चीन द्वारा तिब्बत में यारलुंग त्सांगपो नदी पर बनाए जा रहे विशालकाय बांध को लेकर भारत में चिंता की लहर दौड़ गई है। अरुणाचल प्रदेश से भाजपा सांसद तापिर गाओ ने इसे जल बम (Water Bomb) करार देते हुए आगाह किया है कि अगर चीन ने इस बांध से पानी छोड़ा, तो पूर्वोत्तर भारत और बांग्लादेश जैसे निचले तटवर्ती देश विनाशकारी बाढ़ की चपेट में आ सकते हैं।
China Water Bomb: अरुणाचल प्रदेश से बीजेपी सांसद तापिर गाओ ने चीन की ओर से दुनिया का सबसे बड़ा बांध बनाने की घोषणा पर गहरी चिंता जताई है। उन्होंने इसे सिर्फ एक पनबिजली परियोजना नहीं, बल्कि 'जल बम' करार दिया है, जो भविष्य में पूर्वोत्तर भारत और बांग्लादेश जैसे निचले इलाकों में भारी तबाही मचा सकता है।
गुवाहाटी में आयोजित सम्मेलन में बोलते हुए तापिर गाओ ने कहा, 'चीन जो बांध बना रहा है, वह 60,000 मेगावाट बिजली उत्पादन में सक्षम होगा, लेकिन यह सिर्फ एक ऊर्जा परियोजना नहीं है, यह एक रणनीतिक जल हथियार भी है।' उन्होंने जून 2000 की विनाशकारी बाढ़ का उदाहरण देते हुए दावा किया कि उस समय चीन से पानी छोड़े जाने के कारण ही सियांग नदी में उफान आया था, जिसमें अरुणाचल प्रदेश के कई पुल बह गए थे।
चीन की रणनीति और भारत की चुनौती
बांध का निर्माण मेडोग काउंटी में किया जा रहा है, जहां से यारलुंग त्सांगपो नदी भारत में सियांग और असम में ब्रह्मपुत्र के रूप में प्रवेश करती है। विशेषज्ञों का मानना है कि यह प्रोजेक्ट सिर्फ हाइड्रोपावर नहीं, बल्कि क्षेत्रीय जल नियंत्रण की दिशा में चीन की बड़ी चाल है। सम्मेलन में भाग लेने वाले थाईलैंड में रह रहे स्वीडिश पत्रकार बर्टिल लिंटर ने कहा, तिब्बती पठार पर चीन का नियंत्रण केवल जमीन पर नहीं, बल्कि एशिया की बड़ी नदियों पर आधिपत्य जमाने की रणनीति का हिस्सा है।
पारदर्शिता की कमी और वैज्ञानिक चिंता
आईआईटी गुवाहाटी की प्रोफेसर अनामिका बरुआ ने चेतावनी दी कि भारत के पास अभी तक चीन के प्रस्तावित बांध के प्रभावों का आकलन करने के लिए न तो पर्याप्त डेटा है और न ही वैज्ञानिक संसाधन। उन्होंने कहा, चीन कोई जानकारी साझा नहीं कर रहा है। हम अंदाजा भी नहीं लगा सकते कि यदि यह बांध फूटता है या पानी छोड़ा जाता है तो इसका क्या प्रभाव होगा।
भारत के विकल्प क्या हैं?
सांसद तापिर गाओ ने सुझाव दिया कि भारत को सियांग नदी पर खुद एक बांध बनाना चाहिए, जिससे आपातकालीन स्थिति में पानी के दबाव को नियंत्रित किया जा सके। साथ ही उन्होंने केंद्र सरकार से अपील की कि चीन से इस मुद्दे पर कूटनीतिक स्तर पर गहन संवाद हो। सम्मेलन में भाग लेने वाले विशेषज्ञों ने यह भी मांग की कि भारत को चीन के साथ एक जल-बंटवारा समझौता करने की दिशा में पहल करनी चाहिए, ताकि भविष्य में टकराव की आशंका को टाला जा सके।
ब्रह्मपुत्र पर पानी की लड़ाई का खतरा बढ़ा
ब्रह्मपुत्र बोर्ड के अध्यक्ष डॉ. रणबीर सिंह ने चेताया कि ब्रह्मपुत्र घाटी भारत में जल-समृद्ध क्षेत्रों में से एक है, लेकिन चीन के इस परियोजना से उसके जल संतुलन में भी खतरा उत्पन्न हो सकता है। उन्होंने कहा, अगर समय रहते वैज्ञानिक व कूटनीतिक समाधान नहीं निकाला गया, तो यह एशिया की सबसे गंभीर जल-संकट की शुरुआत हो सकती है।