सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला, प्रस्तावना में बदलाव की याचिका को किया खारिज, संविधान से नहीं हटेंगे 'समाजवादी' और 'धर्मनिरपेक्ष' शब्द

सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला, प्रस्तावना में बदलाव की याचिका को किया खारिज, संविधान से नहीं हटेंगे 'समाजवादी' और 'धर्मनिरपेक्ष' शब्द
Last Updated: 25 नवंबर 2024

सीजेआई संजीव खन्ना ने याचिका खारिज करते हुए कहा कि इतने वर्षों बाद इस मामले को उठाने का कोई औचित्य नहीं है। उन्होंने इस मुद्दे को पुराना और संविधान की स्थिरता के लिए अनुचित बताया।

Supreme Court News: सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार, 25 नवंबर 2024 को संविधान की प्रस्तावना में 1976 में 42वें संशोधन के तहत जोड़े गए "समाजवादी" और "धर्मनिरपेक्ष" शब्दों को चुनौती देने वाली याचिकाओं को खारिज कर दिया। यह निर्णय संविधान के मूल ढांचे की सुरक्षा और स्थिरता को बनाए रखने के दृष्टिकोण से लिया गया है। चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (CJI) संजीव खन्ना और जस्टिस संजय कुमार की पीठ ने कहा कि संविधान की प्रस्तावना को संसद की संशोधन शक्ति से बाहर नहीं रखा जा सकता। प्रस्तावना में बदलाव के लिए संसद की शक्ति सीमित नहीं है, और इसे अपनाने की तारीख संशोधन करने की प्रक्रिया में कोई बाधा नहीं है।

सीजेआई ने लिया बड़ा फैसला 

CJI खन्ना ने याचिकाकर्ता के इस तर्क को खारिज कर दिया कि इतने वर्षों बाद इस मुद्दे को उठाना उचित है। उन्होंने कहा कि समाजवाद और धर्मनिरपेक्षता जैसे शब्द भारत के कल्याणकारी राज्य के सिद्धांत को परिभाषित करते हैं। यह शब्द निजी क्षेत्र के विकास को रोकने के लिए नहीं बल्कि कल्याणकारी नीतियों को लागू करने के लिए हैं। अदालत ने स्पष्ट किया कि भारत का समाजवाद अन्य देशों के समाजवाद से भिन्न है और इसे लोगों के अधिकारों और समानता के दृष्टिकोण से समझा जाना चाहिए।

याचिकाकर्ताओं की आपत्तियां खारिज

22 नवंबर को हुई सुनवाई में याचिकाकर्ताओं ने यह तर्क दिया कि 42वें संशोधन के दौरान जनता से परामर्श नहीं किया गया था, क्योंकि यह आपातकाल के दौरान लागू हुआ था। उन्होंने कहा कि इन शब्दों को जोड़ना लोगों पर विचारधाराओं को थोपने के समान है और इस मामले पर एक बड़ी पीठ द्वारा विचार किया जाना चाहिए। वकील जैन ने यह भी दावा किया कि प्रस्तावना में कट-ऑफ तारीख होने के बावजूद बाद में शब्दों को जोड़ना असंवैधानिक है।

CJI खन्ना ने इन तर्कों को खारिज करते हुए कहा कि एसआर बोम्मई मामले में "धर्मनिरपेक्षता" को संविधान के मूल ढांचे का हिस्सा माना गया है। उन्होंने कहा कि समाजवाद का भारतीय अर्थ कल्याणकारी राज्य से है, जो समाज के सभी वर्गों को समान अवसर प्रदान करता है।

संविधान के मूल सिद्धांतों की रक्षा

सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि संविधान के मूल ढांचे को बनाए रखना न्यायपालिका की जिम्मेदारी है। अदालत ने कहा कि समाजवादी और धर्मनिरपेक्ष शब्द प्रस्तावना में निहित मूल विचारों को दर्शाते हैं, जिनका उद्देश्य भारत को एक कल्याणकारी और समानता पर आधारित राज्य बनाना है।

क्या था मामला?

1976 में 42वें संविधान संशोधन के माध्यम से "समाजवादी" और "धर्मनिरपेक्ष" शब्द प्रस्तावना में जोड़े गए थे। याचिकाकर्ताओं ने इस संशोधन को चुनौती देते हुए दावा किया कि यह जनता की राय के बिना पारित किया गया था और इसे हटाने की मांग की। सुप्रीम कोर्ट ने इन तर्कों को खारिज करते हुए इस संशोधन को संविधान के मूल ढांचे के अनुरूप बताया।

यह फैसला संविधान की स्थिरता और उसमें निहित मूल सिद्धांतों की रक्षा की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। अदालत ने यह संदेश दिया कि भारतीय संविधान के बुनियादी सिद्धांत समय के साथ बदलने की प्रक्रिया से परे हैं और उन्हें चुनौती नहीं दी जा सकती।

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