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DMK मंत्री टीआरबी राजा का बयान: ‘100 साल बाद भी उत्तर भारत में महिलाओं की हालत नहीं बदली’

DMK मंत्री टीआरबी राजा का बयान: ‘100 साल बाद भी उत्तर भारत में महिलाओं की हालत नहीं बदली’

तमिलनाडु सरकार के मंत्री टीआरबी राजा विवादों में घिर गए हैं। महिलाओं पर की गई उनकी टिप्पणी के बाद सवाल खड़े हो रहे हैं। बीजेपी ने उनकी पार्टी, द्रविड़ मुन्नेत्र कझगम, पर महिलाओं का अपमान करने का आरोप लगाया है।

चेन्नई: तमिलनाडु सरकार के मंत्री टीआरबी राजा (TRB Rajaa) हाल ही में महिलाओं पर दिए गए विवादित बयान के कारण सुर्खियों में हैं। राजा ने कहा कि तमिलनाडु और भारत के अन्य राज्यों, विशेषकर उत्तर भारत की महिलाओं में काफी अंतर है। उनका बयान यह कहते हुए विवादास्पद हो गया कि 100 साल बाद भी उत्तर भारत में महिलाओं की स्थिति में कोई बदलाव नहीं आया है।

इस बयान के बाद राजनीतिक हलकों में गर्मी बढ़ गई है और बीजेपी ने डीएमके (DMK) पर उत्तर भारतीय महिलाओं का अपमान करने का आरोप लगाते हुए तीखा विरोध जताया है।

टीआरबी राजा का विवादित बयान

टीआरबी राजा ने एक सार्वजनिक बयान में कहा, तमिलनाडु और अन्य राज्यों की महिलाओं में बहुत फर्क है। उत्तर भारत की महिलाओं से मिलते ही लोग पूछते हैं कि आपके पति कहां काम करते हैं, जबकि यहां की महिलाओं से पूछते हैं कि आप कहां काम करती हैं। यह बदलाव रातों-रात नहीं आया, इसे लाने में 100 दिन लग गए।

राजा के इस बयान ने सियासत में हलचल मचा दी है। कई लोग इसे उत्तर भारतीय महिलाओं की तुलना में दक्षिण भारत की महिलाओं को श्रेष्ठ दिखाने वाला टिप्पणी मान रहे हैं, जबकि आलोचक इसे क्षेत्रीय भेदभाव और महिलाओं का अपमान बताते हैं।

बीजेपी का तीखा हमला

बीजेपी प्रवक्ता शहजाद पूनावाला ने टीआरबी राजा के बयान पर निशाना साधते हुए कहा, "एक बार फिर DMK ने सीमा लांघते हुए यूपी-बिहार समेत पूरे उत्तर भारत की महिलाओं का अपमान किया है। शहजाद ने आगे कहा कि, "कांग्रेस ने बिहार को बीड़ी का राज्य कहा, तेलंगाना के सीएम रेवंत रेड्डी ने बिहार के डीएनए को अपमानित किया। अब DMK ने उत्तर भारत की महिलाओं का अपमान किया। यह सवाल राज्यसभा नेता तेजस्वी यादव के लिए भी है – वे इसपर चुप क्यों हैं?

बीजेपी ने इस बयान को राजनीतिक और सांस्कृतिक विवाद में बदलने की कोशिश की है और इसे चुनावी रणनीति के हिस्से के रूप में देखा जा रहा है।टीआरबी राजा का बयान सिर्फ महिलाओं तक सीमित नहीं रह गया, बल्कि राज्य और केंद्र की राजनीति में भी चर्चा का विषय बन गया है। राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि ऐसे बयान अक्सर क्षेत्रीय और सांस्कृतिक विभाजन पैदा करने वाले होते हैं, और इसे विपक्ष और अन्य दल चुनावी मुद्दा बना सकते हैं।

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