मुगलों से सीधे मुकाबला करने वाले छत्रपति शिवाजी महाराज (Chhatrapati Shivaji Maharaj) अपनी वीरता और चतुराई के लिए प्रसिद्ध हैं। इतिहासकारों के अनुसार, शिवाजी महाराज युद्ध में कई प्रकार के हथियारों का उपयोग करते थे, लेकिन इनमें 'वाघ नख' (Wagh Nakh) विशेष रूप से महत्वपूर्ण था। आइए जानें कि किस प्रकार इस हथियार के एक ही वार ने क्रूर अफजल खान को धराशायी कर दिया।
छत्रपति शिवाजी महाराज की वीरता को लेकर कई अद्भुत कहानियां प्रचलित हैं, जो एक से बढ़कर एक हैं।
शिवाजी महाराज ने 'वाघ नख' का उपयोग क्रूर अफजल खान को पराजित करने के लिए किया था।
'वाघ नख' एक हथियार है, जो बाघ के पंजे के आकार में निर्मित है, और इसका इतिहास बेहद महत्वपूर्ण है।
Chhatrapati Shivaji Maharaj: 'वाघ नख' एक विशेष हथियार है, जो बाघ के पंजों की तरह दिखता है और इसकी धार दुश्मन को एक ही झटके में चीरने की क्षमता रखती है। इतिहासकारों के अनुसार, 1659 में छत्रपति शिवाजी महाराज ने बीजापुर सल्तनत के सेनापति अफजल खान को इसी धारदार हथियार से पराजित किया था।
यह उस समय की बात है जब बीजापुर सल्तनत के प्रमुख आदिल शाह और शिवाजी महाराज के बीच युद्ध चल रहा था। इस बीच, अफजल खान ने छल का सहारा लेकर शिवाजी को मारने की योजना बनाई और उन्हें मुलाकात के लिए बुलाया। शिवाजी ने इस आमंत्रण को स्वीकार किया और शामियाने में अफजल खान से मिलने पहुंचे, लेकिन असली मंसूबे कुछ और थे।
दरअसल, अफजल खान शिवाजी की पीठ में खंजर भोंकने का नापाक इरादा लिए बैठा था और उसने इसका प्रयास भी किया। लेकिन इससे पहले कि वह अपनी इस काली करतूत में सफल होता, महान योद्धा छत्रपति शिवाजी महाराज ने एक ही वार में अफजल का पेट चीर दिया।
छत्रपति शिवाजी महाराज के जीवन की ख़ास झलकियां
कब और कहाँ हुआ जन्म :
छत्रपति शिवाजी महाराज का जन्म 19 फरवरी 1630 को पुणे जिले के शिवनेरी किले में हुआ था।
कौन थे माता और पिता :
छत्रपति शिवाजी महाराज की माता का नाम जीजाबाई था और पिता का नाम शाहजी भोंसले था।
छत्रपति शिवाजी महाराज कब हुई मृत्य
छत्रपति शिवाजी महाराज की मृत्यु 19 अप्रैल 1680 को हुई।
क्या है वाघ नख :
अफजल खान को मारने के लिए छत्रपति शिवाजी महाराज ने जिस हथियार का उपयोग किया, उसे 'वाघ नख' कहा जाता है। नाम से स्पष्ट है कि यह बाघ के पंजे के आकार में डिजाइन किया गया है, जिससे यह आसानी से इंसान की मुट्ठी में फिट हो जाता है। स्टील से बना यह वाघ नख असल में बाघ के पंजे से कई गुना अधिक घातक होता है। इसमें चार नुकीली छड़ें होती हैं, जो दुश्मन को एक ही झटके में चीरने के लिए पर्याप्त हैं। हाथ की पहली और चौथी उंगली में इसके रिंग को फिट किया जाता है, जिससे यह घातक हथियार किसी भी दुश्मन को मौत के घाट उतारने में सक्षम हो जाता है।
पहली बार शिवाजी महाराज ने किया इस्तेमाल
बाघ के पंजों की तरह दिखने वाला यह 'वाघ नख' पहली बार वीर योद्धा छत्रपति शिवाजी महाराज द्वारा इस्तेमाल किया गया था। शिवाजी महाराज का यह वाघ नख मराठा साम्राज्य की राजधानी सतारा में था, लेकिन जब अंग्रेजों ने भारत में कदम रखा, तब मराठा पेशवा के प्रधानमंत्री ने 1818 में इसे ईस्ट इंडिया कंपनी के अधिकारी जेम्स ग्रांट डफ को भेंट कर दिया। कहा जाता है कि 1824 में डफ जब वापस इंग्लैंड लौटे, तो उन्होंने यह वाघ नख भी अपने साथ ले लिया और बाद में इसे लंदन के विक्टोरिया और अल्बर्ट म्यूजियम को दान कर दिया।
