महाराष्ट्र चुनाव में कई राजनीतिक परिवारों में सियासी टकराव देखने को मिला। शरद पवार के भतीजे अजित पवार ने बारामती सीट पर अपने बड़े भाई के बेटे युगेंद्र पवार को हराकर चुनाव में बड़ी जीत दर्ज की।
Maharashtra Election 2024: महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव 2024 में सत्तारूढ़ महायुति को जबरदस्त जनादेश प्राप्त हुआ है। 288 सदस्यीय विधानसभा में महायुति ने 236 सीटें जीतकर एक ऐतिहासिक रिकॉर्ड बनाया है, जो अब तक किसी भी पार्टी या गठबंधन द्वारा जीती गई सबसे बड़ी संख्या है। इससे पहले, 1972 में कांग्रेस ने 222 सीटों के साथ एक मजबूत प्रदर्शन किया था, लेकिन महायुति ने उसे भी पीछे छोड़ते हुए एक नया कीर्तिमान स्थापित किया है। वहीं, विपक्षी गठबंधन महाविकास आघाड़ी (मविआ) को केवल 49 सीटों पर ही संतोष करना पड़ा। यह नतीजे राज्य में सत्तारूढ़ गठबंधन के लिए एक निर्णायक जीत साबित हुए हैं, और इसका मुख्य कारण महायुति के नेताओं द्वारा किए गए कड़े चुनाव प्रचार और लोगों से किए गए वादों का प्रभाव रहा।
गढ़ भी नहीं बचा पाए विपक्ष के बड़े चेहरे
विधानसभा चुनाव के परिणामों में सबसे बड़ा हैरान करने वाला पहलू यह रहा कि विपक्षी दलों के बड़े और प्रभावशाली नेता अपने पारंपरिक गढ़ों में भी अपनी स्थिति मजबूत नहीं कर पाए। शरद पवार, उद्धव ठाकरे, और कांग्रेस जैसे दिग्गज नेता भी अपनी-अपनी सीटों पर चुनावी मुकाबला हार गए। इस बार के चुनाव ने यह साबित कर दिया कि महायुति ने जनता के बीच अपनी पकड़ मजबूत कर ली है, और विपक्ष के पुराने किले भी अब उनके लिए सुरक्षित नहीं रहे। महाविकास आघाड़ी की कमजोर स्थिति और विपक्षी नेताओं का विघटन, महायुति की ताकत का कारण बने।
परिवार के खिलाफ खड़े हुए रिश्तेदार
इस चुनाव में एक और दिलचस्प पहलू यह था कि कई प्रमुख राजनीतिक परिवारों के सदस्य अपने-अपने रिश्तेदारों के खिलाफ खड़े हुए। एक ओर जहां यह चुनाव पारिवारिक रिश्तों को एक नई दिशा में ले गया, वहीं दूसरी ओर यह भी साबित हुआ कि राजनीति में रिश्ते और परिवार से कहीं ज्यादा महत्व पार्टी और जनाधार का होता है। इस दौरान कई सीटों पर उम्मीदवारों को अपने ही परिवार के सदस्यों से हार का सामना करना पड़ा, जो एक अलग ही राजनीति को दर्शाता है। राजनीतिक परिवारों के इस संघर्ष ने चुनावी माहौल को और भी दिलचस्प बना दिया।
अजित पवार ने अपने भतीजे को दी करारी शिकस्त
एक प्रमुख उदाहरण शरद पवार के भतीजे अजित पवार की बारामती विधानसभा सीट पर उनकी सगे भतीजे युगेंद्र पवार के खिलाफ जीत है। अजित पवार ने इस सीट पर अपने भतीजे को लगभग एक लाख वोटों के अंतर से हराया। यह न केवल उनकी व्यक्तिगत सफलता है, बल्कि यह भी दर्शाता है कि महायुति के भीतर भी पारिवारिक संघर्ष की स्थिति बन रही है। यह अजित पवार की आठवीं बार बारामती सीट से जीत है, जो इस बात का संकेत है कि उनका प्रभाव राज्य के राजनीतिक परिदृश्य में कायम है।
संजना जाधव ने पूर्व पति को हराया
छत्रपति संभाजीनगर जिले के कन्नड़ विधानसभा सीट पर भाजपा नेता रावसाहेब दानवे की बेटी संजना जाधव ने एक अनोखी स्थिति में अपने पूर्व पति हर्षवर्द्धन जाधव को चुनावी शिकस्त दी। दोनों के बीच यह मुकाबला इस मायने में भी दिलचस्प था कि संजना जाधव ने अपने से अलग हो चुके पति को लगभग 18,000 वोटों के अंतर से हराया। यह चुनावी मुकाबला व्यक्तिगत रिश्तों के बीच चुनावी रणनीति और सियासी ताकत का उत्कृष्ट उदाहरण था।
पिता-बेटी के बीच सियासी संघर्ष
गढ़चिरौली जिले के अहेरी विधानसभा क्षेत्र में भी एक दिलचस्प मुकाबला देखने को मिला, जहां एनसीपी के नेता और राज्य मंत्री धरमरावबाबा अत्राम ने अपनी बेटी भाग्यश्री अत्राम को हराया। यह चुनाव पिता और बेटी के बीच एक सियासी संघर्ष का प्रतीक बना। इस सीट पर चुनावी समीकरण और रिश्तों के अलावा, सत्ता की राजनीति ने भी अपनी अहम भूमिका निभाई, और अंततः पिता ने अपनी बेटी को मात दी।
भाई-बहन की चुनावी टक्कर
नांदेड़ के लोहा विधानसभा क्षेत्र में भी एक और पारिवारिक संघर्ष सामने आया, जहां भाजपा के पूर्व लोकसभा सदस्य प्रताप पाटिल चिखलीकर ने अपनी बहन आशाबाई शिंदे को हराया। यह भी एक सियासी टकराव था, जहां भाई ने अपनी बहन को मात दी। इस तरह के पारिवारिक मुकाबले चुनावी परिप्रेक्ष्य में नई धार को दर्शाते हैं, और यह दिखाते हैं कि रिश्तों से ज्यादा राजनीति का महत्व है।
ठाकरे परिवार में मिली-जुली किस्मत
ठाकरे परिवार के भीतर भी इस बार चुनावी परिणामों ने दिलचस्प मोड़ लिया। एक ओर, उद्धव ठाकरे के बेटे आदित्य ठाकरे वर्ली सीट से चुनाव जीतने में सफल रहे, वहीं राज ठाकरे के बेटे अमित ठाकरे को माहिम सीट पर हार का सामना करना पड़ा। यह स्थिति ठाकरे परिवार के भीतर सियासी समीकरणों को लेकर काफ़ी चर्चा में रही। आदित्य ठाकरे ने अपने राजनीतिक करियर में एक और सफलता हासिल की, जबकि अमित ठाकरे की हार ने उनके राजनीतिक भविष्य पर सवाल खड़े कर दिए।
महायुति की जीत का संदेश
इन तमाम घटनाक्रमों के बावजूद, महायुति की ऐतिहासिक जीत ने यह साबित कर दिया कि सत्तारूढ़ गठबंधन के पास न केवल एक सशक्त नेतृत्व है, बल्कि जनता का समर्थन भी उनके साथ है। विपक्ष के भीतर फैली असमंजस और विघटन ने महायुति के पक्ष में लहर पैदा की, और महाराष्ट्र की राजनीति में एक नया मोड़ आ गया है।