ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, गुरु ग्रह को ज्ञान, धन, समृद्धि और सफलता का कारक माना जाता है। यह ग्रह जिस भी जातक की कुंडली में मजबूत होता है, उसे जीवन में विशेष सफलता और मान-सम्मान प्राप्त होता है। वर्तमान समय में देवगुरु बृहस्पति वृषभ राशि में विराजमान हैं और मई महीने में मिथुन राशि में गोचर करेंगे। ऐसे में बृहस्पति देव की कृपा प्राप्त करने के लिए गुरुवार का दिन विशेष महत्व रखता है।
गुरुवार को क्यों करें बृहस्पति देव की पूजा?
गुरुवार का दिन बृहस्पति देव और भगवान विष्णु को समर्पित होता है। इस दिन विधिपूर्वक पूजा करने से जीवन में आ रही परेशानियां दूर होती हैं और बिगड़े काम बन जाते हैं। विवाहित और अविवाहित महिलाएं गुरुवार का व्रत रखती हैं, जिससे वैवाहिक जीवन में सुख-शांति बनी रहती है और जीवनसाथी का सहयोग मिलता है।
बृहस्पति देव की पूजा विधि
गुरुवार के दिन सूर्योदय से पहले उठकर स्नान कर पीले वस्त्र धारण करें। भगवान विष्णु और बृहस्पति देव की प्रतिमा या चित्र के सामने दीप जलाकर पीले फूल और पीले फल चढ़ाएं। इसके बाद इन मंत्रों का जाप करें:
"ॐ बृहस्पतये नमः" — 108 बार जाप करें।
"ॐ ग्रां ग्रीं ग्रौं सः गुरवे नमः" — 11 बार जाप करें।
"देवानां च ऋषीणां च गुरुं कांचन सन्निभम्। बुद्धिभूतं त्रिलोकेशं तं नमामि बृहस्पतिम्।" — 5 बार जाप करें।
गुरुवार व्रत का महत्व
गुरुवार का व्रत करने से व्यक्ति की मनोकामनाएं पूरी होती हैं। यह व्रत करियर में सफलता, आर्थिक तंगी से मुक्ति और पारिवारिक सुख-समृद्धि प्रदान करता है। यह व्रत विशेष रूप से उन लोगों के लिए लाभकारी होता है जिनकी कुंडली में गुरु कमजोर स्थिति में हो।
गुरुवार को करें ये काम, बढ़ेगी बृहस्पति की कृपा
पीले वस्त्र पहनें और पीले फल का दान करें।
बृहस्पति देव के नाम का पीला चंदन लगाएं।
केले के वृक्ष को जल अर्पित करें।
जरूरतमंदों को हल्दी, पीले वस्त्र और चने की दाल का दान करें।
ध्यान रखने योग्य बातें
गुरुवार को बाल न कटवाएं और न ही नाखून काटें।
इस दिन किसी से उधार न लें और न ही दें।
नमक का सेवन कम से कम करें।
यदि आप भी जीवन में सफलता, धन-संपत्ति और सुख-शांति की कामना करते हैं, तो गुरुवार को बृहस्पति देव की पूजा करें और इन मंत्रों का जाप करें। बृहस्पति देव की कृपा से आपके सभी बिगड़े काम बन सकते हैं।
