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भगवान जगन्नाथ रथ यात्रा 2025: पुरी में शुरू हुआ सात दिवसीय दिव्य उत्सव

भगवान जगन्नाथ रथ यात्रा 2025: पुरी में शुरू हुआ सात दिवसीय दिव्य उत्सव

पुरी की पावन धरती पर एक बार फिर श्रद्धा, भक्ति और आस्था का अद्भुत संगम दिखाई दे रहा है। हर साल की तरह इस बार भी जगन्नाथ रथ यात्रा का शुभारंभ होते ही हजारों की संख्या में भक्त पुरी की ओर उमड़ पड़े हैं। 2025 की जगन्नाथ रथ यात्रा की शुरुआत बेहद भव्य और भक्तिमय वातावरण में हो चुकी है। भगवान जगन्नाथ, उनके बड़े भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा आज अपने-अपने रथों में सवार होकर पुरी के गुंडिचा मंदिर के लिए प्रस्थान कर चुके हैं।

यह यात्रा न सिर्फ धार्मिक महत्व रखती है, बल्कि इसमें सामाजिक, सांस्कृतिक और भावनात्मक पहलू भी जुड़े हुए हैं। सबसे खास बात यह है कि इस यात्रा के दौरान भगवान जगन्नाथ सात दिनों तक गुंडिचा मंदिर में ठहरते हैं। यह ठहराव सिर्फ एक परंपरा नहीं, बल्कि इसके पीछे कई गहरे आध्यात्मिक और सामाजिक संदेश छिपे हैं।

भव्य रथ यात्रा का प्रारंभ

जैसे ही रथ यात्रा का शुभ मुहूर्त शुरू हुआ, वैसे ही पुरी की गलियों में भजन-कीर्तन और शंख-ध्वनि गूंजने लगी। हजारों भक्त रथ खींचने के लिए उमड़ पड़े। हर कोई बस एक ही भावना से भरा हुआ नजर आया कि भगवान को उनके नए निवास तक पहुंचाने में अपना योगदान दे सके। पुरी के मुख्य मार्ग को फूलों, रंगोली और पताकाओं से सजाया गया है। पूरा शहर भक्ति के रंग में रंग गया है।

गुंडिचा मंदिर को क्यों कहा जाता है मौसी का घर

पुरी के मुख्य मंदिर से लगभग तीन किलोमीटर दूर स्थित गुंडिचा मंदिर को भगवान जगन्नाथ की मौसी का घर माना जाता है। ऐसी मान्यता है कि भगवान हर साल अपनी मौसी के घर सात दिनों तक रहने जाते हैं। इस दौरान वे अपने भक्तों के और नजदीक आ जाते हैं। जो भक्त किसी कारण से सालभर भगवान के मुख्य मंदिर में नहीं जा पाते, उनके लिए यह समय किसी वरदान से कम नहीं होता।

गुंडिचा मंदिर में रुकने की परंपरा 

भगवान जगन्नाथ का गुंडिचा मंदिर में सात दिन रुकना एक प्रतीक है। यह दिखाता है कि भगवान सिर्फ अपने भव्य मंदिर में नहीं रहते, बल्कि वे अपने भक्तों के बीच आकर उनके सुख-दुख में शामिल होते हैं। रथ यात्रा के इस पड़ाव में भगवान आमजन के बीच रहते हैं, उनका आतिथ्य स्वीकार करते हैं और यह संदेश देते हैं कि ईश्वर हर किसी के लिए सुलभ हैं। यह प्रवास भक्तों के लिए विशेष पुण्यफलदायी माना जाता है।

गुंडिचा मार्जन: भगवान के आगमन की तैयारी

रथ यात्रा से एक दिन पहले गुंडिचा मंदिर में विशेष सफाई की जाती है, जिसे गुंडिचा मार्जन कहा जाता है। इस परंपरा के तहत मंदिर के हर कोने को साफ किया जाता है ताकि भगवान का स्वागत पूरी पवित्रता और शुद्धता के साथ हो। यह रस्म स्वयं श्री चैतन्य महाप्रभु ने शुरू की थी, जो आज तक निभाई जा रही है। भक्त इस दिन पूरे मन से सफाई में हिस्सा लेते हैं और इसे एक सेवा मानकर करते हैं।

मंदिर में होने वाले विशेष अनुष्ठान और भोग

भगवान जगन्नाथ के गुंडिचा मंदिर में प्रवास के दौरान वहां विशेष पूजा-अर्चना की जाती है। हर दिन नए प्रकार के भोग चढ़ाए जाते हैं, जिनमें उड़िया व्यंजनों का विशेष स्थान होता है। खासकर दाल, मीठा चावल, पीठा, महुआ और साबूदाने की खीर जैसे पारंपरिक व्यंजन भगवान को अर्पित किए जाते हैं। मंदिर को फूलों, दीपों और पारंपरिक सजावटी सामानों से सजाया जाता है, जिससे वातावरण और भी भव्य बन जाता है।

भक्तों के लिए एक विशेष अनुभव

इन सात दिनों के दौरान गुंडिचा मंदिर का वातावरण पूरी तरह भक्तिमय हो जाता है। देशभर से आए श्रद्धालु यहां दर्शन करने के लिए लंबी कतारों में खड़े रहते हैं। कोई भजन गाता है, कोई भगवान के लिए सेवा करता है, तो कोई मंदिर की सजावट में लगा होता है। इस दौरान मंदिर परिसर में एक प्रकार की दिव्यता महसूस होती है, जो भक्तों के मन को शांति और आनंद देती है।

बहुदा यात्रा: वापसी की तैयारी

सात दिन बाद भगवान जगन्नाथ अपनी मौसी के घर से मुख्य मंदिर लौटते हैं। इस वापसी को बहुदा यात्रा कहा जाता है। इस दिन फिर से तीनों रथों को भक्तों द्वारा खींचा जाता है और पूरी पुरी नगरी एक बार फिर जयकारों से गूंज उठती है। यह यात्रा भी उतनी ही भव्य और हर्षोल्लास से भरी होती है जितनी प्रथम यात्रा।

भगवान जगन्नाथ का यह विशेष रूप

रथ यात्रा के दौरान भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा अपने पारंपरिक रूप से कुछ अलग रूप में भक्तों के सामने आते हैं। लकड़ी से बने इन विशाल रथों में विराजमान तीनों भाई-बहन की झलक पाने के लिए लोग दूर-दूर से पहुंचते हैं। कई भक्त तो इन रथों की रस्सी को छू भर लेने को अपने जीवन का सबसे बड़ा सौभाग्य मानते हैं।

पुरी में आस्था का सागर लहराया

पुरी इन दिनों पूरी तरह भक्तों के रंग में रंगा हुआ है। रेलवे स्टेशन से लेकर मंदिर के पास तक हर जगह भक्ति, सेवा और प्रेम का अद्भुत दृश्य देखने को मिल रहा है। स्थानीय लोग भी बाहर से आए यात्रियों के स्वागत में कोई कसर नहीं छोड़ रहे। रथ यात्रा ने एक बार फिर यह साबित कर दिया है कि भगवान जगन्नाथ के प्रति भक्तों की आस्था हर साल नई ऊंचाइयों को छूती है।

 

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