नवाब सिंह यादव का राजनीतिक करियर एक पहलवान के रूप में शुरू हुआ और उन्होंने जल्दी ही राजनीति में एक महत्वपूर्ण स्थान हासिल किया। उनकी उपलब्धियों और शक्तिशाली छवि ने उन्हें मिनी मुख्यमंत्री के रूप में पहचान दिलाई। उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी के एक प्रमुख नेता के रूप में, नवाब सिंह यादव ने अपने प्रभाव और राजनीतिक कर्तृत्व के बल पर सफलताएँ प्राप्त कीं।
कन्नौज: नवाब सिंह यादव का राजनीतिक सफर एक पहलवान के रूप में शुरू हुआ और उन्होंने अपने संघर्ष के माध्यम से मिनी मुख्यमंत्री तक पहुंचने की उपलब्धि हासिल की। लेकिन 28 साल बाद उनका ये सफर दुष्कर्म के गंभीर आरोपों से ध्वस्त हो गया। किशोरी से हुए दुष्कर्म के मामले में उलझने के बाद समाजवादी पार्टी ने उनसे किनारा करने का फैसला किया और उनके कई करीबी लोगों ने भी उनसे दूरी बना ली। इस आपराधिक मामले में नवाब सिंह यादव की जेल में बंदी के चलते उनकी रिहाई के लिए अभी तक अदालत में कोई जमानत अर्जी भी दाखिल नहीं की गई है, जो उनकी राजनीतिक और व्यक्तिगत स्थिति को और भी कमजोर बनाता हैं।
नवाब सिंह पहलवान से बने राजनेता
अड़ंगापुर गांव के निवासी नवाब सिंह ने अपनी शिक्षा पीएसएम डिग्री कॉलेज से प्राप्त की। 1995 में उन्होंने वहां कुश्ती प्रतियोगिताओं में विजय प्राप्त कर अपनी पहचान बनाई। 1996 में, उन्होंने छात्र संघ अध्यक्ष का चुनाव जीता, जिसमें उनकी लोकप्रियता और प्रभाव का स्पष्ट प्रमाण मिला। हालांकि, उनकी कुश्ती करियर के दौरान हुए एक चोट ने उनके लिए राजनीतिक मार्ग को चुनने की मजबूरी पैदा की। उनकी जांघ की हड्डी टूटी और इसके बाद उन्होंने राजनीति में प्रवेश करने का निर्णय लिया।
एक होटल संचालक से मदद लेकर उन्होंने राजनीति की लड़ाई में कदम रखा और इसी के साथ उन्होंने अपने पहलवान के करियर को हमेशा के लिए छोड़ दिया। शुरुआत में सफलता की ओर अग्रसर होते हुए, नवाब सिंह यादव ने सियासत में महत्वपूर्ण स्थान हासिल किया, लेकिन हाल के घटनाक्रमों ने उनकी सफलता की इस कहानी को बड़े धूमधाम से समाप्त कर दिया। इस घटनाक्रम ने यह बताने के लिए भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई कि किस तरह से रिश्ते, नैतिकता, और कानून के प्रति आचार-व्यवहार किसी राजनीतिक करियर को बना या बिगाड़ सकते हैं। नवाब सिंह यादव की गाथा एक चेतावनी के रूप में सामने आई है कि सार्वजनिक जीवन में एक नेता की जिम्मेदारी और नैतिकता कितनी महत्वपूर्ण होती हैं।
कलंक के साथ खत्म हुआ नवाब का राजनीति सफर
नवाब सिंह यादव को किशोरी से दुष्कर्म के मामले में दोषी ठहराए जाने के आरोपों का सामना करना पड़ा। यह आरोप उनके करियर पर एक गंभीर धब्बा साबित हुआ और इससे उनकी छवि को नुकसान पहुंचा। एक समय में जब उनकी आवाज़ का असर गंगा नदी से लेकर चंबल तक महसूस किया जाता था, वहीं अचानक ऐसे आरोपों ने
उनके राजनीतिक सफर पर ग्रहण लगा दिया। यह घटना केवल उनके व्यक्तिगत जीवन में नहीं, बल्कि समाजवादी पार्टी और उत्तर प्रदेश की राजनीति में भी एक बड़ी चर्चा का विषय बन गई। नवाब सिंह यादव के करीबी संबंध अखिलेश यादव और पार्टी के अन्य नेताओं के साथ पहले उनकी राजनीतिक ताकत को बनाए रखने में सहायक थे, लेकिन इन आरोपों के बाद उनकी स्थिति कमजोर हो गई।
बता दें नवाब सिंह यादव का सफर एक समय में सफलता की ओर अग्रसर था, लेकिन आरोपों और विवादों ने उनके करियर को गंभीर रूप से प्रभावित किया, जिससे उनकी राजनीति में लगातार गिरावट आई और अंततः उनका प्रभाव कम होता चला गया। इस घटना ने यह दर्शाया कि राजनीति में छवि और नैतिकता कितनी महत्वपूर्ण होती है और किस तरह से एक आरोप किसी नेता के पूरे करियर को बदल सकता हैं।
