में आधिकारिक तौर पर भारतीय जनता पार्टी में शामिल हो गए।