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सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला: कानून बनाना अवमानना नहीं, पर संविधान के खिलाफ हो तो दी जा सकती है चुनौती

सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला: कानून बनाना अवमानना नहीं, पर संविधान के खिलाफ हो तो दी जा सकती है चुनौती

सुप्रीम कोर्ट ने अपने हालिया फैसले में स्पष्ट किया है कि संसद या राज्य विधानसभा द्वारा पारित किसी भी कानून को अदालत की अवमानना (Contempt of Court) नहीं माना जा सकता।

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में एक ऐतिहासिक फैसले में स्पष्ट किया है कि संसद या राज्य विधानसभा द्वारा पारित किसी भी कानून को अदालत की अवमानना नहीं माना जा सकता। लेकिन अगर वह कानून संविधान के किसी प्रावधान से टकराता है, तो उसकी संवैधानिक वैधता को अदालत में चुनौती दी जा सकती है। 

यह टिप्पणी सुप्रीम कोर्ट ने छत्तीसगढ़ सरकार के खिलाफ दायर अवमानना याचिका पर फैसला सुनाते हुए की, जिसमें ‘छत्तीसगढ़ सहायक सशस्त्र पुलिस बल अधिनियम, 2011’ की वैधता पर सवाल उठाया गया था।

यह मामला समाजशास्त्री और दिल्ली विश्वविद्यालय की पूर्व प्रोफेसर नंदिनी सुंदर सहित अन्य याचिकाकर्ताओं द्वारा 2012 में दायर याचिका से जुड़ा है, जिसमें छत्तीसगढ़ सरकार पर सुप्रीम कोर्ट के 2011 के आदेश की अवहेलना का आरोप लगाया गया था। उस आदेश में अदालत ने आदिवासियों को विशेष पुलिस अधिकारी (SPO) बनाकर माओवादी विरोधी अभियानों में इस्तेमाल करने को असंवैधानिक बताया था और तत्काल प्रभाव से ऐसे अभ्यास को रोकने का निर्देश दिया था।

क्या था मामला?

छत्तीसगढ़ सरकार ने साल 2011 में एक नया कानून बनाया, जिसका नाम था "छत्तीसगढ़ सहायक सशस्त्र पुलिस बल अधिनियम"। इस अधिनियम के तहत पहले से कार्यरत एसपीओ को एक नियमित सहायक बल में शामिल कर दिया गया। याचिकाकर्ताओं ने इस पर आपत्ति जताते हुए इसे अदालत की अवमानना बताया और कहा कि राज्य सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश का पालन नहीं किया, बल्कि उसे दरकिनार करते हुए नया कानून बना डाला।

याचिका में यह भी आरोप लगाया गया कि राज्य ने अब तक उन स्कूलों और आश्रमों को सुरक्षा बलों के कब्जे से मुक्त नहीं कराया, जिन पर सलवा जुडूम अभियान के दौरान कब्जा किया गया था। साथ ही पीड़ितों को मुआवजा देने की प्रक्रिया में भी लापरवाही बरती गई है।

सुप्रीम कोर्ट की दो टूक

न्यायमूर्ति बी.वी. नागरत्ना और न्यायमूर्ति सतीश चंद्र शर्मा की पीठ ने अपने निर्णय में कहा, “विधान मंडल द्वारा पारित अधिनियम को अदालत की अवमानना नहीं माना जा सकता, चाहे वह अदालत के पूर्व आदेश से जुड़ा ही क्यों न हो।" कोर्ट ने स्पष्ट किया कि एक राज्य विधानसभा को कानून बनाने की पूरी शक्ति होती है और जब तक उस कानून को असंवैधानिक घोषित नहीं किया जाता, वह प्रभावी रहता है।

अदालत ने यह भी कहा कि यदि कोई पक्ष मानता है कि अधिनियम संविधान के विपरीत है, तो उसे वैध कानूनी प्रक्रिया के तहत चुनौती दी जानी चाहिए, न कि अवमानना याचिका के माध्यम से।

सुप्रीम कोर्ट ने इस आदेश के जरिए भारत के लोकतांत्रिक शासन में शक्तियों के विभाजन को रेखांकित किया। अदालत ने कहा कि विधायिका को यह अधिकार प्राप्त है कि वह किसी अदालती आदेश के मूल आधार को हटाने या उसे प्रभावी बनाने के लिए कानून में संशोधन करे। यह "चेक्स एंड बैलेंस" यानी जांच और संतुलन का मूल तत्व है, जो लोकतांत्रिक शासन प्रणाली को सशक्त बनाता है।

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