भारत और पाकिस्तान के बीच हालिया संघर्ष में पाकिस्तान ने जिन हथियारों का सबसे ज्यादा इस्तेमाल किया, उनमें से कई को उसने चीन और तुर्की से प्राप्त किया है। खासतौर से ड्रोन जो पाकिस्तान ने भारत के खिलाफ उपयोग किए, वो तुर्की की मदद से बनाए गए थे।
नई दिल्ली: भारत और पाकिस्तान के बीच संघर्षों का इतिहास पुराना है, लेकिन अब तुर्की और पाकिस्तान के बढ़ते सैन्य और राजनीतिक रिश्ते भारत के लिए एक नया सुरक्षा खतरा बन सकते हैं। तुर्की का पाकिस्तान के साथ बढ़ता सहयोग, खासकर रक्षा क्षेत्र में, भारत के लिए गंभीर चिंता का विषय बन चुका है। दोनों देशों के बीच घनिष्ठ रिश्तों ने एक नया मोड़ लिया है, जिससे भारत को अपनी कूटनीतिक रणनीति पर पुनर्विचार करना पड़ सकता है।
पाकिस्तान और तुर्की के बढ़ते सैन्य संबंध
पाकिस्तान और तुर्की के रिश्तों में पिछले कुछ वर्षों में उल्लेखनीय सुधार हुआ है, खासकर रक्षा क्षेत्र में। तुर्की ने पाकिस्तान को आधुनिक सैन्य उपकरणों और हथियारों की आपूर्ति शुरू कर दी है, जिससे पाकिस्तान की सैन्य क्षमता में वृद्धि हो रही है। तुर्की द्वारा पाकिस्तान को ड्रोन, युद्धपोत, लड़ाकू विमान और अन्य उच्च तकनीकी रक्षा उपकरण प्रदान किए जा रहे हैं।
विशेष रूप से, 2018 में पाकिस्तान ने तुर्की की रक्षा कंपनी ASFAT से 1.5 अरब डॉलर का समझौता किया था, जिसके तहत पाकिस्तान को चार MILGEM युद्धपोत मिलने थे। इसके अलावा, पाकिस्तान की वायुसेना को तुर्की से F-16 फाइटिंग फाल्कन जेट मिल चुके हैं। हाल ही में पाकिस्तान ने तुर्की से प्राप्त सोंगर ड्रोन का इस्तेमाल किया, जिन्हें तुर्की की कंपनी असिसगार्ड ने विकसित किया है।
ये ड्रोन कम तीव्रता वाले युद्धों के लिए बनाए गए हैं और इन्हें पाकिस्तान ने भारत के खिलाफ हालिया संघर्ष में इस्तेमाल किया। इससे पहले 27 अप्रैल को तुर्की का C-130 हरक्यूलिस सैन्य विमान कराची पहुंचा था, जिसके बारे में कुछ रिपोर्ट्स में दावा किया गया था कि इसमें हथियार भेजे गए थे। तुर्की और पाकिस्तान के बीच यह सहयोग भारत के लिए खतरनाक संकेत हैं, क्योंकि इसका असर सीधे तौर पर भारतीय सुरक्षा पर पड़ सकता है।
कश्मीर मुद्दे पर तुर्की का पाकिस्तान के साथ समर्थन
सिर्फ रक्षा क्षेत्र में ही नहीं, बल्कि कश्मीर मुद्दे पर भी तुर्की ने पाकिस्तान का समर्थन किया है। तुर्की के राष्ट्रपति रेसेप तैयप एर्दोगन ने कई बार कश्मीरियों के पक्ष में बयान दिए हैं। फरवरी 2023 में एर्दोगन ने कहा था कि तुर्की कश्मीरियों के साथ खड़ा है। संयुक्त राष्ट्र महासभा जैसे अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भी पाकिस्तान को तुर्की का समर्थन मिलता रहा है।
एर्दोगन ने पाकिस्तान के साथ अपने संबंधों को मजबूत करने के लिए कई बार पाकिस्तान का दौरा किया है, और दोनों देशों ने इस संबंध को रणनीतिक स्तर पर बढ़ावा देने के लिए एक हाईलेवल स्ट्रैटेजिक कॉपरेशन काउंसिल भी बनाई है।
भारत की सुरक्षा पर असर
तुर्की और पाकिस्तान के बढ़ते रिश्तों का भारत की सुरक्षा पर गहरा असर पड़ सकता है। विशेष रूप से, पाकिस्तान को तुर्की से मिल रहे आधुनिक हथियारों और ड्रोन से भारत के खिलाफ पाकिस्तान की सैन्य ताकत में इजाफा हो रहा है। इसके अलावा, पाकिस्तान की वायुसेना में तुर्की के F-16 जेट और अन्य आधुनिक हथियार शामिल हैं, जो भारतीय सुरक्षा एजेंसियों के लिए एक नई चुनौती पैदा कर रहे हैं।
भारत को इस बढ़ते सैन्य सहयोग को लेकर चिंता है, क्योंकि यह पाकिस्तान को नई सैन्य तकनीक और सामरिक क्षमता प्रदान कर रहा है, जिससे पाकिस्तान का आक्रमक रवैया बढ़ सकता है। ऐसे में भारत को तुर्की को कूटनीतिक, रणनीतिक और वैश्विक स्तर पर घेरने की आवश्यकता हो सकती है। भारत को यह सुनिश्चित करना होगा कि तुर्की को अंतरराष्ट्रीय मंचों पर अलग-थलग किया जाए, ताकि पाकिस्तान को तुर्की से मिल रही सैन्य सहायता को रोका जा सके।
भारत की कूटनीतिक रणनीति में बदलाव
तुर्की और पाकिस्तान के बढ़ते रिश्तों को देखते हुए, भारत ने अपनी कूटनीतिक रणनीति में बदलाव किया है। भारत उन देशों के साथ अपने रिश्ते मजबूत कर रहा है जो तुर्की के विरोधी हैं। भारत ने पूर्वी भूमध्य सागर में ग्रीस और साइप्रस के साथ अपने रिश्ते बेहतर किए हैं। इसके अलावा, भारत ने उत्तरी साइप्रस में तुर्की के दावों के खिलाफ साइप्रस गणराज्य का समर्थन किया है। इस तरह के कदम भारत को तुर्की और पाकिस्तान की दोस्ती के खिलाफ एक मजबूत कूटनीतिक प्रतिक्रिया देने में मदद कर सकते हैं।