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चंद्रयान-4: इसरो लाएगा चांद की मिट्टी? 2027-28 तक पूरा होगा ऐतिहासिक मिशन, जानें पूरा प्लान

चंद्रयान-4: इसरो लाएगा चांद की मिट्टी? 2027-28 तक पूरा होगा ऐतिहासिक मिशन, जानें पूरा प्लान
अंतिम अपडेट: 18 घंटा पहले

इसरो का महत्वाकांक्षी मिशन चंद्रयान-4 वर्ष 2027-28 तक पूरा होने जा रहा है। इस मिशन की खास बात यह है कि इसके तहत चंद्रमा से मिट्टी का नमूना भारत लाया जाएगा, जो भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान के क्षेत्र में एक ऐतिहासिक उपलब्धि होगी।

Chandrayaan 4 Mission: भारत की अंतरिक्ष एजेंसी इसरो अब तक के सबसे महत्वाकांक्षी चंद्र मिशन की तैयारी कर रही है, चंद्रयान-4 जो एक सैंपल रिटर्न मिशन है। इस मिशन का उद्देश्य चंद्रमा की सतह से मिट्टी के नमूने लाकर भारत में वैज्ञानिक अध्ययन करना है। यह मिशन वर्ष 2027-28 तक पूरा करने की योजना है और यह भारत की अंतरिक्ष खोज में एक बड़ी छलांग मानी जा रही है।

मून सैंपल रिटर्न: भारत के लिए एक ऐतिहासिक उपलब्धि

चंद्रयान-4, जिसे आधिकारिक रूप से सैंपल रिटर्न मिशन (sample return mission) नाम दिया गया है, में एक अंतरिक्ष यान चंद्रमा की सतह पर उतरेगा, वहां से मिट्टी के नमूने इकट्ठा करेगा और उन्हें सुरक्षित रूप से धरती पर वापस लाएगा। इसरो के वरिष्ठ वैज्ञानिक और चंद्रयान-2 और 3 के मिशन ऑपरेशन डायरेक्टर अमिताभ कुमार ने मिशन की विस्तृत योजना साझा की। 

उन्होंने कहा, “सरकार ने 2040 तक एक भारतीय को पूरी तरह स्वदेशी यान से चंद्रमा पर उतारने का लक्ष्य रखा है। चंद्रयान-4 इस दिशा में एक अहम कदम है।”

डॉकिंग तकनीक (Docking Technology)में बड़ी सफलता

इसरो ने इस मिशन की तैयारी में डॉकिंग और अनडॉकिंग तकनीक पर चार महीने तक काम किया है, जो किसी भी सैंपल रिटर्न या मानव मिशन के लिए बेहद महत्वपूर्ण होता है। यह प्रयोग पृथ्वी की कक्षा में सफलतापूर्वक किया गया है और अब इसे चंद्र कक्षा में परीक्षित किया जाएगा। इस तकनीक के सफल होने पर, अंतरिक्ष यान चंद्रमा की सतह से नमूने लेकर कक्षा में घूम रहे मॉड्यूल से जुड़ेगा और फिर दोनों एक साथ धरती की ओर लौटेंगे। भारत के लिए यह एक अभूतपूर्व ऑपरेशन होगा।

मिशन बजट और टाइमलाइन

चंद्रयान-4 मिशन के लिए ₹1,200 करोड़ रुपये (Approximately $144 million USD) का बजट तय किया गया है। सभी आवश्यक तकनीकी मानकों और परीक्षणों को सफलतापूर्वक पार करने के बाद इसे 2027 से 2028 के बीच लॉन्च किया जाएगा। भारत के पिछले चंद्र मिशन, विशेष रूप से चंद्रयान-3, ने पूरी दुनिया का ध्यान चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुवीय क्षेत्र की ओर खींचा। 

भारत इस क्षेत्र के सबसे करीब पहुंचने वाला पहला देश बना। यहां से प्राप्त आंकड़ों से पता चला कि सतह से केवल 10–15 सेंटीमीटर नीचे तापमान में तेज गिरावट होती है, जो वहां बर्फ या किसी ठंडी संरचना की उपस्थिति की ओर इशारा करता है।

क्या चंद्रमा पर कभी जीवन था?

वैज्ञानिकों का मानना है कि चंद्रमा पर कभी जीवन हो सकता था। वहां की मिट्टी और सतह का अध्ययन करने से यह पता चल सकता है कि ऐसा क्या हुआ जिससे जीवन नष्ट हो गया और क्या भविष्य में पृथ्वी पर भी ऐसी कोई घटना हो सकती है? इसके अलावा रिसर्च से यह भी संकेत मिला है कि चंद्रमा धीरे-धीरे पृथ्वी से दूर जा रहा है, जिससे समुद्र में ज्वार-भाटे और मौसम चक्रों में बदलाव आ सकता है। यह बदलाव मानव जीवन के अस्तित्व के लिए गंभीर खतरा बन सकता है।

क्यों ज़रूरी है मिशन चंद्रयान-4

चंद्रयान-4 जैसे मिशन केवल देश की प्रतिष्ठा का प्रतीक नहीं हैं, बल्कि ये विज्ञान, वैश्विक सहयोग, और अंतरिक्ष नीति के लिहाज़ से भी बेहद अहम हैं। ऐसे मिशनों से प्राप्त डेटा न केवल ब्रह्मांड की उत्पत्ति और विकास को समझने में मदद करता है, बल्कि पृथ्वी के पर्यावरण और मौसम विज्ञान में भी क्रांतिकारी बदलाव ला सकता है।

“चंद्रयान केवल चांद तक पहुंचने का मिशन नहीं है, यह मानव सभ्यता के भविष्य को सुरक्षित रखने की दिशा में एक जरूरी प्रयास है,” अमिताभ कुमार ने कहा।

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