छत्रपति शिवाजी महाराज की सैन्य युद्व
प्रतापगढ़ का युद्व:
प्रतापगढ़ का युद्ध 1659 में हुआ था, जिसमें छत्रपति शिवाजी महाराज ने बीजापुर सल्तनत के सेनापति अफजल खान को पराजित किया। यह युद्ध छत्रपति शिवाजी महाराज की रणनीति और साहस का एक महत्वपूर्ण उदाहरण था।
युद्ध की पृष्ठभूमि यह थी कि अफजल खान ने शिवाजी को धोखे से मारने की योजना बनाई थी। हालांकि, शिवाजी ने 'वाघ नख' नामक हथियार का इस्तेमाल करते हुए अफजल को एक ही वार में धराशायी कर दिया। इस विजय ने शिवाजी महाराज को एक महान योद्धा के रूप में स्थापित किया और उनकी सेना के मनोबल को बढ़ाया।
प्रतापगढ़ की इस लड़ाई ने न केवल शिवाजी के खिलाफ चल रही बीजापुर की साजिशों को विफल किया, बल्कि उन्हें स्वतंत्रता के संघर्ष में और भी मजबूत बना दिया।
सूरत का युद्ध
सूरत का युद्ध 1664 में हुआ और यह छत्रपति शिवाजी महाराज के साहस और रणनीतिक कौशल का एक महत्वपूर्ण उदाहरण है। यह युद्ध सूरत, जो उस समय का एक प्रमुख व्यापारिक केंद्र था, पर मुगलों के खिलाफ किया गया था।
मुगलों के बढ़ते प्रभाव के कारण, शिवाजी महाराज ने सूरत पर आक्रमण करने का निर्णय लिया। उनका उद्देश्य मुगलों के व्यापारिक हितों को नुकसान पहुंचाना और उनकी आर्थिक शक्ति को कमजोर करना था।
शिवाजी महाराज ने अपनी सेना के साथ सूरत पर धावा बोल दिया। उन्होंने शहर में लूटपाट की और कई व्यापारियों की संपत्तियों को अपने कब्जे में ले लिया। इस दौरान, मुगलों के सैनिकों ने प्रतिरोध करने की कोशिश की, लेकिन शिवाजी की योजना और नेतृत्व ने उन्हें आसानी से पराजित कर दिया।
सूरत के इस आक्रमण ने मुगलों को बड़ा आर्थिक नुकसान पहुंचाया और यह संदेश दिया कि शिवाजी महाराज स्वतंत्रता की लड़ाई में पीछे हटने वाले नहीं हैं। इस युद्ध ने शिवाजी की प्रतिष्ठा को और बढ़ाया और उनके नेतृत्व में मराठा साम्राज्य को और मजबूती दी।
सूरत का युद्ध स्वतंत्रता संग्राम की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम था, जिसने छत्रपति शिवाजी महाराज को एक शक्तिशाली योद्धा के रूप में स्थापित किया।
पुरंदर का युद्ध
665 में हुआ, जो छत्रपति शिवाजी महाराज और मुगलों के बीच एक महत्वपूर्ण संघर्ष था। यह युद्ध पुरंदर किले के नियंत्रण के लिए लड़ा गया, जो उस समय की रणनीतिक दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण स्थिति में था।
शिवाजी महाराज ने 1664 में सूरत पर हमला करके मुगलों को एक बड़ा आर्थिक नुकसान पहुंचाया था। इस पर प्रतिक्रिया करते हुए, मुगलों ने छत्रपति शिवाजी महाराज के खिलाफ एक मजबूत अभियान चलाने का निर्णय लिया और पुरंदर किले पर कब्जा करने का प्रयास किया।
युद्ध के दौरान, शिवाजी की सेना ने पुरंदर किले का बचाव किया। हालांकि, मुगलों के पास बड़ी संख्या में सैनिक थे, और उनके जनरल जयसिंह ने किले को घेर लिया। शिवाजी ने अपनी सेना के साथ साहसिक लड़ाई लड़ी, लेकिन स्थिति धीरे-धीरे कठिन होती गई।
युद्ध के अंत में, शिवाजी महाराज ने अपनी सेना को सुरक्षित निकालने का निर्णय लिया। उन्होंने मुगलों के साथ एक समझौता किया, जिसके तहत उन्हें कुछ किलों को सौंपना पड़ा, लेकिन इस समझौते में उन्हें अपनी स्वतंत्रता और मराठा साम्राज्य की गरिमा बनाए रखने का मौका मिला।