नवाब से मुलाकात करके प्रभावित हुए मुलायम सिंह यादव
पहलवानी में हड्डी टूटने की घटनाओं के बाद नवाब सिंह यादव ने जब राजनीति में कदम रखा, तब समाजवादी पार्टी के संस्थापक मुलायम सिंह यादव ने उनकी कठिनाइयों को देख उनके प्रति सहयोग का हाथ बढ़ाया। मुलायम सिंह ने पहली बार नवाब सिंह से एक करीबी के घर पर मुलाकात की और उनकी प्रतिभा और संघर्ष से इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने नवाब को वर्ष 1997 में समाजवादी लोहिया वाहिनी का जिलाध्यक्ष नियुक्त किया। यह उनके करियर का एक महत्वपूर्ण Turning Point था, जो उन्हें राजनीतिक क्षेत्र में एक प्रमुख पहचान दिलाने में सहायक रहा। इसके बाद 2006 में, मुलायम सिंह यादव ने नवाब सिंह को निर्विरोध सदर ब्लॉक प्रमुख बना दिया, जिसे उनके राजनीतिक कौशल और प्रभाव की पुष्टि माना गया।
नवाब सिंह की मेहनत और सक्रियता ने उस समय के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के चुनावी अभियान में भी अहम भूमिका निभाई। जब अखिलेश यादव ने वर्ष 2000 में कन्नौज से चुनाव लड़ा, तो नवाब ने उनकी मदद की और उनकी मेहनत रंग लाई, जिससे अखिलेश ने चुनाव जीत दर्ज की। इस दौरान उत्तर प्रदेश में बहुजन समाज पार्टी (बसपा) की सरकार थी, और मायावती मुख्यमंत्री थीं। अखिलेश यादव के नेतृत्व में बसपा सरकार के खिलाफ कई जिलों में प्रदर्शन शुरू हुए, जिसमें नवाब सिंह यादव की सक्रियता और समर्थन ने पार्टी के आंदोलनों को मजबूती प्रदान की। इस तरह, नवाब सिंह यादव ने समाजवादी पार्टी के एक महत्वपूर्ण नेता के रूप में अपनी पहचान बनाई।
नवाब सिंह ने मायावती का पुतला फूंका
नवाब सिंह यादव की राजनीतिक पहचान को और मजबूती मिली जब उन्होंने अपने साथियों के साथ मायावती का पुतला फूंक दिया था। इस विरोध प्रदर्शन के दौरान पुलिस ने उनकी गिरफ्तारी के लिए लाठी चार्ज किया, जिसने उनकी राजनीतिक छवि को एक नई दिशा दी। हालांकि, इस घटना के बाद से नवाब सिंह यादव को अखिलेश यादव का पहले जैसा भरोसा नहीं मिला। इसके बजाय, अखिलेश यादव ने अपने महत्वपूर्ण निर्णयों में उनकी राय लेना शुरू कर दिया, जो उनके बीच के संबंधों में बदलाव का संकेत था।
वर्ष 2012 में जब समाजवादी पार्टी की सरकार बनी, तब अखिलेश यादव ने मुख्यमंत्री के रूप में पदभार संभाला। उस समय नवाब सिंह यादव को अखिलेश के बहुत करीबी रिश्तेदारों में माना गया, जिससे उन्हें "मिनी मुख्यमंत्री" के रूप में संबोधित किया जाने लगा। यह उपाधि उनकी प्रभावशाली राजनीति और निर्णयों में उनकी भूमिका को दर्शाती है। नवाब सिंह यादव का राजनीतिक दिमाग और उनकी समझदारी इतनी प्रभावशाली थी कि जब डिंपल यादव को निर्विरोध सांसद बनाने का मामला सामने आया, तब उसे भी नवाब सिंह की सियासत की उपज माना गया।
सपा सरकार के दौरान उनकी पकड़ मजबूत रही, लेकिन उनकी सियासी ताकत का दायरा भाजपा सरकार में भी वही प्रभाव बनाए रखता था। नवाब सिंह यादव की आवाज़ और उनकी बातों का मान संयुक्त रूप से राजनीति के निर्णयों में महत्वपूर्ण होता था। हालांकि, हाल के विवादों ने उनके करियर पर प्रश्नचिह्न लगा दिया है, और उनकी स्थिति अब पहले जैसी नहीं रह गई। फिर भी, नवाब सिंह यादव की राजनीतिक यात्रा एक उदाहरण है कि कैसे एक नेता अपने कार्यों और संबंधों के माध्यम से सत्ताधारी पार्टी में एक महत्वपूर्ण स्थान बना सकता है, मगर अचानक आए विवादों ने उन सब पर एक गहरा काला धब्बा छोड़ दिया।