पीएम नरेंद्र मोदी ने शनिवार को संसद के शीतकालीन सत्र के दौरान इंदिरा गांधी और जस्टिस हंस राज खन्ना के बीच इमरजेंसी के विवाद को याद किया। उन्होंने कांग्रेस को संविधान से छेड़छाड़ के मुद्दे पर आईना दिखाया।
Parliament Winter Session: संसद के शीतकालीन सत्र के दौरान शनिवार को लोकसभा में सत्ता और विपक्ष के बीच संविधान पर चर्चा हुई। इस दौरान कांग्रेस पार्टी ने केंद्र सरकार पर संविधान बदलने की कोशिश के गंभीर आरोप लगाए। इस बीच पीएम नरेंद्र मोदी ने जब अपनी बात रखनी शुरू की तो उन्होंने इमरजेंसी के दौरान जस्टिस हंस राज खन्ना को चीफ जस्टिस बनने से जानबूझकर रोकने की घटना को याद कर कांग्रेस पार्टी के पुराने गड़े मुर्दे उखाड़ दिए। पीएम मोदी ने कांग्रेस को ‘शर्मिंदा’ करने का मौका नहीं छोड़ा।
जस्टिस खन्ना ने इमरजेंसी का किया था विरोधी
तत्कालीन पीएम इंदिरा गांधी ने साल 1975-1977 तक देश में इमरजेंसी लगाए रखी थी। इस दौरान ‘एडीएम जबलपुर बनाम शिव कांत शुक्ला’ बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका का केस सुप्रीम कोर्ट पहुंचा। उस वक्त के सीजेआई ए.एन. रे सहित न्यायमूर्ति एम.एच. बेग, न्यायमूर्ति वाई.वी. चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति पी.एन. भगवती सरकार से सहमत थे। चारों का माना था कि संविधान में उपलब्ध जीवन और स्वतंत्रता के अधिकार जैसे मौलिक अधिकार इमरजेंसी की अवधि के दौरान समाप्त माने जाएं। पांचवें जज जस्टिस हंस राज खन्ना ने इस फैसले से असहमति जताई थी। हालांकि 4-1 के बहुमत से तब इंदिरा गांधी को सुप्रीम कोर्ट से राहत मिल गई थी।
इंदिरा ने जूनियर जज को बनाया सीजेआई
21 महीने की लंबी अवधि के बाद देश से इमरजेंसी हटाई गई। नौ महीने बाद देश को नए सीजेआई मिलने वाले थे। परंपरा के अनुसार सुप्रीम कोर्ट के सबसे सीनियर जज को ही अगला चीफ जस्टिस बनाया जाता है। जस्टिस हंस राज खन्ना तब सुप्रीम कोर्ट में सबसे सीनियर जज थे। हालांकि इंदिरा गांधी के इमरजेंसी के फैसले का विरोध करना उन्हें महंगा पड़ा। इंदिरा गांधी ने जस्टिस खन्ना को सीजेआई बनाने की फाइल पर साइन नहीं किया। उनसे जूनियर जज न्यायमूर्ति एम.एच. बेग को भारत का अगला चीफ जस्टिस बना दिया गया था। इस फैसले से नाराज जस्टिस खन्ना ने तत्काल इस्तीफा दे दिया था।