पुरंदर का युद्ध न केवल एक महत्वपूर्ण संघर्ष था, बल्कि यह शिवाजी महाराज की चतुराई और कूटनीति का भी परिचायक था। इस युद्ध ने यह दिखाया कि उन्होंने अपनी सैन्य शक्ति और राजनीतिक समझ को कुशलता से संतुलित किया, जो बाद में उनकी सफलता में योगदान देने वाला साबित हुआ।
शिहगढ का युद्ध :
शिहगढ़ का युद्ध 1670 में हुआ, जो छत्रपति शिवाजी महाराज और मुगलों के बीच एक महत्वपूर्ण संघर्ष था। यह युद्ध शिवाजी महाराज की रणनीति और युद्ध कौशल का एक उत्कृष्ट उदाहरण है।
शिवाजी महाराज ने 1665 में पुरंदर का युद्ध हारने के बाद भी अपनी स्वतंत्रता और शक्ति को बनाए रखने का निर्णय लिया। उन्होंने किलों और किलों के नियंत्रण के माध्यम से अपने साम्राज्य को मजबूत करने का प्रयास किया। शिहगढ़ किला एक महत्वपूर्ण रणनीतिक स्थान था, जिसे पुनः प्राप्त करना आवश्यक था।
शिवाजी ने शिहगढ़ पर पुनः कब्जा करने का निर्णय लिया और अपनी योजनाओं को अंजाम देने के लिए एक अच्छी रणनीति बनाई। उन्होंने अपने अनुयायियों को संगठित किया और एक आश्चर्यजनक हमला किया। शिवाजी की सेना ने किले पर धावा बोल दिया और मुगलों को चौकाते हुए उसे पुनः अपने नियंत्रण में ले लिया।
शिहगढ़ का युद्ध शिवाजी महाराज की एक बड़ी जीत साबित हुआ। इस विजय ने उन्हें न केवल किला पुनः प्राप्त करने में मदद की, बल्कि उनकी सेना के मनोबल को भी बढ़ाया। इस युद्ध ने यह दर्शाया कि शिवाजी महाराज अपने साम्राज्य को मजबूत करने और स्वतंत्रता की रक्षा के लिए दृढ़ संकल्पित थे।
शिहगढ़ का युद्ध भारतीय इतिहास में एक महत्वपूर्ण घटना है, जो शिवाजी महाराज की वीरता और रणनीतिक चतुराई को उजागर करता है।
संगमने र की लड़ाई :
1661 में हुई और यह छत्रपति शिवाजी महाराज की सेना और बीजापुर सल्तनत की सेनाओं के बीच एक महत्वपूर्ण संघर्ष था। इस लड़ाई का मुख्य उद्देश्य संगमनेर क्षेत्र में नियंत्रण स्थापित करना था, जो एक रणनीतिक स्थान था।
जब शिवाजी महाराज ने बीजापुर सल्तनत के खिलाफ अपने अभियान को तेज किया, तब संगमनेर क्षेत्र पर भी उनकी नजर थी। बीजापुर के सुलतान ने इस क्षेत्र में अपने अधिकार को मजबूत करने का प्रयास किया, जिसके चलते शिवाजी को इस क्षेत्र को पुनः प्राप्त करने की आवश्यकता महसूस हुई।
संगमनेर की लड़ाई में शिवाजी की सेना ने बीजापुर के सेनापति की सेनाओं के खिलाफ संघर्ष किया। शिवाजी ने अपनी रणनीति और युद्ध कौशल का प्रयोग करते हुए दुश्मनों पर आक्रमण किया। उनकी सेना ने साहसिकता से लड़ाई लड़ी और बीजापुर की सेनाओं को पराजित कर दिया।
इस लड़ाई में शिवाजी महाराज ने संगमनेर क्षेत्र पर नियंत्रण स्थापित किया, जिससे उनकी शक्ति और प्रतिष्ठा और बढ़ी। यह विजय उन्हें बीजापुर सल्तनत के खिलाफ और अधिक आत्मविश्वास के साथ आगे बढ़ने में मददगार साबित हुई। संगमनेर की लड़ाई शिवाजी महाराज की सैन्य रणनीति और नेतृत्व क्षमता का एक महत्वपूर्ण उदाहरण है, जिसने उनके साम्राज्य को मजबूत करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
आखिर में, वाघ नख न केवल छत्रपति शिवाजी महाराज की वीरता का प्रतीक है, बल्कि यह भारतीय सैन्य इतिहास की एक अनमोल धरोहर भी है। इसका उपयोग और बाद में इसकी कहानी दर्शाती है कि कैसे एक साधारण हथियार भी युद्ध के मैदान में निर्णायक भूमिका निभा सकता है। आज, यह लंदन के विक्टोरिया और अल्बर्ट म्यूजियम में संरक्षित है, जहां यह दर्शकों को मराठा साम्राज्य की महानता और शिवाजी महाराज की साहसिकता की याद दिलाता है।