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अमेरिका-चीन ट्रेड नीति पर पूर्व राजदूत शेषाद्री का बड़ा अलर्ट, पाकिस्तान को लेकर किया इशारा

अमेरिका-चीन ट्रेड नीति पर पूर्व राजदूत शेषाद्री का बड़ा अलर्ट, पाकिस्तान को लेकर किया इशारा

भारत के पूर्व राजदूत वी.एस. शेषाद्री ने अमेरिका और चीन की व्यापार नीतियों की कड़ी आलोचना की है। उन्होंने कहा कि अमेरिकी टैरिफ और चीन की आर्थिक वर्चस्व की कोशिशें वैश्विक व्यापार को अस्थिर कर रही हैं। उन्होंने परोक्ष रूप से पाकिस्तान पर भी टिप्पणी की कि उसने द्विपक्षीय समझौते के जरिए आत्मघाती कदम उठाया है।

China US Trade Policies: पूर्व भारतीय राजदूत वी.एस. शेषाद्री ने अमेरिका और चीन की व्यापार नीतियों पर चिंता व्यक्त की है। इंडिया इंटरनेशनल यूनिवर्सिटी ऑफ लीगल एजुकेशन एंड रिसर्च में व्याख्यान के दौरान उन्होंने कहा कि अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप की टैरिफ पॉलिसी और चीन की आर्थिक वर्चस्व की कोशिशों ने वैश्विक व्यापार में अस्थिरता पैदा कर दी है। शेषाद्री ने परोक्ष रूप से पाकिस्तान पर भी निशाना साधते हुए कहा कि एक पड़ोसी देश ने द्विपक्षीय व्यापार समझौते की आड़ में आत्मघाती कदम उठाए हैं। उन्होंने अमेरिका में टैरिफ पर कानूनी विवाद और इसके संभावित प्रभावों का भी उल्लेख किया।

अमेरिका की टैरिफ पॉलिसी से वैश्विक व्यापार प्रभावित

पूर्व राजदूत शेषाद्री ने इंडिया इंटरनेशनल यूनिवर्सिटी ऑफ लीगल एजुकेशन एंड रिसर्च में “अंतरराष्ट्रीय व्यापार कानून: चुनौतियां एवं दृष्टिकोण” विषय पर व्याख्यान देते हुए बताया कि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की टैरिफ पॉलिसी ने दुनिया भर में व्यापार को अस्थिर कर दिया है। उनके अनुसार ट्रंप प्रशासन की एकतरफा कार्रवाइयां केवल व्यापार संतुलन के लिए नहीं बल्कि आर्थिक सुरक्षा और विदेश नीति से जुड़े व्यापक लक्ष्यों के लिए भी इस्तेमाल की जा रही हैं।

चीन-अमेरिका नीतियों का वैश्विक प्रभाव

शेषाद्री ने कहा कि चीन भी वैश्विक आर्थिक प्रभुत्व के लिए लगातार प्रयास कर रहा है। चीन की प्रौद्योगिकी और निवेश की नीतियों ने अंतरराष्ट्रीय बाजार में दबाव पैदा किया है। उन्होंने बताया कि अमेरिका और चीन की नीतियों के कारण वैश्विक व्यापार में पूर्वानुमान और स्थिरता कमजोर हो गई है। इससे छोटे और मध्यम देशों को अपनी व्यापार रणनीति बनाना मुश्किल हो गया है।

अमेरिका, यूरोपीय संघ और चीन का वैश्विक प्रभाव

वैश्विक व्यापार में अमेरिका, यूरोपीय संघ और चीन की हिस्सेदारी लगभग 42 प्रतिशत है। शेषाद्री के अनुसार अमेरिका की एकतरफा टैरिफ पॉलिसी ने मुक्त व्यापार समझौते (FTA) भागीदारों को भी प्रभावित किया है। कई बार अमेरिका ने “जवाबी शुल्क” के बहाने अपने सहयोगियों पर टैरिफ लगाया है। यह कदम WTO के नियमों के विरोधाभासी हो सकता है।

द्विपक्षीय समझौते और व्यापार का दबाव

पूर्व राजदूत ने बताया कि अमेरिका द्वारा थोपे गए द्विपक्षीय समझौते अक्सर साझेदार देशों को ऊर्जा, कृषि और रक्षा क्षेत्र में अमेरिका से आयात करने के लिए बाध्य करते हैं। इसके बदले उन्हें केवल आंशिक टैरिफ कटौती दी जाती है। शेषाद्री ने कहा कि इससे व्यापारिक स्वतंत्रता सीमित होती है और छोटे देश आर्थिक दबाव में आ जाते हैं।

शेषाद्री ने पाकिस्तान का नाम लिए बिना कहा, “एक पड़ोसी देश ने द्विपक्षीय व्यापार समझौते की आड़ में अपने संसाधनों को अमेरिका को सौंपकर एक आत्मघाती रास्ता चुना है।” उन्होंने कहा कि ऐसे कदम दीर्घकालिक आर्थिक और राजनीतिक दृष्टि से नुकसानदेह हो सकते हैं। उन्होंने यह भी बताया कि अमेरिका में राष्ट्रपति की टैरिफ लगाने की शक्तियों के खिलाफ कानूनी चुनौती चल रही है और अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट इस पर फैसला सुनाएगा।

अमेरिकी टैरिफ का वैश्विक असर

शेषाद्री के अनुसार अमेरिकी टैरिफ और अन्य आर्थिक उपाय अब केवल व्यापार संतुलन तक सीमित नहीं रहे। इनका इस्तेमाल रूसी तेल के खरीदारों को दंडित करने, मादक पदार्थों की तस्करी रोकने और आव्रजन नियंत्रण जैसी नीति कार्रवाइयों के लिए भी किया जा रहा है। इससे वैश्विक व्यापार में अस्थिरता बढ़ रही है और छोटे देशों की योजनाओं पर दबाव बन रहा है।

भारत पर पड़ने वाले प्रभाव

शेषाद्री ने कहा कि अमेरिका और चीन की नीतियों का प्रभाव भारत पर भी दिखाई दे रहा है। भारतीय कंपनियों को निर्यात और आयात में अनिश्चितता का सामना करना पड़ रहा है। वैश्विक बाजार में भारत को अपनी प्रतिस्पर्धात्मक क्षमता बनाए रखने के लिए इन बदलावों को ध्यान में रखना होगा।

वैश्विक व्यापार के लिए चुनौती

पूर्व राजदूत ने यह भी बताया कि वैश्विक व्यापार में स्थिरता और पूर्वानुमान की कमी से निवेशकों और कारोबारियों के निर्णय प्रभावित हो रहे हैं। इसके अलावा तकनीकी और डिजिटल ट्रेड में भी अमेरिका और चीन की नीतियों से अप्रत्याशित असर पड़ रहा है।

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