चीन, रूस और ईरान ने चाबहार बंदरगाह के पास एक बड़े नौसैनिक अभ्यास की तैयारी कर ली है। यह सैन्य अभ्यास ऐसे समय में हो रहा है जब अमेरिका पहले ही ईरान और रूस के खिलाफ कड़े प्रतिबंध लगाए हुए है और चीन के साथ उसका तनाव चरम पर हैं।
नई दिल्ली: चीन, रूस और ईरान ने चाबहार बंदरगाह के पास एक बड़े नौसैनिक अभ्यास की तैयारी कर ली है। यह सैन्य अभ्यास ऐसे समय में हो रहा है जब अमेरिका पहले ही ईरान और रूस के खिलाफ कड़े प्रतिबंध लगाए हुए है और चीन के साथ उसका तनाव चरम पर है। इस बीच, भारत के लिए भी यह सैन्य अभ्यास कई मायनों में चिंताजनक हो सकता है, क्योंकि चाबहार बंदरगाह का एक हिस्सा भारत ऑपरेट करता है और यह उसकी व्यापारिक रणनीति का अहम हिस्सा हैं।
सैन्य अभ्यास के मकसद और रणनीति
चीन, रूस और ईरान के इस नौसैनिक अभ्यास को ‘सिक्योरिटी बेल्ट-2025’ नाम दिया गया है। चीनी रक्षा मंत्रालय के अनुसार, इस युद्धाभ्यास का मुख्य उद्देश्य क्षेत्रीय स्थिरता बनाए रखना और ऊर्जा आपूर्ति मार्गों की सुरक्षा सुनिश्चित करना है। हालांकि, यह अभ्यास अमेरिका और उसके सहयोगियों के लिए एक चुनौती बन सकता है, क्योंकि यह पश्चिमी देशों की इंडो-पैसिफिक रणनीति को सीधे तौर पर प्रभावित कर सकता हैं।
अमेरिका के लिए क्यों बढ़ी परेशानी?
अमेरिका पहले से ही चीन और रूस को वैश्विक सुरक्षा के लिए बड़ा खतरा मानता है। रूस-यूक्रेन युद्ध और ताइवान मुद्दे पर अमेरिका और चीन के बीच तनाव गहराया हुआ है। वहीं, अमेरिका ने ईरान पर कई आर्थिक प्रतिबंध लगा रखे हैं, जिससे दोनों देशों के बीच रिश्ते बेहद खराब हो चुके हैं। ऐसे में, इन तीन देशों का एक साथ आना और चाबहार जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्र में शक्ति प्रदर्शन करना अमेरिका की रणनीति के लिए मुश्किलें बढ़ा सकता हैं।
भारत के लिए चिंता का विषय क्यों?
भारत चाबहार बंदरगाह का एक अहम ऑपरेटर है और इसे व्यापारिक दृष्टि से बेहद महत्वपूर्ण मानता है। इस बंदरगाह का उपयोग भारत अफगानिस्तान और मध्य एशिया तक अपनी पहुंच बढ़ाने के लिए करता है। लेकिन चीन और रूस की बढ़ती उपस्थिति से इस क्षेत्र में भारत का प्रभाव कम हो सकता है। इसके अलावा, चीन की नौसैनिक गतिविधियां हिंद महासागर में भारत के लिए नई सुरक्षा चुनौतियां खड़ी कर सकती हैं। चीन पहले ही पाकिस्तान के ग्वादर बंदरगाह पर अपनी पकड़ मजबूत कर चुका है और अब चाबहार के पास उसकी मौजूदगी भारत के लिए नई रणनीतिक मुश्किलें खड़ी कर सकती हैं।
संयुक्त सैन्य अभ्यास में क्या होगा खास?
रिपोर्ट्स के मुताबिक, इस युद्धाभ्यास में तीनों देश समुद्री सुरक्षा, समुद्री हमलों की रोकथाम, सामूहिक रक्षा और बचाव अभियानों पर ध्यान केंद्रित करेंगे। चीन अपने अत्याधुनिक युद्धपोत टाइप 052डी विध्वंसक बाओटौ और टाइप 903ए री-सप्लाई शिप गाओयूहू को इस अभ्यास में भेज रहा है। रूस और ईरान भी अपने उन्नत नौसैनिक जहाजों को इस अभ्यास में शामिल कर रहे हैं। इससे इन देशों के बीच सैन्य सहयोग और मजबूत होगा, जिससे आने वाले समय में यह गठबंधन और अधिक प्रभावशाली हो सकता हैं।
चीनी सैन्य विश्लेषकों का कहना है कि यह अभ्यास गैर-पारंपरिक सुरक्षा खतरों से निपटने के लिए किया जा रहा है, लेकिन पश्चिमी देशों का मानना है कि यह अमेरिका के नेतृत्व वाली रणनीति को कमजोर करने के लिए है। भारतीय रक्षा विशेषज्ञों के अनुसार, इस अभ्यास से भारत को सतर्क रहने की जरूरत है, क्योंकि चीन लगातार अपनी नौसैनिक शक्ति बढ़ा रहा है और हिंद महासागर में अपनी पकड़ मजबूत करने की कोशिश कर रहा हैं।