सर बेनेगल नारसिंग राव भारतीय संविधान के प्रारंभिक मसौदा तैयार करने वाले प्रमुख शिल्पकार थे। वे न्यायविद्, प्रशासक और अंतरराष्ट्रीय न्यायिक क्षेत्र के प्रतिष्ठित सदस्य रहे। उनके योगदान ने भारत में लोकतंत्र और न्यायिक प्रणाली की नींव मजबूत की।
B. N. Rau: भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के बाद भारत का संविधान तैयार करना किसी सामान्य कार्य से कम नहीं था। उस समय देश में विविधता, सांस्कृतिक भिन्नता और राजनीतिक अस्थिरता के बावजूद, एक ऐसा ढांचा तैयार करना था जो लोकतंत्र की नींव को मजबूत कर सके। इस महत्वपूर्ण कार्य में जिन लोगों का योगदान रहा, उनमें सर बेनेगल नारसिंग राव (B. N. Rau) का नाम विशेष रूप से उल्लेखनीय है। वे केवल एक उत्कृष्ट न्यायविद नहीं थे, बल्कि एक कुशल कूटनीतिज्ञ, प्रशासक और अंतरराष्ट्रीय न्यायिक क्षेत्र में प्रतिष्ठित हस्ती भी थे।
प्रारंभिक जीवन और शिक्षा
सर बी. एन. राव का जन्म 26 फरवरी 1887 को कोंकणी भाषी सारस्वत ब्राह्मण परिवार में हुआ। उनके पिता, बेनेगल राघवेंद्र राव, एक प्रतिष्ठित चिकित्सक थे। बचपन से ही राव में अध्ययन के प्रति गहरी रुचि और मेधा का संचार था। उन्होंने कनारा हाई स्कूल, मैंगलोर से अपनी प्रारंभिक शिक्षा प्राप्त की और पूरे मद्रास प्रेसिडेंसी में प्रथम स्थान प्राप्त किया।
उन्होंने 1905 में त्रिपल फर्स्ट डिग्री प्राप्त की – अंग्रेज़ी, भौतिक विज्ञान और संस्कृत में, और 1906 में गणित में प्रथम स्थान हासिल किया। इसके पश्चात् उन्हें ट्रिनिटी कॉलेज, कैम्ब्रिज में अध्ययन हेतु छात्रवृत्ति मिली, जहाँ उन्होंने 1909 में अपने स्नातक की परीक्षा पूरी की। इस दौरान उन्होंने रैंगलरशिप के लिए प्रयास किया और नौवें स्थान पर रहे।
भारतीय सिविल सेवा में प्रवेश और प्रारंभिक कार्य
राव ने 1909 में भारतीय सिविल सेवा परीक्षा उत्तीर्ण कर बंगाल में नियुक्ति प्राप्त की। प्रारंभ में उन्होंने प्रशासनिक क्षेत्र में कार्य किया, परंतु बाद में उन्होंने न्यायिक क्षेत्र में स्थानांतरित होकर ईस्ट बंगाल के विभिन्न जिलों में न्यायाधीश के रूप में सेवा दी।
1925 में उन्हें असम सरकार द्वारा दोहरी जिम्मेदारी सौंपी गई – प्रांतीय परिषद के सचिव और कानूनी सलाहकार (Legal Remembrancer)। इस दौरान उन्होंने सरकार के लिए महत्वपूर्ण दस्तावेज़ तैयार किए, जैसे कि सायमन कमीशन के दौरे हेतु वित्तीय समर्थन पर ज्ञापन। इसके अलावा, वे संयुक्त संसदीय समिति के समक्ष भारत का पक्ष रखने के लिए लंदन भी गए।
उच्च न्यायिक और प्रशासनिक कार्य
1935 में राव ने गवर्नमेंट ऑफ इंडिया एक्ट 1935 के मसौदे पर कार्य किया। इसके बाद वे कलकत्ता हाई कोर्ट के न्यायाधीश नियुक्त हुए। इस दौरान उनके काम को देखते हुए उन्हें 1934 में कंपेनियन ऑफ़ द ऑर्डर ऑफ़ द इंडियन एम्पायर (CIE) और 1938 में नाइटहुड से सम्मानित किया गया।
राव ने 1944 में जम्मू-कश्मीर के प्रधान मंत्री के रूप में सेवा दी, लेकिन कुछ समय बाद उन्होंने इस्तीफा दे दिया। उनके इस्तीफे के पत्र में स्पष्ट था कि "प्रधान मंत्री को या तो महाराजा के निर्णय को स्वीकार करना होगा या इस्तीफा देना होगा।"
भारतीय संविधान के निर्माण में योगदान
