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ट्रंप की सख्ती बेअसर, हंगरी अब भी रूस से खरीद रहा 80 फीसदी तेल

ट्रंप की सख्ती बेअसर, हंगरी अब भी रूस से खरीद रहा 80 फीसदी तेल

नाटो सदस्य हंगरी अपनी 80% से अधिक तेल की जरूरत रूस से पूरी कर रहा है और अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के दबाव को नजरअंदाज कर रहा है। वहीं, ट्रंप ने भारत पर रूस से तेल और हथियार खरीदने के कारण 50% तक टैरिफ लगाया है। यह स्थिति नाटो की एकजुटता पर सवाल खड़े करती है।

Russian Oil: अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप जहां भारत पर रूस से ऊर्जा और हथियार खरीदने को लेकर भारी टैरिफ लगा रहे हैं, वहीं नाटो सदस्य हंगरी खुलेआम 80% से अधिक तेल रूस से आयात कर रहा है। प्रधानमंत्री विक्टर ऑर्बान का कहना है कि रूसी आपूर्ति बंद होने पर उनकी अर्थव्यवस्था तबाह हो जाएगी। अटलांटिक काउंसिल की रिपोर्ट के अनुसार, युद्ध से पहले हंगरी 61% तेल रूस से लेता था, जो अब 86% तक बढ़ गया है। ट्रंप ने इस निर्भरता को नाटो की कमजोरी बताया और यूरोपीय देशों पर तीखा हमला किया।

हंगरी की ऊर्जा जरूरतें रूस से पूरी

हंगरी आज अपनी कुल कच्चे तेल की जरूरत का 80 फीसदी से ज्यादा हिस्सा रूस से पूरा करता है। यही वजह है कि नाटो का सदस्य होने के बावजूद वह रूस पर सबसे ज्यादा निर्भर देश बन गया है। हंगरी के प्रधानमंत्री विक्टर ऑर्बान कई बार साफ कह चुके हैं कि वे रूस से तेल और गैस लेना जारी रखेंगे, चाहे अमेरिका या उसके राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप कितना भी दबाव डालें। ऑर्बान का तर्क है कि अगर रूसी ऊर्जा सप्लाई बंद कर दी गई तो हंगरी की अर्थव्यवस्था धराशायी हो जाएगी।

भारत पर भारी टैरिफ

दूसरी ओर अमेरिका ने भारत के लिए बिल्कुल अलग नीति अपनाई है। रूस से तेल और हथियार खरीदने के चलते ट्रंप प्रशासन ने भारत पर 50 फीसदी तक के भारी-भरकम टैरिफ लगा दिए हैं। इनमें से 25 फीसदी अतिरिक्त टैक्स हर उस सौदे पर है जिसका संबंध रूस से हो। पश्चिमी देशों का कहना है कि रूस से खरीदे जाने वाले तेल और गैस की कमाई यूक्रेन युद्ध को फंड कर रही है। भारत ने इन टैक्सों को अनुचित बताया और कहा कि वह अपनी 140 करोड़ जनता की ऊर्जा जरूरतों को राजनीति के नाम पर कुर्बान नहीं कर सकता। विदेश मंत्री एस जयशंकर कई बार साफ कर चुके हैं कि भारत जहां भी सस्ता तेल मिलेगा, वहां से खरीदेगा।

युद्ध से पहले और बाद की तस्वीर

हंगरी की रूस पर निर्भरता समय के साथ और बढ़ती जा रही है। अटलांटिक काउंसिल की एक रिपोर्ट बताती है कि युद्ध शुरू होने से पहले हंगरी करीब 61 फीसदी कच्चा तेल रूस से लेता था। लेकिन अब यह आंकड़ा बढ़कर 86 फीसदी हो चुका है। पड़ोसी देश स्लोवाकिया तो लगभग पूरा तेल रूस से खरीद रहा है। दोनों देश अब भी तुर्कस्ट्रीम पाइपलाइन से गैस पा रहे हैं, जबकि यूरोपीय संघ ने 2022 में यह वादा किया था कि वह रूस की ऊर्जा पर अपनी निर्भरता खत्म करेगा।

नाटो की कमजोरी पर ट्रंप का निशाना

डोनाल्ड ट्रंप ने इस मुद्दे को नाटो की सबसे बड़ी कमजोरी बताया। उन्होंने संयुक्त राष्ट्र महासभा में कहा कि चीन और भारत तो रूस से तेल खरीदकर युद्ध को फंड कर ही रहे हैं, लेकिन यह और भी शर्मनाक है कि नाटो के सदस्य देश भी अभी तक रूस पर निर्भर हैं। ट्रंप ने तंज कसते हुए कहा कि ये देश खुद अपने खिलाफ युद्ध को फंड कर रहे हैं। उनका मानना है कि जब तक सभी नाटो देश मिलकर रूसी तेल खरीदना बंद नहीं करेंगे, तब तक रूस पर लगाए गए प्रतिबंधों का कोई मतलब नहीं है।

हंगरी का दावा और असली चुनौती

हंगरी का दावा है कि उसके पास रूस के अलावा कोई दूसरा विकल्प नहीं है। लेकिन सवाल यह भी है कि पिछले तीन सालों में उसने विकल्प क्यों नहीं तलाशे। उल्टा उसने रूस पर निर्भरता और बढ़ा दी और अरबों डॉलर रूस को दे दिए। नाटो के लिए यह स्थिति बेहद असहज है। एक तरफ वह रूस के खिलाफ सख्ती दिखाने की बात करता है, दूसरी तरफ उसका ही एक सदस्य रूस की ऊर्जा सप्लाई को जिंदा रखे हुए है।

यूरोप की राजनीति में नया विवाद

हंगरी का यह रवैया यूरोप की राजनीति में एक बड़ा विवाद बनता जा रहा है। जहां एक ओर यूरोपीय संघ के बाकी देश रूस के खिलाफ कदम बढ़ाने की कोशिश कर रहे हैं, वहीं हंगरी का रूस से तेल लेना इन प्रयासों को कमजोर कर रहा है। अमेरिका के लिए भी यह एक कड़वा सच है कि नाटो का सबसे कमजोर कड़ी उसका ही एक सदस्य देश है, जो अब भी रूस की ऊर्जा लाइनों पर टिका हुआ है।

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