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AI की तेज़ रफ्तार से इंसानियत संकट में? भारतीय मूल के प्रोफेसर ने जताई गहरी चिंता, जानिए क्या है उनकी चेतावनी

AI की तेज़ रफ्तार से इंसानियत संकट में? भारतीय मूल के प्रोफेसर ने जताई गहरी चिंता, जानिए क्या है उनकी चेतावनी

आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) आज जिस रफ्तार से दुनिया में अपनी पकड़ बना रहा है, उसने एक तरफ जहां कई कामों को आसान कर दिया है, वहीं दूसरी ओर यह तकनीक भविष्य के लिए एक बड़ा खतरा भी बनती जा रही है। भारतवंशी और अमेरिका के ओक्लाहोमा स्टेट यूनिवर्सिटी में कंप्यूटर साइंस के प्रोफेसर सुभाष काक ने AI के बढ़ते प्रभाव को लेकर एक बेहद गंभीर चेतावनी दी है। उनका कहना है कि आने वाले समय में AI इंसानों के लिए नौकरियों का संकट, जनसंख्या में भारी गिरावट और यहां तक कि शहरों के वीरान हो जाने जैसी स्थितियां पैदा कर सकता है।

इंसानों की जगह लेगा AI?

ओक्लाहोमा स्टेट यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर सुभाष काक का कहना है कि आने वाले वर्षों में AI इंसानी कामों को इतने बेहतर तरीके से करने लगेगा कि कंपनियों को मानव कर्मचारियों की जरूरत ही नहीं रह जाएगी। उन्होंने ब्रिटिश मीडिया प्लेटफॉर्म The Sun से बातचीत में कहा, ‘AI शायद कभी पूरी तरह से सचेत न हो, लेकिन यह हमारी अधिकांश भूमिकाओं को संभाल सकता है – चाहे वह ऑफिस में फैसले लेना हो या घर के काम-काज।‘

उनका मानना है कि तेजी से बढ़ता ऑटोमेशन और मशीन लर्निंग सिस्टम अब केवल बेसिक कामों को ही नहीं, बल्कि रचनात्मक और रणनीतिक सोच से जुड़े फैसलों को भी कर पाने में सक्षम हो गया है। इसका सीधा मतलब है कि भविष्य में इंसानों के लिए पारंपरिक नौकरियों का संकट पैदा हो सकता है।

AI से बेरोज़गारी बढ़ेगी, शादियां कम होंगी, घटेगी आबादी

AI से पैदा होने वाली बेरोज़गारी सिर्फ आर्थिक संकट नहीं लाएगी बल्कि सामाजिक और जनसांख्यिकीय असर भी डालेगी। प्रोफेसर काक का मानना है कि जब लोगों के पास काम नहीं होगा और भविष्य को लेकर अनिश्चितता बढ़ेगी, तब वे विवाह और बच्चों के बारे में सोचना ही बंद कर देंगे। इसी सोच का असर जनसंख्या पर पड़ेगा।

उनके अनुसार, साल 2300 या अधिकतम 2380 तक दुनिया की आबादी घटकर महज 10 करोड़ रह सकती है, जो आज के ब्रिटेन की आबादी के बराबर है। यह आंकड़ा चौंकाने वाला है, क्योंकि वर्तमान में दुनिया की जनसंख्या 8 अरब से भी अधिक है।

AI के असर से खाली हो जाएंगे बड़े शहर

प्रोफेसर काक ने चेतावनी दी है कि अगर यह सिलसिला यूं ही चलता रहा तो न्यूयॉर्क, लंदन और टोक्यो जैसे शहर वीरान हो जाएंगे। आज जो शहर तकनीकी, आर्थिक और सामाजिक गतिविधियों के केंद्र हैं, वे आने वाले समय में खाली पड़े रहेंगे।

लोग ग्रामीण इलाकों में सस्ते जीवन की तलाश में पलायन कर सकते हैं, या फिर पूरी तरह से वर्चुअल दुनिया में खो जाएंगे, जहां उनकी ज़रूरतें डिजिटल माध्यम से पूरी हो रही होंगी। ऐसे में शहरों का वास्तविक अस्तित्व धीरे-धीरे मिटने लगेगा।

मस्क की चेतावनी से मेल खाती है बात

एलन मस्क पहले भी कह चुके हैं कि AI और जनसंख्या गिरावट मानव जाति के लिए सबसे बड़ा खतरा बन सकते हैं। मस्क का मानना है कि अगर पृथ्वी पर कोई संकट आया तो हमें अंतरिक्ष में कॉलोनियां बनानी चाहिए ताकि मानव जीवन को कहीं और बसाया जा सके। प्रोफेसर काक की चेतावनी भी इसी दिशा में इशारा करती है – जहां AI हमारी बुनियादी जीवन प्रणाली को ही हिला सकता है।

क्या वाकई खतरे में है इंसानी अस्तित्व?

प्रोफेसर काक ने बताया कि यूरोप, चीन, जापान और खासकर दक्षिण कोरिया जैसे विकसित देशों में जन्म दर पहले से ही काफी कम हो चुकी है। वहां के युवा परिवार बसाने से कतराते हैं, क्योंकि उन्हें अपने भविष्य को लेकर भरोसा नहीं है। AI के बढ़ते दखल ने इस अनिश्चितता को और गहरा कर दिया है।

उनका यह भी कहना है कि समाज में 'अकेलेपन' की भावना तेज़ी से बढ़ रही है। लोग इंसानों की बजाय मशीनों और स्क्रीन पर ज्यादा भरोसा कर रहे हैं। ऐसे में यह तकनीकी युग एक सामाजिक संकट को भी जन्म दे सकता है।

लेकिन क्या AI केवल खतरा है?

जहां एक ओर प्रोफेसर काक जैसी चेतावनियां चिंता का विषय बनती हैं, वहीं दूसरी ओर कई विशेषज्ञ और नेता इसे विकास का नया युग मानते हैं। हाल ही में पेरिस में आयोजित AI Action Summit में भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था कि तकनीक कभी नौकरियों को खत्म नहीं करती, वह केवल उनका स्वरूप बदलती है।

उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा कि जैसे औद्योगिक क्रांति के समय मजदूरों को मशीनों से खतरा लगा था, लेकिन बाद में नए प्रकार की नौकरियों ने जन्म लिया। वैसे ही AI के साथ भी नए रोजगार के अवसर सामने आएंगे – बशर्ते हम खुद को नई स्किल्स से लैस करें।

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