मुस्लिम महिला ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल कर खुद पर शरीयत के बजाय भारतीय उत्तराधिकार कानून लागू करने की मांग की है। याचिका में महिला ने तर्क दिया है कि भारतीय उत्तराधिकार कानून के तहत उनकी संपत्ति से संबंधित अधिकारों का निर्धारण किया जाए, बजाय इसके कि शरीयत के नियमों को लागू किया जाए।
नई दिल्ली: एक मुस्लिम महिला ने शरिया कानून के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की है, जिसमें उसने खुद पर शरीयत के बजाय भारतीय उत्तराधिकार कानून लागू करने की मांग की है। यह याचिका अलपुझा की रहने वाली और "एक्स-मुस्लिम्स ऑफ केरल" की महासचिव, साफिया पी एम द्वारा दायर की गई है। उन्होंने अदालत से यह आग्रह किया है कि उनका उत्तराधिकार भारतीय कानूनों के तहत तय किया जाए, न कि शरीयत के अनुसार।
इस याचिका पर सुप्रीम कोर्ट की तीन सदस्यीय पीठ, जिसमें मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना, न्यायमूर्ति संजय कुमार, और न्यायमूर्ति के वी विश्वनाथन शामिल थे, ने केंद्र सरकार से अपना पक्ष प्रस्तुत करने को कहा। कोर्ट ने इस मामले पर विचार करते हुए केंद्र को नोटिस जारी किया हैं।
सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने केंद्र का प्रतिनिधित्व करते हुए कहा कि यह याचिका एक "दिलचस्प सवाल" उठाती है। उन्होंने बताया कि याचिकाकर्ता महिला जन्मजात मुस्लिम है, लेकिन वह शरीयत में विश्वास नहीं करती और इसे एक पिछड़ा हुआ कानून मानती है। इस मामले में धार्मिक आस्थाओं और भारतीय कानूनों के बीच संतुलन की बहस उठ रही है, और सुप्रीम कोर्ट ने इसे संविधान और व्यक्तिगत अधिकारों के दृष्टिकोण से देखने का संकेत दिया हैं।
सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने कहा कि
सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने मामले पर सुनवाई करते हुए कहा कि याचिकाकर्ता की मांग धार्मिक आस्था के खिलाफ हो सकती है, इसलिये कोर्ट ने सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता से जवाबी हलफनामा दाखिल करने के लिए कहा। तुषार मेहता ने जवाबी हलफनामा दाखिल करने और केंद्र से निर्देश प्राप्त करने के लिए तीन सप्ताह का समय मांगा। इस पर पीठ ने चार सप्ताह का समय देते हुए मामले की अगली सुनवाई 5 मई से शुरू होने वाले सप्ताह में करने का निर्णय लिया।
सुप्रीम कोर्ट के समक्ष महिला ने रखी ये मांग
सुप्रीम कोर्ट में दायर की गई याचिका में महिला ने धार्मिक स्वतंत्रता और समानता के अधिकारों पर जोर दिया है। उसने दावा किया कि वह नास्तिक है और इस्लाम को आधिकारिक रूप से नहीं छोड़ा है, लेकिन उसे धर्मनिरपेक्ष भारतीय कानून, विशेषकर भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम 1925 के तहत अपने अधिकारों का पालन करना चाहिए। याचिकाकर्ता का यह मानना है कि मुस्लिम पर्सनल लॉ के तहत शरिया के नियमों के बजाय, उसे भारतीय उत्तराधिकार कानून का पालन करने की अनुमति मिलनी चाहिए।
याचिका में यह भी कहा गया कि मुस्लिम महिलाएं शरिया के अनुसार संपत्ति में एक तिहाई हिस्सा पाने की हकदार होती हैं, लेकिन याचिकाकर्ता का मानना है कि अगर उसे शरिया के बजाय भारतीय कानून का पालन करने का अधिकार दिया जाता है, तो उसे संपत्ति का हिस्सा अधिक मिलेगा। उन्होंने अदालत से यह घोषणा करने की मांग की कि वह मुस्लिम पर्सनल लॉ के तहत नहीं आती, ताकि उनके पिता संपत्ति का एक तिहाई हिस्सा देने से अधिक उसे दे सकें।
यह मामला धार्मिक आस्था, अधिकारों और भारतीय कानूनों के बीच एक जटिल मुद्दा प्रस्तुत करता है, जिसे सुप्रीम कोर्ट में आगे बढ़ने के लिए विचार किया जाएगा।