Worship Act: वर्शिप एक्ट पर अश्विनी उपाध्याय का दावा, 'मुगलों के गैर-कानूनी निर्माणों को लीगलाइज करने का कोई कानून नहीं'

Worship Act: वर्शिप एक्ट पर अश्विनी उपाध्याय का दावा, 'मुगलों के गैर-कानूनी निर्माणों को लीगलाइज करने का कोई कानून नहीं'
Last Updated: 13 दिसंबर 2024

अश्विनी उपाध्याय ने कहा कि केवल दिखने से यह नहीं बताया जा सकता कि कोई इमारत मंदिर है या मस्जिद, इसके धार्मिक पहचान को सुनिश्चित करने के लिए एक सर्वेक्षण की आवश्यकता है। 

Worship Act: गुरुवार (12 दिसंबर, 2024) को एडवोकेट अश्विनी उपाध्याय ने कहा कि मुगलों के गैर-कानूनी निर्माण को लीगलाइज करने के लिए कोई कानून नहीं हो सकता है और यह एक्ट असंवैधानिक है। यह हिंदुओं को अपने धार्मिक स्थल वापस लेने और दावा करने से रोकता है। उन्होंने कहा कि किसी भी निर्माण की धार्मिक पहचान का पता लगाने के लिए सर्वे आवश्यक है और ऐतिहासिक तथ्यों से पता चलता है कि मुगलों ने कई स्थलों की धार्मिक पहचान बदल दी थी।

सुनवाई से पहले नई याचिका पर रोक

मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना, जस्टिस पीवी संजय कुमार और केवी विश्वनाथन की बेंच ने गुरुवार को देश में किसी भी मंदिर या मस्जिद के सर्वे को लेकर नई याचिका दाखिल करने पर रोक लगा दी है। सीजेआई संजीव खन्ना ने स्पष्ट किया कि याचिका दाखिल की जा सकती है, लेकिन उन्हें रजिस्टर नहीं किया जा सकता।

वर्शिप एक्ट की चुनौती

अश्विनी उपाध्याय ने वर्शिप एक्ट के सेक्शन 2, 3 और 4 को रद्द करने की मांग की है। उन्होंने प्लेसेस ऑफ वर्शिप (स्पेशन प्रोवीजन) एक्ट, 1991 को असंवैधानिक करार दिया और दावा किया कि यह इतिहास में बाबर, हुमांयू और तुगलक के गैर-कानूनी कार्यों को वैध बनाता है।

ऐतिहासिक तथ्यों की मांग

अश्विनी उपाध्याय ने कहा, 'किसी भी निर्माण की संरचना से उसका धार्मिक चरित्र नहीं बताया जा सकता है। केवल देखकर यह नहीं समझा जा सकता कि वह मस्जिद है या मंदिर, इसलिए सर्वे आवश्यक है। मुगलों के गैर-कानूनी निर्माणों को लीगलाइज करने के लिए कोई कानून नहीं हो सकता है। यह एक्ट भारत के संविधान के खिलाफ है।' उन्होंने यह भी कहा कि केवल तिलक या टोपी पहन लेने से धार्मिक पहचान नहीं बताई जा सकती है और ऐतिहासिक तथ्य बताते हैं कि मुगलों ने कई स्थलों के धार्मिक चरित्र के साथ छेड़छाड़ की है।

याचिकाकर्ताओं की आपत्ति

वर्शिप एक्ट को चुनौती देने वाले याचिकाकर्ताओं ने इस कानून पर आपत्ति जताई है कि यह हिंदू, सिख, जैन और बौद्ध जैसे कई समुदायों को अपने ऐतिहासिक धार्मिक स्थलों को वापस लेने और दावा करने के लिए रोकता है। याचिकाकर्ताओं में काशी रॉयल फैमिली से महाराजा कुमारी कृष्णा प्रिया, बीजेपी नेता सुब्रमण्यम स्वामी, पूर्व सांसद चिंतामणी मालवीय, रिटायर्ड आर्मी ऑफिसर, एडवोकेट चंद्र शेखर, रूद्र विक्रम सिंह, स्वामी जीतेंद्र सरस्वती, देवकीनंदन ठाकुर जी और एडवोकेट अश्विनी उपाध्याय शामिल हैं।

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