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India China trade: मोदी-जिनपिंग की मुलाकात से भी नहीं बनी बात, Rare Earth Magnets की सप्लाई बनी सबसे बड़ी बाधा

India China trade: मोदी-जिनपिंग की मुलाकात से भी नहीं बनी बात, Rare Earth Magnets की सप्लाई बनी सबसे बड़ी बाधा

भारत-चीन व्यापार में सबसे बड़ी रुकावट भारी दुर्लभ मृदा चुम्बकों (Rare Earth Magnets) का आयात है, जो इलेक्ट्रिक वाहनों और इलेक्ट्रॉनिक्स में अहम हैं। अप्रैल से चीन ने निर्यात बंद कर दिया है और भारतीय कंपनियों के कई आवेदन बीजिंग में लंबित हैं। मोदी-जिनपिंग की मुलाकात के बाद भी इस मामले में कोई ठोस सुधार नहीं हुआ है।

India China trade: हाल ही में भारत-चीन शिखर सम्मेलन और प्रधानमंत्री मोदी की सात साल बाद चीन यात्रा के बावजूद व्यापारिक संबंधों में तेजी नहीं आई। खासकर ऑटोमोबाइल और इलेक्ट्रॉनिक्स कंपनियों को भारी दुर्लभ मृदा चुम्बकों के आयात में समस्या का सामना करना पड़ रहा है। अप्रैल से चीन ने इसका निर्यात बंद कर दिया है और 51 भारतीय कंपनियों के आवेदन लंबित हैं। प्रेस नोट 3 और BIS नियमों के कारण कंपनियों को बाधाओं का सामना करना पड़ रहा है, जिससे जमीनी स्तर पर व्यापार धीमा और चुनौतीपूर्ण बना हुआ है।

दुर्लभ मृदा चुम्बकों का संकट

भारत-चीन व्यापार में सबसे बड़ी समस्या भारी दुर्लभ मृदा चुम्बकों (Rare Earth Magnets) का निर्यात रोक दिया जाना है। ये चुम्बक इलेक्ट्रिक वाहनों के मोटरों और अन्य इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों के लिए बेहद अहम हैं। अप्रैल से चीन ने इन चुम्बकों का निर्यात बंद कर दिया है, जिससे भारतीय कंपनियों को मजबूर होकर मोटर आयात करना पड़ा है। इस समय भारत की ओर से 51 आवेदन बीजिंग में लंबित हैं, लेकिन इसमें कोई विशेष प्रगति नहीं हुई है। उद्योग जगत के लिए यह स्थिति गंभीर चिंता का विषय बन गई है।

व्यापारिक प्रतिबंध और नियामक चुनौतियां

भारत में चीन से आयातित माल पर प्रेस नोट 3 के नियम अब भी लागू हैं। इसके तहत सीमा साझा करने वाले देशों से प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) पर कड़ी निगरानी रखी जाती है। कई कंपनियों को उम्मीद थी कि मोदी की चीन यात्रा के बाद इस नियम में नरमी आएगी, ताकि वे चीनी पार्टनर्स के साथ इलेक्ट्रॉनिक्स निर्माण में सहयोग कर सकें। लेकिन सरकार ने स्पष्ट कर दिया है कि इस मामले में फिलहाल कोई बदलाव नहीं होगा। साथ ही यह भी तय किया गया कि किसी परियोजना में भारतीय साझेदार का बहुमत अनिवार्य रहेगा।

इसके अलावा, चीन में बने उत्पादों को भारतीय मानक ब्यूरो (BIS) से मंजूरी लेना जरूरी है। BIS अभी भी चीनी फैक्ट्रियों को मंजूरी नहीं दे रहा है, जिससे आयात में बाधा उत्पन्न हो रही है। इसका असर भारतीय उद्योगों पर पड़ रहा है और कई कंपनियों के उत्पादन और व्यवसाय प्रभावित हो रहे हैं।

चीन की सप्लाई रुकावट से भारत के वाहन उद्योग में चुनौती

एक वरिष्ठ ऑटो उद्योग अधिकारी ने बताया कि उच्च स्तरीय वार्ता और शिखर सम्मेलन के बावजूद दुर्लभ मृदा चुम्बकों की सप्लाई में कोई सुधार नहीं हुआ है। चीन ने शुरू में इस निर्यात को फिर से शुरू करने की बात कही थी, लेकिन बाद में उन्होंने अपना रुख बदल दिया। इसके कारण भारतीय कंपनियां वैकल्पिक व्यवस्था तलाशने पर मजबूर हैं।

कुछ कंपनियां पहले से ही भारी दुर्लभ मृदा चुम्बकों से सुसज्जित सब-असेंबली का आयात शुरू कर चुकी हैं। वहीं, दोपहिया वाहन निर्माता हल्के चुंबकों का इस्तेमाल कर रहे हैं, लेकिन यह समाधान तिपहिया और भारी वाहनों के लिए पर्याप्त नहीं है, क्योंकि उन्हें उच्च टॉर्क की जरूरत होती है। उद्योग विशेषज्ञों का कहना है कि यदि यह स्थिति लंबे समय तक बनी रही, तो भारत के इलेक्ट्रिक वाहन और इलेक्ट्रॉनिक्स सेक्टर पर गंभीर असर पड़ सकता है।

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