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भारतीय वायुसेना की नई पहल: ऊंची उड़ान भरने वाले ड्रोन से सीमा की निगरानी, स्ट्रेटोस्फेयर में होंगे तैनात

भारतीय वायुसेना (IAF) ने कश्मीर के पहलगाम में हुई आतंकवादी घटना के बाद अब उच्च ऊंचाई पर उड़ान भरने वाले ड्रोन खरीदने की योजना बनाई है। ये ड्रोन, जिन्हें "हाई-एल्टीट्यूड प्लेटफॉर्म सिस्टम" (HAPS) एयरक्राफ्ट कहा जाएगा, जासूसी और सूचना एकत्रित करने के लिए इस्तेमाल किए जाएंगे। 

नई दिल्ली: कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकी हमले के बाद भारतीय वायुसेना ने अपनी सुरक्षा तैयारियों को और मजबूत करने के लिए आसमान में ऊंची उड़ान भरने वाले ड्रोन (HAPS) को तैनात करने की योजना बनाई है। यह ड्रोन न केवल सीमा की निगरानी करेंगे, बल्कि जासूसी और जानकारी जुटाने में भी महत्वपूर्ण भूमिका अदा करेंगे। 

भारतीय वायुसेना (IAF) की यह योजना रक्षा क्षेत्र में एक नई दिशा को दिखाती है, जिसमें हाई-एल्टीट्यूड प्लेटफॉर्म सिस्टम (HAPS) एयरक्राफ्ट का अहम स्थान है।

HAPS एयरक्राफ्ट का महत्व

HAPS एयरक्राफ्ट, जिन्हें 'छद्म-उपग्रह' के रूप में भी जाना जाता है, बिना किसी मानव चालक के ऊंची ऊंचाई पर लगातार उड़ान भरने में सक्षम होंगे। इन ड्रोन की उड़ान क्षमता 20 किलोमीटर तक होगी, जो सामान्य विमान के उड़ान मार्गों से कहीं अधिक ऊंचा है। इन ड्रोन का मुख्य कार्य निगरानी रखना, जानकारी एकत्रित करना और इलेक्ट्रॉनिक इंटेलिजेंस प्रदान करना होगा। भारतीय वायुसेना का कहना है कि इन एयरक्राफ्ट के माध्यम से पाकिस्तान और चीन दोनों के साथ सीमाओं पर निरंतर निगरानी रखी जा सकेगी।

सौर ऊर्जा से चलने वाले ड्रोन

IAF का यह नवीनतम कदम वैश्विक स्तर पर वाणिज्यिक और सैन्य उपयोग के लिए सौर ऊर्जा से चलने वाले ड्रोन की बढ़ती लोकप्रियता को दर्शाता है। HAPS एयरक्राफ्ट सौर ऊर्जा से संचालित होते हैं, जो इन्हें सैटलाइट्स के मुकाबले ज्यादा सस्ता और टिकाऊ बनाता है। इन एयरक्राफ्ट को लॉन्च करने के लिए किसी रॉकेट की आवश्यकता नहीं होती है, और यह आसानी से विभिन्न स्थानों से तैनात किए जा सकते हैं। इसके अलावा, इनके रख-रखाव की प्रक्रिया भी सैटेलाइट्स की तुलना में सरल और सस्ती होती है।

IAF ने तीन HAPS एयरक्राफ्ट और उनसे जुड़े उपकरण खरीदने की प्रक्रिया शुरू कर दी है, और विक्रेताओं से 20 जून तक जानकारी देने के लिए कहा गया है। यह खरीद प्रक्रिया विशेष रूप से पाकिस्तान के साथ बढ़ते तनाव और चीन के साथ LAC (लाइनों ऑफ एक्चुअल कंट्रोल) पर स्थिति को देखते हुए महत्वपूर्ण है।

कम से कम 48 घंटे तक उड़ान भरने की आवश्यकता

IAF की मांग है कि इन HAPS एयरक्राफ्ट को कम से कम 48 घंटे तक लगातार उड़ान भरने की क्षमता हो, ताकि सीमा पर निरंतर निगरानी रखी जा सके। इसके अलावा, इन ड्रोन की डेटा लिंक और टेलीमेट्री रेंज कम से कम 150 किलोमीटर होनी चाहिए। ये एयरक्राफ्ट इंटेलिजेंस, सर्विलांस और कम्युनिकेशन इंटेलिजेंस के महत्वपूर्ण कार्यों को पूरा करेंगे, और इन्हें रात में भी काम करने के लिए सक्षम बनाया जाएगा।

इसके अतिरिक्त, RFI में यह भी बताया गया है कि इन ड्रोन में इलेक्ट्रो-ऑप्टिकल और इंफ्रारेड कैमरे भी होंगे, जो रात के समय या कम रोशनी में भी काम करने में सक्षम होंगे। इन ड्रोन की एक और महत्वपूर्ण विशेषता यह होगी कि वे 50 किलोमीटर की दूरी तक चीज़ों का पता लगाने में सक्षम होंगे।

ISTAR एयरक्राफ्ट की योजना

IAF ने अपनी योजना में ISTAR (इंटेलिजेंस, सर्विलांस, टारगेटिंग एंड रिकॉनेंस) एयरक्राफ्ट को भी शामिल किया है। इन एयरक्राफ्ट का उद्देश्य कार्रवाई योग्य खुफिया जानकारी प्रदान करना होगा। ये एयरक्राफ्ट सिंथेटिक एपर्चर रडार, इलेक्ट्रो-ऑप्टिकल और इंफ्रारेड सेंसर का उपयोग करके कार्रवाई योग्य जानकारी जुटाएंगे, जिसे तुरंत लागू किया जा सके। 

भारत और अमेरिका के बीच डिफेंस टेक्नोलॉजी एंड ट्रेड इनिशिएटिव (DTTI) के तहत ISTAR प्लेटफॉर्म के सह-विकास और सह-उत्पादन पर विचार किया गया था, हालांकि, यह पहल अभी तक पूरी तरह सफल नहीं हो पाई है।

सुरक्षा में नया मोड़

भारतीय वायुसेना की इस नई पहल से न केवल सीमा की निगरानी और खुफिया जानकारी में सुधार होगा, बल्कि यह सुरक्षा को एक नई दिशा भी दे सकता है। ये ड्रोन, जो ऊंची ऊंचाई से सौर ऊर्जा से उड़ेंगे, न केवल पाकिस्तान और चीन के साथ सीमाओं पर निगरानी रखने के लिए आदर्श होंगे, बल्कि विभिन्न सैन्य अभियानों में भी अत्यधिक प्रभावी साबित हो सकते हैं।

यह कदम भारतीय सुरक्षा बलों के लिए एक नई तकनीकी सफलता की ओर इशारा करता है, जिसमें उन्नत ड्रोन प्रौद्योगिकी के जरिए रक्षा क्षमता को बेहतर बनाया जाएगा। यह ड्रोन भारतीय वायुसेना की तकनीकी प्रगति और बढ़ते सैन्य खतरों के प्रति उसकी तैयारियों को और मजबूत करेगा।

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