मध्य प्रदेश के खरगोन जिले में स्थित ज्वालेश्वर महादेव मंदिर नर्मदा और महेश्वरी नदी के संगम पर बसा एक प्राचीन धार्मिक स्थल है। शिवभक्तों के लिए अत्यंत पवित्र इस मंदिर का उल्लेख पुराणों में मिलता है और इसका ऐतिहासिक महत्व भी कम नहीं है। कहा जाता है कि भगवान शिव ने यहीं त्रिपुरासुर राक्षस का वध करने के बाद अपने पाशुपत अस्त्र को नर्मदा नदी के पवित्र जल में अर्पित किया था। महाशिवरात्रि के अवसर पर यहां हर साल हजारों श्रद्धालु एकत्र होते हैं और भव्य आयोजन किए जाते हैं।
इतिहास के पन्नों से: माहिष्मती का गौरवशाली अतीत
महेश्वर, जिसे प्राचीन काल में ‘माहिष्मती’ के नाम से जाना जाता था, भारतीय इतिहास और पौराणिक कथाओं में एक विशेष स्थान रखता है। इतिहासकारों के अनुसार, यह नगर लगभग 4500 वर्ष पुराना है और इसका उल्लेख रामायण और महाभारत में भी मिलता है।
• रामायण काल में: यह नगर हैहय वंशी राजा सहस्रार्जुन की राजधानी था, जिन्होंने रावण को पराजित किया था।
• महाभारत काल में: यह अनूप जनपद की राजधानी रहा।
• मराठा शासन में: देवी अहिल्याबाई होलकर ने इसे अपनी राजधानी बनाया और अनेक मंदिरों और घाटों का निर्माण कराया।
महाशिवरात्रि पर विशेष आयोजन और रुद्राभिषेक
हर साल महाशिवरात्रि के अवसर पर इस मंदिर में विशेष पूजा, रुद्राभिषेक और भजन-कीर्तन का आयोजन किया जाता है। दूर-दूर से श्रद्धालु यहां आते हैं और भगवान शिव का जलाभिषेक कर आशीर्वाद प्राप्त करते हैं।
• भक्तों की मान्यता: मंदिर में स्थित स्वयंभू शिवलिंग की महिमा अत्यंत अद्भुत है। इसका उल्लेख नर्मदा पुराण सहित कई प्राचीन ग्रंथों में मिलता है।
• परंपराएं: महाशिवरात्रि के दिन महिलाएं विशेष पूजा करती हैं और ‘बिल्व पत्र’ अर्पित कर अपने परिवार की सुख-समृद्धि की कामना करती हैं।
• रुद्राभिषेक: विशेष मंत्रोच्चार के साथ दूध, दही, शहद, गंगा जल और बेलपत्र से भगवान शिव का अभिषेक किया जाता है।
मंदिर का जीर्णोद्धार: जनसहयोग से पुनर्निर्माण की पहल
समय के साथ इस प्राचीन मंदिर की संरचना कमजोर पड़ गई थी। हाल ही में आई नर्मदा बाढ़ से भी इसे भारी क्षति पहुंची थी। लेकिन स्थानीय भक्तों और श्रद्धालुओं ने मिलकर जनसहयोग के माध्यम से मंदिर के जीर्णोद्धार का कार्य शुरू किया।
अब तक क्या हुआ?
• बाउंड्री वॉल और मुख्य संरचना का नवीनीकरण पूरा हो चुका है।
• मंदिर परिसर को श्रद्धालुओं के लिए अधिक सुविधाजनक बनाया जा रहा है।
आगे की योजना
• मुख्य गर्भगृह की मरम्मत का कार्य जारी है।
• मंदिर को पुनः भव्य स्वरूप देने के लिए प्राचीन स्थापत्य शैली के अनुसार निर्माण कार्य किया जा रहा है।
शिव और त्रिपुरासुर वध की कथा
पौराणिक मान्यता के अनुसार, त्रिपुरासुर नामक राक्षस ने तीन महलों का निर्माण किया था, जो आकाश में विचरण करते थे। इन महलों को त्रिपुर कहा जाता था। त्रिपुरासुर को कोई भी सामान्य देवता या अस्त्र नहीं मार सकता था।
• शिव का निर्णय: देवताओं की प्रार्थना पर भगवान शिव ने पाशुपत अस्त्र का प्रयोग किया और त्रिपुरासुर का संहार किया।
• नर्मदा संगम का महत्व: त्रिपुरासुर वध के बाद, शिवजी को यह अहसास हुआ कि पाशुपत अस्त्र अत्यंत शक्तिशाली है और इसे सुरक्षित करना आवश्यक है। इसलिए उन्होंने इसे नर्मदा के पवित्र जल में अर्पित कर दिया। यह स्थान तभी से अत्यंत पावन और पूजनीय माना जाता है।
पुरातत्व विभाग का संरक्षण और चेतावनी
ज्वालेश्वर महादेव मंदिर को इसके ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व को देखते हुए भारतीय पुरातत्व विभाग (ASI) द्वारा संरक्षित स्थल घोषित किया गया है।
• वास्तुकला की विशेषता: मंदिर की शिल्पकला और निर्माण शैली प्राचीन भारतीय स्थापत्य कला का उत्कृष्ट उदाहरण है।
• संरक्षण नियम: पुरातत्व विभाग ने चेतावनी बोर्ड लगाया है, जिसमें मंदिर को किसी भी प्रकार की क्षति पहुंचाने को दंडनीय अपराध बताया गया है।
* अब श्रद्धालुओं के लिए दर्शन हुए आसान
* मंदिर के जीर्णोद्धार और व्यवस्थाओं में सुधार के कारण अब श्रद्धालुओं को दर्शन करने में अधिक सुविधा हो रही है।
क्या बदलाव हुए हैं?
• मंदिर परिसर को स्वच्छ और व्यवस्थित बनाया गया है।
• दर्शन के लिए अलग-अलग मार्ग निर्धारित किए गए हैं ताकि भीड़ को नियंत्रित किया जा सके।
• प्रकाश और जल सुविधा में सुधार किया गया है।