क्या आप जानते है ?भगवान श्री कृष्ण की मृत्यु कैसे हुई थी ? जानिए इन रहस्यों को विस्तार से |

क्या आप जानते है ?भगवान श्री कृष्ण की मृत्यु कैसे हुई थी ? जानिए इन रहस्यों को विस्तार से |
Last Updated: 22 मई 2024

भगवान श्रीकृष्ण ने 125 वर्षों तक धरती पर अपनी लीलाएं कीं। इसके बाद, उनके वंश को एक ऋषि द्वारा श्राप मिला, जिसके परिणामस्वरूप पूरा यदुवंश समाप्त हो गया। यह श्राप यदुवंशियों द्वारा ऋषि की तपस्या भंग करने और उन पर तुच्छ मजाक करने के कारण दिया गया था। श्रीकृष्ण भगवान विष्णु के पूर्ण अवतार थे। महाभारत के अनुसार, वे एक अति बलशाली अलौकिक योद्धा थे। इस लेख में, हम भगवत पुराण और महाभारत से ज्ञान लेकर जानेंगे कि भगवान कृष्ण और बलराम जी की मृत्यु कैसे हुई और उनके शरीर का क्या हुआ। महाभारत युद्ध के 18 दिनों के बाद, केवल रक्तपात हुआ और कौरवों का पूरा कुल समाप्त हो गया। पांचों पांडवों को छोड़कर, पांडव कुल के भी अधिकांश लोग मारे गए। इस युद्ध के बाद, श्रीकृष्ण के यदुवंश का भी विनाश हुआ।

 

भगवान कृष्ण की मृत्यु का रहस्य

महाभारत युद्ध के बाद जब युधिष्ठिर का राजतिलक हो रहा था, कौरवों की माता गांधारी ने श्रीकृष्ण को युद्ध के लिए दोषी ठहराते हुए श्राप दिया कि जैसे कौरवों का विनाश हुआ, वैसे ही यदुवंश का भी नाश होगा। इसी कारण भगवान की मृत्यु हुई और सम्पूर्ण यदुवंश का सर्वनाश हो गया।

श्रीकृष्ण द्वारका लौट आए और यदुवंशियों के साथ प्रयास के क्षेत्र में गए। यदुवंशी अपने साथ अन्य फल आहार सामग्री भी लाए थे। कृष्ण ने ब्राह्मणों को भोजन दान कर यदुवंशियों को मृत्यु की प्रतीक्षा करने का आदेश दिया।

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सारथी और कृतवर्मा में विवाद

कुछ दिनों बाद, महाभारत युद्ध की चर्चा करते हुए सारथी और कृतवर्मा के बीच विवाद हो गया। सारथी ने क्रोधित होकर कृतवर्मा का सिर काट दिया। इससे आपसी युद्ध छिड़ गया और यदुवंशी समूहों में विभाजित होकर आपस में लड़ने लगे।

इस युद्ध में श्रीकृष्ण के पुत्र प्रद्युम्न, मित्र सारथी, और अनिरुद्ध सहित सभी यदुवंशी मारे गए। केवल बबलू और दारूक ही बचे।

कृष्ण की मृत्यु किसके हाथों हुई?

कृष्ण अपने बड़े भाई बलराम से मिलने निकले। उस समय बलराम जी जंगल के बाहरी छोर पर समुद्र तट पर विराजमान थे। उन्होंने अपनी आत्मा को आत्म स्वरूप में स्थिर कर लिया और मनुष्य शरीर छोड़ दिया। श्रीकृष्ण जानते थे कि सब समाप्त हो चुका है और वे एक पीपल के पेड़ के नीचे जाकर चुपचाप धरती पर बैठ गए। वे उस समय चतुर्भुज रूप धारण किए हुए थे। उनके लाल तलवे रक्त कमल के समान चमक रहे थे। तभी जरा नामक एक शिकारी ने श्रीकृष्ण के तलवे को हिरण का मुख समझ लिया और तीर चला दिया, जो श्रीकृष्ण के तलवे में जाकर लगा।

जब शिकारी पास आया तो उसने देखा कि यह चतुर्भुज पुरुष हैं। वह डर के मारे कांपने लगा और श्रीकृष्ण के चरणों में सिर रखकर क्षमा मांगने लगा। श्रीकृष्ण ने उसे कहा कि वह न डरे, क्योंकि उसने उनके मन का काम किया है और उसे स्वर्ग लोक प्राप्त होगा। जरा कोई और नहीं, वानरराज बाली ही था। त्रेता युग में प्रभु राम ने बाली को छुपकर तीर मारा था, और अब बाली ने जरा बनकर वही किया।

 

शिकारी के जाने के बाद श्रीकृष्ण के सारथी दारूक वहां पहुंचे। दारूक ने श्रीकृष्ण के चरणों में गिरकर रोना शुरू किया। श्रीकृष्ण ने दारूक से कहा कि वह द्वारका जाए और यदुवंश के विनाश की बात सबको बताए। सबको द्वारका छोड़कर इंद्रप्रस्थ जाने का संदेश दे।

दारूक के जाने के बाद ब्रह्मा जी, पार्वती, लोकपाल, बड़े-बड़े ऋषि मुनि, यक्ष, राक्षस, ब्राह्मण आदि सभी आए और श्रीकृष्ण की आराधना की। श्रीकृष्ण ने अपने विभूति स्वरूप को देखकर अपनी आत्मा को स्थिर किया और कमल के समान नेत्र बंद कर लिए।

 

श्रीकृष्ण और बलराम की स्वधाम गमन

श्रीमद् भागवत के अनुसार, जब श्रीकृष्ण और बलराम की स्वधाम गमन की सूचना उनके परिजनों तक पहुंची, तो उन्होंने भी इस दुख से प्राण त्याग दिए। देवकी, रोहिणी, वासुदेव, बलराम की पत्नियां, और श्रीकृष्ण की रानियां आदि सभी ने शरीर त्याग दिए।

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