बिहार के नालंदा जिले की राजगीर विधानसभा सीट का राजनीतिक इतिहास उतार-चढ़ाव भरा रहा है। शुरुआत में कांग्रेस ने इस सीट पर मजबूत पकड़ बनाई थी, लेकिन समय के साथ विभिन्न पार्टियों का प्रभाव बढ़ा।
राजगीर: बिहार के नालंदा जिले की राजगीर विधानसभा सीट ने दशकों से राजनीतिक उतार-चढ़ाव देखे हैं। शुरुआत में यह क्षेत्र कांग्रेस का मजबूत गढ़ माना जाता था, लेकिन समय के साथ बीजेपी और जनता दल यूनाइटेड (JDU) ने इस सीट पर अपनी पकड़ बना ली। राजगीर विधानसभा का राजनीतिक इतिहास न सिर्फ स्थानीय बल्कि राज्य और राष्ट्रीय राजनीति में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता रहा है।
1952 से 1962 तक: कांग्रेस का दबदबा
राजगीर विधानसभा सीट पर सबसे पहले 1952 में कांग्रेस ने कब्जा किया। बलदेव प्रसाद ने इस क्षेत्र से जीत दर्ज की, और 1957 में भी कांग्रेस ने अपनी पकड़ बनाए रखी। 1962 में बलदेव प्रसाद ने दोबारा जीत हासिल कर कांग्रेस के वर्चस्व को मजबूत किया। इस दौर में कांग्रेस की पकड़ क्षेत्र के ग्रामीण और शहरी मतदाताओं दोनों में अच्छी रही, और पार्टी ने विकास और सामाजिक योजनाओं के जरिए अपनी स्थिति मजबूत की।
1967 से 1977: जनसंघ और वामपंथ की बढ़त
1967 में भारतीय जनसंघ के यदुनंदन प्रसाद ने कांग्रेस को हराकर यह साफ कर दिया कि इस क्षेत्र में जनसंघ का प्रभाव बढ़ रहा है। 1969 में यदुनंदन प्रसाद ने फिर से जीत दर्ज की। 1972 में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (भाकपा) के चन्द्रदेव प्रसाद हिमांशु ने जीत हासिल कर वामपंथी राजनीति की प्रभावशीलता को बढ़ाया।
1977 में जनता पार्टी के सत्यदेव नारायण आर्य ने जीत दर्ज की, जिसने संकेत दिया कि जनता पार्टी का प्रभाव क्षेत्र में लगातार बढ़ रहा है। इस समय राजनीतिक स्थिरता में बदलाव और राष्ट्रीय स्तर पर जनता पार्टी की लोकप्रियता ने स्थानीय चुनावों में भी अपनी छाप छोड़ी।
1980 से 2010: बीजेपी का दबदबा
1980 में बीजेपी के सत्यदेव नारायण आर्य ने जीत हासिल कर पार्टी की पकड़ मजबूत की। 1985 और 1990 में भी सत्यदेव नारायण आर्य विजयी रहे। 1995 और 2000 में समता पार्टी और आरजेडी की बढ़ती लोकप्रियता के बावजूद सत्यदेव नारायण आर्य ने अपनी पकड़ बनाए रखी। 2005 और 2010 में भी बीजेपी ने राजगीर सीट पर दबदबा बनाए रखा।
इस दौर में बीजेपी ने क्षेत्र में विकास और संगठनात्मक मजबूती के जरिए मतदाताओं का भरोसा बनाए रखा। पार्टी की रणनीति, सामाजिक विकास योजनाओं और स्थानीय नेताओं की सक्रियता ने बीजेपी की पकड़ को मजबूत किया।
2015 और 2020: JDU की बढ़त
2015 में JDU के रवि ज्योति कुमार ने राजगीर विधानसभा सीट जीतकर बीजेपी के वर्चस्व को तोड़ा। 2020 में भी JDU के कौशल किशोर ने जीत दर्ज कर पार्टी की पकड़ को और मजबूत किया। JDU की सफलता इस क्षेत्र में विकास योजनाओं, स्थानीय नेताओं की लोकप्रियता और गठबंधन राजनीति के कारण हुई। इसके साथ ही भाजपा और जेडीयू के बीच सियासी समीकरण बदल गए, और क्षेत्र में राजनीतिक संतुलन नया रूप लेने लगा।
राजगीर विधानसभा क्षेत्र में 1952 से 2000 तक कई राजनीतिक दलों के बीच सत्ता की आवाजाही रही। कांग्रेस, भारतीय जनसंघ, बीजेपी और जनता दल के बीच लगातार चुनावी संघर्ष होता रहा।