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हिंदू धर्म में भगवान की भक्ति के हैं नौ मार्ग, जानिए ईश्वर तक पहुंचने के लिए किस मार्ग पर चल रहे हैं आप

हिंदू धर्म में भगवान की भक्ति के हैं नौ मार्ग, जानिए ईश्वर तक पहुंचने के लिए किस मार्ग पर चल रहे हैं आप

भक्ति के विभिन्न मार्ग

हर व्यक्ति अपनी भावना, उद्देश्य और साधन के अनुसार ईश्वर के करीब पहुँचने का मार्ग चुनता है। शास्त्रों में भक्ति केवल पूजाविधि नहीं, बल्कि ईश्वर को याद करना, सेवा करना, आत्मसमर्पण जैसी विविध अभिव्यक्तियाँ
शामिल हैं।

श्रीमद्भाग्वदगीता में भक्तों की चार श्रेणियाँ

श्रीकृष्ण ने गीता में चार प्रकार के भक्तों का वर्णन किया है —

आर्त (वो जो कष्ट में प्रभु को याद करते हैं)

जिज्ञासु (वो जो जानने की इच्छा से भक्ति करते हैं)

अर्थार्थी (वो जो भौतिक लाभ के लिए प्रभु को याद करते हैं)

ज्ञानी (वो जो निष्काम प्रेम से भक्ति करते हैं)

इनमें से अर्थार्थी को निम्न कोटि का माना गया है।

नवधा भक्ति — नौ प्रकार की भक्ति

भागवत पुराण और अन्य शास्त्रों में नवधा भक्ति (नौ प्रकार की भक्ति) का वर्णन है:

“श्रवणं कीर्तनं विष्णोः स्मरणं पादसेवनम्।
अर्चनं वन्दनं दास्यं सख्यमात्मनिवेदनम्”

ये नौ प्रकार हैं:

श्रवण — भगवान की कथा, गुण और लीला सुनना। कीर्तन — भगवान के अनंत गुणों का गुणगान करना।

स्मरण — प्रभु को सदैव मन में याद रखना।

पादसेवन— भगवान के चरणों की सेवा करना। अर्चन— पूजाअर्चना करना, भेंटसमर्पण करना। वंदन — प्रणाम,

वंदना करना। दास्य (— स्वयं को भगवान का दास मानना, सेवा भाव रखना। सख्य — मित्रवत संबंध रखना,

भगवान को मित्र मानना। आत्मनिवेदन — सम्पूर्ण आत्मसमर्पण, स्वयं को पूरी तरह भगवान को दे देना। इन नौ में श्रवण, कीर्तन और स्मरण को विशेष रूप से श्रेष्ठ माना गया है, एवं श्रवण को सर्वोत्तम माना गया है।

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