भारत में स्पेस टेक्नोलॉजी और सैटेलाइट कम्युनिकेशन (Satcom) की दुनिया में बड़ा कदम उठाते हुए केंद्र सरकार ने सैटेलाइट सर्विस के लॉन्च से पहले एक मजबूत और सख्त रणनीति बना ली है। इस रणनीति का फोकस सिर्फ टेक्नोलॉजी पर नहीं, बल्कि देश की संप्रभुता और सुरक्षा पर भी है। आने वाले समय में भारत में कई विदेशी कंपनियां सैटेलाइट ब्रॉडबैंड सेवाएं शुरू करने जा रही हैं, ऐसे में केंद्र सरकार ने 900 करोड़ रुपये से ज्यादा का निवेश करके एक मॉनिटरिंग फैसिलिटी तैयार करने का फैसला लिया है। इसका मकसद होगा देश की सीमाओं के भीतर काम कर रहे हर सैटेलाइट पर बारीकी से नजर रखना।
भारत में सैटेलाइट ब्रॉडबैंड का नया युग
भारत में इंटरनेट कनेक्टिविटी को अगले स्तर पर ले जाने की तैयारी चल रही है। जमीन पर मौजूद नेटवर्क की सीमाओं से बाहर निकलते हुए अब आसमान से इंटरनेट पहुंचाने की योजना पर काम हो रहा है। इसके तहत लो-अर्थ ऑर्बिट (LEO) सैटेलाइट के जरिए ब्रॉडबैंड सर्विस दी जाएगी। इस दिशा में एलन मस्क की Starlink, अमेजन की Kuiper, और OneWeb जैसी वैश्विक कंपनियां सक्रिय हैं। OneWeb में भारतीय कंपनी एयरटेल की भी हिस्सेदारी है, जिससे यह प्रोजेक्ट भारत के लिए और अधिक महत्वपूर्ण हो जाता है।
हालांकि, इस तेजी से बढ़ती तकनीक के साथ-साथ सुरक्षा की चिंता भी बढ़ गई है। विदेशी कंपनियों द्वारा संचालित सैटेलाइट्स अगर भारत की सीमाओं में इंटरनेट या डेटा सर्विस मुहैया कराते हैं, तो यह जरूरी हो जाता है कि सरकार उन पर निगरानी रख सके।
900 करोड़ से बनेगा हाईटेक मॉनिटरिंग सेंटर
सरकार ने अब इस निगरानी को संस्थागत रूप देने की ओर कदम बढ़ा दिया है। एक रिपोर्ट के अनुसार, सरकार ने 930 करोड़ रुपये के बजट के साथ एक आधुनिक मॉनिटरिंग फैसिलिटी स्थापित करने का निर्णय लिया है। इस फैसिलिटी के जरिए देश के भीतर काम कर रहे सभी घरेलू और विदेशी सैटेलाइट्स की रियल टाइम निगरानी की जाएगी।
यह सिस्टम न केवल डाटा कम्युनिकेशन की ट्रैकिंग करेगा, बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर किसी भी सैटेलाइट नेटवर्क से होने वाली गतिविधियों पर भी नजर रखेगा। इसके अलावा यह फैसिलिटी सैटेलाइट ऑपरेटरों के बीच बेहतर तालमेल (coordination) भी सुनिश्चित करेगी, ताकि कोई नेटवर्क ओवरलैपिंग या इंटरफेरेंस ना हो।
दूरसंचार विभाग ने बनाई नई गाइडलाइंस
इस मॉनिटरिंग फैसिलिटी को लागू करने से पहले, दूरसंचार विभाग (DoT) ने सैटेलाइट सर्विस प्रोवाइडर्स के लिए नियमों को भी सख्त बना दिया है। अब भारत में सैटेलाइट सेवा शुरू करने से पहले कंपनियों को 30 से अधिक नए कम्प्लायंसेज (अनुपालन नियमों) का पालन करना अनिवार्य होगा। इनमें नेटवर्क सिक्योरिटी, डेटा प्राइवेसी, सर्वर लोकेशन, और गेटवे ऑपरेशन से जुड़े दिशानिर्देश शामिल होंगे।
साथ ही, इस फैसिलिटी को ऑपरेशनल करने के लिए एक विशेष डिजिटल कम्युनिकेशन कमीशन (DCC) का गठन किया जाएगा। यह इंटर-मिनिस्ट्री पैनल होगा, जिसमें रक्षा, गृह, आईटी, और दूरसंचार मंत्रालयों के अधिकारी शामिल होंगे। यह पैनल यह तय करेगा कि किन देशों की कंपनियों को भारत में सेवा देने की इजाजत दी जाए और किन्हें नहीं।
गेटवे अनुमति पर होगा सरकारी नियंत्रण
एक बड़ा बदलाव यह भी होगा कि अब भारत में कोई भी विदेशी कंपनी सैटेलाइट सर्विस शुरू करने से पहले भारत सरकार से गेटवे एक्सेस की अनुमति लेगी। यह अनुमति केवल उन्हीं कंपनियों को दी जाएगी जो सुरक्षा मानकों पर खरी उतरेंगी।
इससे यह सुनिश्चित किया जा सकेगा कि कोई भी अनधिकृत डाटा ट्रांसफर, साइबर जासूसी या असामाजिक तत्वों द्वारा तकनीक का दुरुपयोग न हो। यह पहल भारत की डिजिटल संप्रभुता को सुरक्षित बनाए रखने के लिए बहुत अहम मानी जा रही है।
भारत को सैटकॉम लीडर बनाने की तैयारी
सरकार का इरादा केवल निगरानी करना ही नहीं है, बल्कि वह सैटकॉम क्षेत्र में भारत को वैश्विक स्तर पर लीडर बनाना चाहती है। इसके लिए न केवल विदेशी कंपनियों को नियंत्रित किया जा रहा है, बल्कि भारतीय स्टार्टअप्स को भी इस क्षेत्र में आगे लाने की योजना बनाई जा रही है। सरकार ऐसे स्टार्टअप्स को फंडिंग, लाइसेंसिंग में आसानी और नीति समर्थन देने के लिए नई टेलीकॉम नीति ला रही है।
इस नीति के तहत आने वाले 5 वर्षों के लिए एक रोडमैप तैयार किया जाएगा, जिससे देश में एक मजबूत, आत्मनिर्भर और सुरक्षित सैटेलाइट कम्युनिकेशन इकोसिस्टम तैयार हो सके। इसका फायदा रूरल एरिया, बॉर्डर इलाकों और प्राकृतिक आपदाओं के समय आपातकालीन नेटवर्किंग में मिलेगा।