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बांग्लादेश में सियासी उथल-पुथल: मुहम्मद यूनुस की अंतरिम सरकार पर संकट, सेना की चेतावनी और सड़कों पर विरोध

बांग्लादेश में अंतरिम सरकार के प्रमुख यूनुस पर सेना ने दबाव बढ़ाया। दिसंबर तक चुनाव की मांग, शाहबाग में यूनुस समर्थकों का प्रदर्शन। देश में गहराया राजनीतिक संकट।

Bangladesh Politics: बांग्लादेश, जिसकी आबादी करीब 17 करोड़ है, एक बार फिर गंभीर राजनीतिक संकट की गिरफ्त में है। राजधानी ढाका में विपक्षी दलों, मज़दूर संगठनों और नागरिक समूहों ने सड़कों पर उतरकर सरकार के खिलाफ विरोध प्रदर्शन तेज़ कर दिया है। इस बार केंद्र में हैं नोबेल शांति पुरस्कार विजेता और अंतरिम सरकार के प्रमुख सलाहकार डॉ. मुहम्मद यूनुस, जिनके नेतृत्व को लेकर सवाल उठने लगे हैं। यूनुस के बिना चुनाव सत्ता में बने रहने की कोशिशों पर सेना ने सख्त चेतावनी दी है और देश में एक बार फिर लोकतंत्र बनाम तानाशाही की बहस शुरू हो गई है।

अंतरिम सरकार की शुरुआत और यूनुस का उदय

पिछले साल बांग्लादेश में व्यापक छात्र आंदोलन और भ्रष्टाचार विरोधी प्रदर्शनों के बाद शेख हसीना की सरकार को इस्तीफा देना पड़ा। इसके बाद 5 अगस्त 2024 को मुहम्मद यूनुस को पेरिस से बुलाकर अंतरिम सरकार की जिम्मेदारी सौंपी गई। यूनुस का चयन इसलिए भी महत्वपूर्ण था क्योंकि वे एक अंतरराष्ट्रीय चेहरा थे और उनके पास नोबेल पुरस्कार जैसे सम्मान थे। लेकिन कुछ ही महीनों में यूनुस के नेतृत्व को लेकर विवाद शुरू हो गए।

सेना का रुख कड़ा, यूनुस से दिसंबर 2025 में चुनाव की मांग

सेना प्रमुख जनरल वाकर-उज़-ज़मान ने हाल ही में दिए एक इंटरव्यू में स्पष्ट रूप से कहा कि अंतरिम सरकार का उद्देश्य सिर्फ चुनाव कराना है, न कि नीतिगत निर्णय लेना। उन्होंने चेतावनी दी कि अगर समय पर चुनाव नहीं कराए गए और सेना को रणनीतिक मामलों से दूर रखा गया, तो हालात बेकाबू हो सकते हैं। सेना ने कहा कि वह किसी भी तानाशाही या जनविरोधी गतिविधि को बर्दाश्त नहीं करेगी।

यूनुस का 'प्लान B': सड़कों पर शक्ति प्रदर्शन

सेना की इस चेतावनी के बाद यूनुस ने सत्ता में बने रहने के लिए अब सड़कों की ताकत पर भरोसा जताया है। उनके कट्टरपंथी समर्थक संगठन जैसे जमात-ए-इस्लामी और हिफ़ाज़त-ए-इस्लाम ने शाहबाग चौक पर बड़ी रैली का ऐलान किया है। इस रैली का नाम दिया गया है "March for Yunus"। इसमें 'पांच साल तक यूनुस को सत्ता में रखा जाए' और 'पहले सुधार, फिर चुनाव' जैसे नारे लगाए जा रहे हैं।

शाहबाग: विरोध और समर्थन दोनों का प्रतीक

शाहबाग चौराहा बांग्लादेश की राजनीति का प्रतीक स्थल रहा है। 1971 के युद्ध अपराधियों के खिलाफ यही जगह जनक्रांति का केंद्र थी। अब वही जगह कट्टरपंथी ताकतों द्वारा यूनुस के समर्थन में इस्तेमाल की जा रही है। विश्लेषकों का मानना है कि यह ताकतें यूनुस के ज़रिए बांग्लादेश को एक इस्लामी राष्ट्र में बदलने की कोशिश कर रही हैं।

राजनीतिक दलों की प्रतिक्रिया

बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (BNP) ने मांग की है कि यूनुस जल्द से जल्द चुनाव की तारीख घोषित करें। वहीं, दूसरी ओर नेशनल सिटिज़न्स पार्टी (NCP) चाहती है कि पहले यूनुस के सुधार लागू किए जाएं और उसके बाद चुनाव कराए जाएं।

BNP ने यूनुस कैबिनेट में छात्र नेताओं की भागीदारी पर भी आपत्ति जताई है और उन्हें हटाने की मांग की है। इस बीच, जमात-ए-इस्लामी के प्रमुख शफीकुर रहमान ने सभी दलों की बैठक बुलाकर मुद्दों को हल करने की अपील की है।

यूनुस का संभावित इस्तीफा: रणनीति या सच्चाई?

मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, यूनुस इस्तीफे पर विचार कर रहे हैं। उनके सलाहकारों का कहना है कि सेना की प्रतिक्रिया और जन दबाव के कारण यूनुस अब खुद को इस भूमिका के लिए उपयुक्त नहीं मानते। हालांकि, इसे एक रणनीतिक कदम भी माना जा रहा है ताकि उनके समर्थक सक्रिय रहें।

उनके सलाहकार फैज़ तैयब ने लिखा, "सेना को राजनीति में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए। यूनुस साहब को सुधार पूरे करने का समय मिलना चाहिए।"

सेना में असंतोष की आहट?

कुछ रिपोर्ट्स में दावा किया गया है कि सेना के निचले स्तर के अधिकारी अंतरिम सरकार से नाराज़ हैं। कुछ पर्चे सामने आए हैं जिनमें सरकार पर सेना को बदनाम करने और जनता के खिलाफ इस्तेमाल करने के आरोप लगाए गए हैं। पर्चों में लिखा गया, "अब और नहीं... सेना राष्ट्र की रक्षक है, ना कि किसी जनविरोधी साज़िश की सहयोगी।"

पूर्व सेना प्रमुख इकबाल करीम भुइयां ने चेताया है कि हालात 2006 जैसे हो सकते हैं, जब सेना समर्थित सरकार ने चुनाव टाल दिए थे और फिर अंतरराष्ट्रीय दबाव में चुनाव कराने पड़े थे।

अंतरराष्ट्रीय प्रतिक्रिया और पश्चिमी देशों का रवैया

अमेरिका, फ्रांस और अन्य पश्चिमी देशों ने यूनुस का समर्थन किया है, लेकिन अब यह समर्थन भी विवादों में आ गया है। यूनुस के आलोचक सवाल उठा रहे हैं कि जो देश पहले शेख हसीना को 'तानाशाह' कहते थे, वे अब एक गैर-निर्वाचित सरकार को समर्थन क्यों दे रहे हैं।

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