भारत ने संकेत दिया है कि वह रूस से तेल आयात घटाने को तैयार है, लेकिन इसके लिए अमेरिका को ईरान और वेनेजुएला पर लगे प्रतिबंध हटाने होंगे। अमेरिका लगातार भारत पर रूसी तेल न खरीदने का दबाव बना रहा है और टैरिफ भी लगाया है, जबकि भारत ने ऊर्जा सुरक्षा को प्राथमिकता बताया।
Oil imports: भारत और अमेरिका के बीच रूसी तेल आयात को लेकर तनातनी बढ़ गई है। राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा भारत पर 50% तक टैरिफ लगाने और वीजा शुल्क बढ़ाने के बाद नई दिल्ली ने साफ किया है कि रूस पर निर्भरता कम करने के लिए उसे वैकल्पिक सप्लाई की गारंटी चाहिए। ब्लूमबर्ग की रिपोर्ट के अनुसार, हालिया अमेरिका दौरे पर भारतीय अधिकारियों ने प्रस्ताव दिया कि ईरान और वेनेजुएला से आयात की अनुमति मिले तो रूस से खरीदी घटाई जा सकती है। अमेरिका फिलहाल यूक्रेन युद्ध का हवाला देकर रूस से तेल खरीदने पर आपत्ति जता रहा है।
ट्रंप का दबाव और भारत की शर्त
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने रूस से तेल खरीद के चलते भारत पर पहले ही भारी टैरिफ लगा दिए हैं। इंडिया से आने वाले सामान पर 50 फीसदी तक का टैरिफ झोंक दिया गया है और इसके साथ ही 25 फीसदी का अतिरिक्त टैक्स सिर्फ इसलिए लगाया गया क्योंकि भारत रूस से तेल खरीद रहा है। इतना ही नहीं, ट्रंप प्रशासन ने वीजा आवेदन शुल्क भी बढ़ा दिया है, जिससे दोनों देशों के बीच तनाव और गहरा गया है।
भारत ने साफ कहा है कि देश को अपनी ऊर्जा सुरक्षा के साथ कोई समझौता नहीं करना है। अगर अमेरिका चाहता है कि रूस से तेल आयात कम हो, तो उसे भारत को ईरान और वेनेजुएला से तेल खरीदने की अनुमति दिलानी होगी।
भारत के लिए सस्ते विकल्प
ब्लूमबर्ग की एक रिपोर्ट बताती है कि भारत के पास रूस के अलावा भी सस्ते तेल के विकल्प मौजूद हैं। इनमें ईरान और वेनेजुएला सबसे बड़े सप्लायर हो सकते हैं। लेकिन दिक्कत यह है कि इन दोनों देशों पर अमेरिकी और अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंध लगे हुए हैं। भारत ने हाल ही में अमेरिका दौरे के दौरान यह मुद्दा जोर-शोर से उठाया और कहा कि अगर रूस से तेल खरीद कम करनी है तो उसके बदले विकल्प खुले होने चाहिए।
भारतीय अधिकारियों ने साफ कहा कि देश को अपनी 140 करोड़ जनता के लिए सस्ते और स्थिर तेल की जरूरत है। ईरान और वेनेजुएला जैसे देशों से भारत को न केवल सस्ता तेल मिल सकता है बल्कि लंबी अवधि के लिए स्थिर सप्लाई भी सुनिश्चित की जा सकती है।
अमेरिका से आयात की तैयारी
हालांकि भारत पूरी तरह अमेरिका को नजरअंदाज नहीं कर रहा है। केंद्रीय वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल ने अपने अमेरिका दौरे पर संकेत दिया कि आने वाले समय में भारत अमेरिका से भी तेल और गैस की खरीद बढ़ा सकता है। यह कदम भारत की ऊर्जा जरूरतों में विविधता लाने की रणनीति का हिस्सा हो सकता है।
अभी भारत अपनी कुल जरूरत का 90 फीसदी क्रूड ऑयल विदेशों से खरीदता है। इसमें सबसे बड़ा हिस्सा रूस और खाड़ी देशों का है। लेकिन बढ़ते दबाव और भू-राजनीतिक हालात को देखते हुए भारत अब अपने विकल्पों का दायरा बढ़ाना चाहता है।
रूस से अभी भी जारी है खरीदारी
अमेरिका के दबाव और पेनाल्टी लगाने के बावजूद भारत फिलहाल रूस से तेल खरीद रहा है। वजह साफ है कि रूस भारत को सस्ता तेल दे रहा है और इससे घरेलू बाजार में पेट्रोल-डीजल की कीमतें नियंत्रित रखने में मदद मिल रही है। लेकिन भारत यह भी जानता है कि लंबे समय तक एक ही सप्लायर पर निर्भर रहना जोखिम भरा हो सकता है।
इसीलिए भारत ने अमेरिका को साफ कह दिया है कि अगर वह चाहता है कि रूस पर निर्भरता घटे तो उसे पहले ईरान और वेनेजुएला के रास्ते खोलने होंगे।
अंतरराष्ट्रीय राजनीति में भारत की स्थिति
भारत का यह कदम दिखाता है कि वह दबाव की राजनीति के आगे झुकने वाला नहीं है। उसने अमेरिका को साफ संदेश दिया है कि देश की ऊर्जा सुरक्षा को किसी भी हालत में राजनीतिक एजेंडे की भेंट नहीं चढ़ाया जाएगा। भारत ने यह भी जाहिर कर दिया है कि रूस से दूरी बनाने के लिए उसे व्यावहारिक और सस्ते विकल्प चाहिए होंगे।