बृहस्पति देव के 108 नाम
ॐ गुरवे नमः
ॐ गुणाकराय नमः
ॐ गोप्त्रे नमः
ॐ गोचराय नमः
ॐ गोपतिप्रियाय नमः
ॐ गुणिने नमः
ॐ गुणवंतांश्रेष्ठाय नमः
ॐ गुरूनां गुरवे नमः
ॐ अव्ययाय नमः
ॐ जेत्रे नमः
ॐ जयंताय नमः
ॐ जयदाय नमः
ॐ जीवाय नमः
ॐ अनंताय नमः
ॐ जयावहाय नमः
ॐ अंगीरसाय नमः
ॐ अध्वरासक्ताय नमः
ॐ विविक्ताय नमः
ॐ अध्वरकृते नमः
ॐ पराय नमः
ॐ वाचस्पतये नमः
ॐ वशिने नमः
ॐ वश्याय नमः
ॐ वरिष्ठाय नमः
ॐ वाग्विचक्षणाय नमः
ॐ चित्तशुद्धिकराय नमः
ॐ श्रीमते नमः
ॐ चैत्राय नमः
ॐ चित्रशिखंडिजाय नमः
ॐ बृहद्रथाय नमः
ॐ बृहद्भानवे नमः
ॐ बृहस्पतये नमः
ॐ अभीष्टदाय नमः
ॐ सुराचार्याय नमः
ॐ सुराराध्याय नमः
ॐ सुरकार्यहितंकराय नमः
ॐ गीर्वाणपोषकाय नमः
ॐ धन्याय नमः
ॐ गीष्पतये नमः
ॐ गिरीशाय नमः
ॐ अनघाय नमः
ॐ धीवराय नमः
ॐ धीषणाय नमः
ॐ दिव्यभूषणाय नमः
ॐ धनुर्धराय नमः
ॐ दैत्रहंत्रे नमः
ॐ दयापराय नमः
ॐ दयाकराय नमः
ॐ दारिद्र्यनाशनाय नमः
ॐ धन्याय नमः
ॐ दक्षिणायन संभवाय नमः
ॐ धनुर्मीनाधिपाय नमः
ॐ देवाय नमः
ॐ धनुर्बाणधराय नमः
ॐ हरये नमः
ॐ सर्वागमज्ञाय नमः
ॐ सर्वज्ञाय नमः
ॐ सर्ववेदांतविद्वराय नमः
ॐ ब्रह्मपुत्राय नमः
ॐ ब्राह्मणेशाय नमः
ॐ ब्रह्मविद्याविशारदाय नमः
ॐ समानाधिकनिर्मुक्ताय नमः
ॐ सर्वलोकवशंवदाय नमः
ॐ ससुरासुरगंधर्ववंदिताय नमः
ॐ सत्यभाषणाय नमः
ॐ सुरॆंद्रवंद्याय नमः
ॐ देवाचार्याय नमः
ॐ अनंतसामर्थ्याय नमः
ॐ वेदसिद्धांतपारंगाय नमः
ॐ सदानंदाय नमः
ॐ पीडाहराय नमः
ॐ वाचस्पतये नमः
ॐ पीतवाससे नमः
ॐ अद्वितीयरूपाय नमः
ॐ लंबकूर्चाय नमः
ॐ प्रकृष्टनेत्राय नमः
ॐ विप्राणांपतये नमः
ॐ भार्गवशिष्याय नमः
ॐ विपन्नहितकराय नमः
ॐ बृहस्पतये नमः
ॐ सुराचार्याय नमः
ॐ दयावते नमः
ॐ शुभलक्षणाय नमः
ॐ लोकत्रयगुरवे नमः
ॐ सर्वतोविभवे नमः
ॐ सर्वेशाय नमः
ॐ सर्वदाहृष्टाय नमः
ॐ सर्वगाय नमः
ॐ सर्वपूजिताय नमः
ॐ अक्रोधनाय नमः
ॐ मुनिश्रेष्ठाय नमः
ॐ नीतिकर्त्रे नमः
ॐ जगत्पित्रे नमः
ॐ सुरसैन्याय नमः
ॐ विपन्नत्राणहेतवे नमः
ॐ विश्वयोनये नमः
ॐ अनयोनिजाय नमः
ॐ भूर्भुवाय नमः
ॐ धनदात्रे नमः
ॐ भर्त्रे नमः
ॐ जीवाय नमः
ॐ महाबलाय नमः
ॐ काश्यपप्रियाय नमः
ॐ अभीष्टफलदाय नमः
ॐ विश्वात्मने नमः
ॐ विश्वकर्त्रे नमः
ॐ श्रीमते नमः
ॐ शुभग्रहाय नमः