यूक्रेन ने रूस के 5 प्रमुख एयरबेस पर एक बड़ा ड्रोन हमला कर दिया है। इस हमले में रूस के 40 से ज्यादा लड़ाकू विमानों को नुकसान पहुंचा है। रूस ने इसे 'आतंकवादी हमला' करार दिया है।
Russia-Ukraine War: रूस और यूक्रेन के बीच युद्ध की आग और भड़क गई है। 1 जून 2025 को यूक्रेन ने रूस के 5 बड़े सैन्य एयरबेस पर ड्रोन से हमला किया। यूक्रेन ने इस ऑपरेशन को 'ऑपरेशन स्पाइडर वेब' नाम दिया था। इस हमले में 117 FPV ड्रोन का इस्तेमाल किया गया। यूक्रेन का दावा है कि इस ऑपरेशन में रूस के 40 से ज्यादा लड़ाकू विमान बर्बाद हो गए, जिनमें परमाणु क्षमता वाले टीयू-95 और टीयू-22एम3 जैसे विमान भी शामिल हैं।
रूस का दावा- ड्रोन अटैक से एयरबेस में लगी आग
रूसी रक्षा मंत्रालय ने रविवार को पुष्टि की कि यूक्रेन ने मुरमंस्क, इरकुत्स्क, इवानोवो, रियाजान और अमूर एयरबेस पर ड्रोन से हमला किया है। रूस ने इसे 'आतंकवादी हमला' बताया है। रूसी अधिकारियों के मुताबिक, ड्रोन एयरबेस के बेहद करीब से लॉन्च किए गए थे। इन हमलों के बाद कई विमानों में आग लग गई थी, हालांकि आग पर काबू पा लिया गया है।
रूस का यह भी कहना है कि कुछ ड्रोन हमलों को समय रहते नाकाम कर दिया गया। लेकिन नुकसान का पूरा आकलन अभी जारी है।
यूक्रेन का दावा- रूस की सैन्य शक्ति को बड़ा झटका
यूक्रेन का दावा है कि इस हमले से रूस की रणनीतिक क्षमताओं को तगड़ा झटका लगा है। यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोडिमिर जेलेंस्की ने कहा, "हमने रूस की सैन्य शक्ति को कमजोर करने में एक बड़ी सफलता हासिल की है। यह हमला हमारे सैनिकों की बहादुरी और तकनीकी क्षमता का प्रमाण है।" इस हमले में रूस को लगभग 7 बिलियन डॉलर का नुकसान हुआ है।
शांति वार्ता से पहले बड़ा हमला, वार्ता पर संकट के बादल
इस हमले की टाइमिंग भी महत्वपूर्ण है। यह ड्रोन हमला उस वक्त हुआ है जब तुर्की में रूस और यूक्रेन के बीच शांति वार्ता का दूसरा दौर शुरू होने वाला है। रूसी प्रतिनिधिमंडल वार्ता के लिए तुर्की पहुंच चुका है, लेकिन इस हमले के बाद बातचीत पर असमंजस की स्थिति बन गई है। कई विशेषज्ञों का मानना है कि यूक्रेन ने यह हमला वार्ता से ठीक पहले दबाव बनाने के मकसद से किया है।
ऑपरेशन स्पाइडर वेब: 18 महीने की तैयारी का नतीजा
रिपोर्ट्स के मुताबिक, यूक्रेन की सुरक्षा एजेंसी SBU ने इस ऑपरेशन की तैयारी पिछले 18 महीनों से की थी। ड्रोन को रूस के अंदर तक पहुंचाने के लिए उन्हें लकड़ी के कंटेनरों में छिपाकर ट्रकों के जरिए ले जाया गया। फिर इन्हें एक निश्चित समय पर दूरस्थ रूप से सक्रिय किया गया। ऑपरेशन का पूरा नाम 'स्पाइडर वेब' रखा गया था, ताकि इसका नेटवर्क पूरे रूस में फैला हुआ दिख सके।