भारतीय संविधान के निर्माण में राव की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण रही। उन्हें संविधान सभा के संवैधानिक सलाहकार के रूप में 1946 में नियुक्त किया गया। संविधान तैयार करने से पहले उन्होंने अमेरिका, कनाडा, आयरलैंड और यूनाइटेड किंगडम की यात्रा की और वहाँ के न्यायाधीशों और विद्वानों से परामर्श लिया।
विशेष रूप से, उन्होंने अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस फेलिक्स फ्रैंकफर्टर से विचार-विमर्श किया, जिन्होंने उन्हें 'ड्यू प्रोसेस' की धारा को भारतीय संविधान में शामिल करने से बचने की सलाह दी।
संविधान सभा ने 29 अगस्त 1947 को ड्राफ्टिंग कमेटी की स्थापना की, जिसकी अध्यक्षता डॉ. बी. आर. अंबेडकर ने की। राव ने प्रारंभिक मसौदा संविधान तैयार किया, जिसे अक्टूबर 1947 में प्रस्तुत किया गया। जनता और विभिन्न समितियों की टिप्पणियों के बाद यह मसौदा संशोधित किया गया और अंततः 26 नवंबर 1949 को भारतीय संविधान पारित हुआ। डॉ. अंबेडकर ने स्पष्ट किया कि संविधान के प्रारंभिक मसौदे के लिए मुख्य श्रेय सर बी. एन. राव को जाता है।
अंतरराष्ट्रीय मंच पर कार्य
राव का योगदान केवल भारत तक सीमित नहीं रहा। उन्होंने 1949 से 1952 तक संयुक्त राष्ट्र में भारत के स्थायी प्रतिनिधि के रूप में सेवा दी। जून 1950 में वे संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के अध्यक्ष भी रहे और उस समय उन्होंने कोरिया संकट में हस्तक्षेप का समर्थन किया। इसके बाद वे कोरियाई युद्ध के बाद संयुक्त राष्ट्र सैन्य आर्मिस्टिस कमीशन (UNCMAC) के सदस्य भी बने।
1952 में उन्हें अंतरराष्ट्रीय न्यायालय, हेग का न्यायाधीश नियुक्त किया गया। उन्होंने लगभग एक वर्ष तक इस न्यायालय में सेवा दी, लेकिन 1953 में स्विट्ज़रलैंड के ज्यूरिख में इलाज के दौरान उनका निधन हो गया।
लेखनी और विधिक योगदान
राव ने भारतीय कानून पर कई महत्वपूर्ण अध्ययन और लेख लिखे। इनमें संवैधानिक नियमों और मानवाधिकारों पर उनके लेख विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं। उनके कार्य ने भारत में न्यायिक दृष्टिकोण और प्रशासनिक नीतियों को स्थायित्व प्रदान किया।
परिवार और व्यक्तिगत जीवन
सर बी. एन. राव के भाई भी प्रतिष्ठित व्यक्तित्व थे – बेनेगल राम राव आरबीआई के गवर्नर रहे और बी. शिव राव एक पत्रकार और राजनेता थे। राव का पारिवारिक वातावरण विद्वत्ता और सेवा भावना से ओत-प्रोत था, जिसने उनके जीवन और कार्यों को दिशा दी।
मृत्यु और विरासत
30 नवंबर 1953 को सर बी. एन. राव का स्विट्ज़रलैंड में आंतरिक कैंसर के कारण निधन हो गया। उनके निधन पर तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने संसद में उनके योगदान की सराहना की और सभी सदस्यों ने एक क्षण मौन रखकर उन्हें श्रद्धांजलि दी।
1988 में उनके जन्म शताब्दी के अवसर पर भारत सरकार ने उनके सम्मान में डाक टिकट जारी किया। उनका जीवन और कार्य आज भी न्याय, संविधान और प्रशासनिक सेवा के क्षेत्र में मार्गदर्शक के रूप में प्रासंगिक है।
सर बी. एन. राव का जीवन और योगदान भारतीय संविधान निर्माण, न्यायिक प्रणाली और प्रशासनिक सेवा में अमूल्य रहा। उनके विचार, विद्वत्ता और समर्पण ने लोकतंत्र की नींव मजबूत की और उन्हें भारतीय इतिहास में न्याय के मार्गदर्शक के रूप में स्थायी स्थान दिलाया।