राजस्थान में धर्मांतरण बिल के खिलाफ दो दर्जन से अधिक मानवाधिकार और सामाजिक संगठन एक फोरम के तहत विरोध जता रहे हैं। फोरम गवर्नर से बिल को मंजूरी नहीं देने की अपील करेगा और आवश्यकता पड़ने पर सुप्रीम कोर्ट में कानूनी चुनौती देगा। संगठन का मानना है कि यह बिल संविधान की भावना और धार्मिक स्वतंत्रता के खिलाफ है।
फोरम गठन: राजस्थान में 2025 में विधानसभा से पारित धर्मांतरण बिल को लेकर दो दर्जन से अधिक मानवाधिकार, सामाजिक और राजनीतिक संगठनों ने एक फोरम बनाया है। इस फोरम का उद्देश्य गवर्नर से बिल को मंजूरी नहीं देने की अपील करना और सुप्रीम कोर्ट में कानूनी चुनौती देने की तैयारी करना है। संगठन का कहना है कि यह बिल नागरिकों के धार्मिक अधिकारों और अल्पसंख्यक स्वतंत्रता के खिलाफ है, इसलिए व्यापक जागरूकता और कानूनी कार्रवाई जरूरी है।
फोरम गठन के जरिए बिल का विरोध
राजस्थान में धर्मांतरण बिल को लेकर सक्रिय दो दर्जन से अधिक मानवाधिकार, सामाजिक और राजनीतिक संगठनों ने मिलकर एक फोरम का गठन किया है। इस फोरम का उद्देश्य गवर्नर से बिल को मंजूरी नहीं देने की अपील करना और आवश्यकता पड़ने पर सुप्रीम कोर्ट में कानूनी चुनौती देना है। फोरम ने लोगों को जागरूक करने के लिए हस्ताक्षर अभियान और स्थानीय सभाओं की योजना भी बनाई है।
फोरम का कहना है कि यह बिल संविधान की भावना के खिलाफ है और समाज में नफरत फैलाने का काम करेगा। संगठनों का मानना है कि बिल बनने पर धार्मिक स्वतंत्रता और अल्पसंख्यक अधिकारों का हनन होगा।
कौन-कौन शामिल हैं फोरम में
फोरम में पीयूसीएल, राजस्थान बौद्ध महासंघ, जमाअत-ए-इस्लामी, जमीअत उलेमा-ए-हिन्द, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी, दलित मुस्लिम एकता मंच, जयपुर क्रिश्चियन फेलोशिप, राजस्थान समग्र सेवा संघ, APCR राजस्थान, वेलफेयर पार्टी, एनएफआईडब्ल्यू, AIDWA, दमन प्रतिरोध आंदोलन, यूथ बुद्धिस्ट सोसाइटी ऑफ इंडिया, एसडीपीआई और राजस्थान नागरिक मंच प्रमुख हैं।
इन संगठनों ने मिलकर यह संदेश दिया कि बिल बनने पर नागरिकों के धार्मिक अधिकारों और पूजा पद्धति पर असर पड़ेगा। फोरम ने मसीही समुदाय के पीड़ित उदाहरण भी पेश किए, जिन्होंने धार्मिक उत्पीड़न का सामना किया।
इतिहास और पहले के प्रयास
धर्मांतरण बिल राजस्थान में पहली बार 2005 में तत्कालीन वसुंधरा राजे सरकार द्वारा पेश किया गया था। गवर्नर और राष्ट्रपति की मंजूरी प्रक्रिया के कारण यह कानून नहीं बन पाया। 2008 में और 2018 में भी बिल संसद या गवर्नर स्तर पर लंबित रहा।
2023 में बीजेपी की नई सरकार के तहत बिल को संशोधित कर 31 अगस्त को कैबिनेट में मंजूरी दी गई और 9 सितंबर को विधानसभा में पास कराया गया। अब फोरम इसका विरोध करते हुए सुप्रीम कोर्ट तक जाने की तैयारी कर रहा है।