Rohini Vrat 2025: शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि पर रखा जाता हैं रोहिणी व्रत, जानिए इसके नियम और पूजा विधि

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जैन धर्म में रोहिणी व्रत का विशेष महत्व है, जो हर माह शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि पर किया जाता है। यह व्रत मुख्य रूप से महिलाओं द्वारा पति की दीर्घायु, सुख-शांति और समृद्धि की कामना के लिए रखा जाता है। मान्यता है कि इस व्रत को करने से साधक के जीवन की सभी समस्याएं दूर हो जाती हैं। व्रत के दिन सूर्योदय के बाद जब रोहिणी नक्षत्र प्रभावी होता है, तब व्रत का पालन आरंभ किया जाता हैं।

इस अवसर पर भगवान वासुपूज्य की विशेष पूजा-अर्चना का विधान होता है। फरवरी माह में यह व्रत आज (शुक्रवार) 07 फरवरी 2025 को पड़ रहा है। इस पवित्र दिन पर श्रद्धालु विधिपूर्वक व्रत करते हैं और भगवान की आराधना से अपने जीवन को मंगलमय बनाने की प्रार्थना करते हैं।

रोहिणी व्रत की पूजा विधि 

रोहिणी व्रत के शुभ दिन पर व्रतधारियों को विशेष पूजा विधि का पालन करना चाहिए। व्रत की सफलता और पुण्य फल की प्राप्ति के लिए निम्नलिखित विधि अपनाई जाती है:

* ब्रह्म मुहूर्त में स्नान: प्रातः ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान करें। स्नान के जल में गंगाजल मिलाना शुभ माना जाता है।
* व्रत संकल्प: आचमन कर भगवान वासुपूज्य का ध्यान करते हुए व्रत का संकल्प लें और सूर्य भगवान को जल अर्पित करें।
* पूजा स्थल की तैयारी: पूजा स्थल को स्वच्छ करें और वेदी पर भगवान वासुपूज्य की मूर्ति या तस्वीर स्थापित करें।
* पूजन सामग्री अर्पण: भगवान को फल-फूल, गंध, दूर्वा, नैवेद्य आदि अर्पित करें। पूरी श्रद्धा और भक्ति के साथ वासुपूज्य भगवान की आराधना करें।
* सूर्यास्त से पहले फलाहार: सूर्यास्त से पहले पूजा संपन्न कर फलाहार ग्रहण करें।
* अगले दिन पारण: अगले दिन विधिपूर्वक पूजा-पाठ करने के बाद व्रत का पारण करें।
* दान का महत्व: व्रत के दिन गरीबों और जरूरतमंदों में अन्न, वस्त्र, या धन का दान करना अत्यंत शुभ माना जाता है।

रोहिणी व्रत का नियम और लाभ

जैन धर्म में रोहिणी व्रत का विशेष धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व है। इसे पवित्र अनुष्ठान के रूप में माना जाता है, जिसमें साधक को स्वच्छता और शुद्धता का विशेष ध्यान रखना आवश्यक है। इस व्रत को न केवल महिलाएं बल्कि पुरुष भी कर सकते हैं।

* इस व्रत को लगातार तीन, पांच या सात वर्षों तक रखने का विधान है।
* सूर्यास्त के बाद भोजन नहीं करने का नियम इस व्रत की पवित्रता को बनाए रखता है।
* व्रत की पूर्णता के लिए पारण अनुष्ठान का पालन अत्यंत आवश्यक है।
* सुहागिन महिलाओं को यह व्रत करने से अखंड सौभाग्य का वरदान प्राप्त होता है।
* जैन धर्म की मान्यताओं के अनुसार, इस व्रत से साधक के सभी दुख-दर्द दूर होते हैं और जीवन में सुख-शांति आती है।
* आत्मा की शुद्धि के लिए भी यह व्रत अत्यधिक महत्वपूर्ण माना गया है।
* नियमित रूप से इस व्रत को करने वाले साधकों को मोक्ष की प्राप्ति का मार्ग प्रशस्त हो सकता है।

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