इतिहास से जुड़े कुछ खास रोचक बातें,दीपावली पर्व की शुरुवात कैसे हुआ जानें

इतिहास से जुड़े कुछ खास रोचक बातें,दीपावली पर्व की शुरुवात कैसे हुआ जानें
Last Updated: 12 जुलाई 2024

इतिहास से जुड़े ये खास रोचक बातें,दीपावली पर्व की शुरुवात कैसे हुआ जानें

भारत पर्वों का देश है और कार्तिक महीना सबसे बड़ा त्यौहार, दीपावली, लेकर आता है। यह दीपों का त्यौहार हमारे बीच हर्षोल्लास का माहौल बनाता है। दीपावली भारतीय संस्कृति के सबसे रंगीन और विविधता भरे पर्वों में से एक है। इस दिन पूरे भारत में दीयों और रोशनी की अलग छटा देखने को मिलती है। यह त्यौहार बड़े और बूढ़े सभी को बेसब्री से इंतजार रहता है। धार्मिक दृष्टि से दीपावली का ऐतिहासिक महत्व है और कई धर्मग्रंथ इसे बताते हैं। आइए जानते हैं इस लेख में दीपावली से जुड़े धार्मिक तथ्यों के बारे में।

राजा बलि ने तीनों लोकों में अपना अधिपत्य करने के लिए अश्वमेध यज्ञ करने का निर्णय लिया। इससे परेशान होकर सभी देवता भगवान विष्णु से सहायता मांगने गए। तब भगवान विष्णु ने वामन अवतार लिया और राजा बलि के पास भिक्षा की इच्छा से पहुंचे। महाप्रतापी और दानवीर राजा बलि ने तीनों लोकों पर विजय प्राप्त कर ली थी। देवताओं की प्रार्थना पर भगवान विष्णु ने वामन रूप धारण कर बलि से तीन पग भूमि दान में मांगी। राजा बलि ने भगवान विष्णु की चाल को समझते हुए भी याचक को निराश नहीं किया और तीन पग भूमि दान में दे दी। विष्णु ने तीन पग में तीनों लोकों को नाप लिया। राजा बलि की दानशीलता से प्रभावित होकर भगवान विष्णु ने उन्हें पाताल लोक का राज्य दे दिया और आश्वासन दिया कि उनकी याद में हर साल दीपावली मनाई जाएगी।

 

त्रेतायुग में भगवान राम जब रावण को परास्त कर अयोध्या लौटे, तब अयोध्यावासियों ने दीप जलाकर उनका स्वागत किया और खुशियां मनाईं।

कृष्ण ने अत्याचारी नरकासुर का वध दीपावली से एक दिन पहले चतुर्दशी को किया था। इसी खुशी में अगले दिन अमावस्या को गोकुलवासियों ने दीप जलाकर खुशियां मनाईं।

कार्तिक अमावस्या के दिन सिखों के छठे गुरु हरगोविंद सिंह जी बादशाह जहांगीर की कैद से मुक्त होकर अमृतसर लौटे थे।

बौद्ध धर्म के प्रवर्तक गौतम बुद्ध के समर्थकों ने 2500 वर्ष पूर्व गौतम बुद्ध के स्वागत में हजारों दीप जलाकर दीपावली मनाई थी।

500 ईसा पूर्व की मोहनजोदड़ो सभ्यता के अवशेषों में मातृ-देवी की मूर्ति के दोनों ओर जलते दीप मिलते हैं, जिससे पता चलता है कि उस समय भी दीपावली मनाई जाती थी।

अमृतसर के स्वर्ण मंदिर का निर्माण भी दीपावली के दिन शुरू हुआ था।

जैन धर्म के चौबीसवें तीर्थंकर भगवान महावीर ने दीपावली के दिन ही बिहार के पावापुरी में शरीर त्याग दिया। महावीर निर्वाण संवत इसी दिन से शुरू होता है और इसे कई प्रांतों में वर्ष की शुरुआत माना जाता है।

श्रीकृष्ण ने आतताई नरकासुर का वध किया था, तब ब्रजवासियों ने दीप जलाकर खुशी प्रकट की थी।

 

मां काली ने राक्षसों का वध करने के बाद भी जब उनका क्रोध शांत नहीं हुआ तो भगवान शिव ने उनके चरणों में लेटकर उनका क्रोध शांत किया। इस याद में लक्ष्मी और काली की पूजा होती है।

मुगल सम्राट बहादुर शाह जफर दीपावली को त्योहार के रूप में मनाते थे। शाह आलम द्वितीय के समय में लाल किले में दीपावली पर कार्यक्रम होते थे जिनमें हिंदू और मुसलमान दोनों भाग लेते थे।

स्वामी रामतीर्थ का जन्म और महाप्रयाण दोनों दीपावली के दिन ही हुआ था। उन्होंने गंगा तट पर 'ओम' कहते हुए समाधि ली थी।

महर्षि दयानंद ने भी दीपावली के दिन अजमेर के निकट अवसान लिया। उन्होंने आर्य समाज की स्थापना की थी।

दीन-ए-इलाही के प्रवर्तक मुगल सम्राट अकबर के शासनकाल में दीपावली पर दौलतखाने के सामने 40 गज ऊंचे बांस पर बड़ा आकाशदीप लटकाया जाता था।

सम्राट विक्रमादित्य का राज्याभिषेक भी दीपावली के दिन हुआ था और दीप जलाकर खुशियां मनाई गई थीं।

ईसा पूर्व चौथी शताब्दी में कौटिल्य अर्थशास्त्र में कार्तिक अमावस्या पर मंदिरों और घाटों पर दीप जलाने का उल्लेख मिलता है।

हर प्रांत या क्षेत्र में दीवाली मनाने के कारण और तरीके अलग हैं पर सभी जगह यह त्यौहार पीढ़ियों से मनाया जा रहा है। लोग अपने घरों को साफ़ करते हैं, नए कपड़े पहनते हैं, मिठाइयों के उपहार बांटते हैं, और एक दूसरे से गले मिलते हैं। अंधकार पर प्रकाश की विजय का यह पर्व समाज में उल्लास, भाईचारे और प्रेम का संदेश फैलाता है।

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