जस्टिस यशवंत वर्मा के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव लाने की तैयारी है। इससे पहले 5 अन्य जजों पर भी महाभियोग प्रस्ताव आए, लेकिन कोई हटाया नहीं गया। प्रक्रिया लंबी और जटिल होती है।
New Delhi: देश में न्यायपालिका की विश्वसनीयता बनाए रखना बेहद जरूरी है। जब किसी जज पर गंभीर आरोप लगते हैं तो महाभियोग की प्रक्रिया शुरू होती है। फिलहाल, जस्टिस यशवंत वर्मा के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव लाने की तैयारी चल रही है, लेकिन वे अकेले नहीं हैं। इससे पहले भी पांच अन्य जजों के खिलाफ संसद में महाभियोग प्रस्ताव लाया गया था। इस लेख में हम इन सभी मामलों और महाभियोग प्रक्रिया के बारे में विस्तार से समझेंगे।
महाभियोग प्रस्ताव का इतिहास: पहले भी कई जज हुए थे निशाने पर
साल 1993 में सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस वी. रामास्वामी के खिलाफ पहली बार महाभियोग प्रस्ताव पेश किया गया था। उन पर वित्तीय अनियमितताओं के आरोप लगे थे। हालांकि, लोकसभा में आवश्यक दो-तिहाई बहुमत नहीं मिलने की वजह से यह प्रक्रिया पूरी नहीं हो सकी।
इसके बाद 2011 में कलकत्ता हाई कोर्ट के जस्टिस सौमित्र सेन के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोप पर राज्यसभा ने महाभियोग प्रस्ताव पारित किया था। इसके बाद उन्होंने इस्तीफा दे दिया, इसलिए यह प्रक्रिया आगे नहीं बढ़ पाई।
साल 2015 में गुजरात हाई कोर्ट के जस्टिस जे.बी. पारदीवाला के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव राज्यसभा में पेश किया गया था। उन पर आरक्षण मामले में आपत्तिजनक और जातिगत टिप्पणियां करने का आरोप था। हालांकि, जज ने विवादित बयान वापस ले लिया था, इसलिए मामला वहीं रुक गया।
इसी साल मध्य प्रदेश हाई कोर्ट के जस्टिस एस.के. गंगेले के खिलाफ भी महाभियोग प्रस्ताव आया था। उन पर यौन उत्पीड़न के आरोप थे। जांच समिति ने आरोपों को साबित करने के लिए पर्याप्त सबूत न होने के कारण प्रस्ताव को अस्वीकृत कर दिया था।
2017 और 2018 में भी आंध्र प्रदेश-तेलंगाना हाई कोर्ट के जस्टिस सी.वी. नागार्जुन रेड्डी और सुप्रीम कोर्ट के पूर्व चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव लाने की कोशिश हुई, लेकिन दोनों मामलों में आवश्यक समर्थन न मिलने की वजह से प्रक्रिया आगे नहीं बढ़ पाई।
जस्टिस यशवंत वर्मा के खिलाफ मामला
हाल ही में जस्टिस यशवंत वर्मा का नाम एक गंभीर मामले में सामने आया है। मार्च 2025 में दिल्ली स्थित उनके सरकारी आवास में आग लगने के बाद भारी मात्रा में कैश की बरामदगी हुई। यह मामला जांच के दायरे में है।
इस मामले की जांच के लिए सुप्रीम कोर्ट ने तीन सदस्यीय कमेटी बनाई, जिसमें पंजाब-हरियाणा हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस शील नागू, हिमाचल प्रदेश हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस जीएस संधावालिया और कर्नाटक हाई कोर्ट के जज अनु शिवरामन शामिल हैं। जांच रिपोर्ट के बाद महाभियोग प्रस्ताव लाने की प्रक्रिया तेज हो गई है।
जांच के दौरान दिल्ली हाई कोर्ट ने जस्टिस वर्मा से जुड़े सभी न्यायिक काम वापस ले लिए और उन्हें इलाहाबाद हाई कोर्ट में ट्रांसफर कर दिया गया, जहां उन्हें कोई न्यायिक कार्य नहीं सौंपा गया। जस्टिस वर्मा ने आरोपों को पूरी तरह खारिज करते हुए इसे साजिश बताया है।
महाभियोग प्रक्रिया कैसे होती है?
किसी जज के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव लाने के लिए संसद में कम से कम 50 राज्यसभा सदस्यों और 100 लोकसभा सदस्यों के हस्ताक्षर जरूरी होते हैं। आमतौर पर यह प्रस्ताव कानून मंत्री द्वारा पेश किया जाता है। सरकार इस बार विपक्षी दलों का समर्थन भी जुटाने की कोशिश कर रही है ताकि न्यायपालिका में भ्रष्टाचार के खिलाफ एक मजबूत संदेश दिया जा सके।
प्रस्ताव पहले एक सदन में पारित होता है और फिर दूसरे सदन में रखा जाता है। अगर दोनों सदनों में यह प्रस्ताव दो-तिहाई बहुमत से पास हो जाता है, तो एक तीन सदस्यीय जांच कमेटी गठित होती है, जो आरोपों की जांच करती है। इस कमेटी में एक हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस और दो वरिष्ठ जज होते हैं।
जांच रिपोर्ट में यदि आरोप सही पाए जाते हैं तो संसद में फिर से बहस और वोटिंग होती है। प्रस्ताव के पारित होने के बाद यह राष्ट्रपति के पास भेजा जाता है। राष्ट्रपति की मंजूरी के साथ जज को पद से हटाया जाता है।