Death anniversary of Thakur Roshan Singh: ठाकुर रोशन सिंह भारत के क्रांतिकारी शहीद, जिन्होंने अपने बलिदान से स्वतंत्रता संग्राम में अमिट छाप छोड़ी

Death anniversary of Thakur Roshan Singh: ठाकुर रोशन सिंह भारत के क्रांतिकारी शहीद, जिन्होंने अपने बलिदान से स्वतंत्रता संग्राम में अमिट छाप छोड़ी
Last Updated: 19 दिसंबर 2024

ठाकुर रोशन सिंह की पुण्य तिथि 19 दिसंबर मनाई जाती है। इस दिन उन्हें ब्रिटिश शासन के खिलाफ अपने बलिदान के रूप में फांसी दी गई थी। भारत के स्वतंत्रता संग्राम के वीर सपूत, ठाकुर रोशन सिंह का जन्म 22 जनवरी 1892 को उत्तर प्रदेश के शाहजहाँपुर जिले के नबादा गाँव में हुआ था। वह एक राजपूत परिवार से थे, और उनके माता-पिता का नाम कौशल्या देवी और ठाकुर जंगी सिंह था। बचपन से ही उन्होंने अपनी दृढ़ नायकता और साहसिकता का परिचय दिया। ठाकुर साहब का परिवार आर्य समाज के अनुयायी था, और उनका पालन-पोषण एक ऐसे वातावरण में हुआ, जो देशभक्ति और समाज सुधार की ओर प्रेरित करता था।

असहयोग आन्दोलन में सहभागिता

ठाकुर रोशन सिंह का स्वतंत्रता संग्राम में प्रवेश असहयोग आन्दोलन के दौरान हुआ। इस समय उन्होंने उत्तर प्रदेश के बरेली और शाहजहाँपुर के ग्रामीण इलाकों में महत्वपूर्ण योगदान दिया। बरेली में हुए गोली-काण्ड में पुलिस के एक अधिकारी से रायफल छीनकर उन्होंने पुलिस बल को भागने पर मजबूर कर दिया। इस घटना के बाद, उन्हें बरेली के सेण्ट्रल जेल में दो साल की सजा काटनी पड़ी। इसी समय उनकी मुलाकात पंडित राम प्रसाद बिस्मिल और अन्य क्रांतिकारियों से हुई, जिन्होंने उन्हें क्रांतिकारी दल में शामिल होने के लिए प्रेरित किया।

क्रांतिकारी संघर्ष और काकोरी काण्ड

शाहजहाँपुर में पंडित राम प्रसाद बिस्मिल से हुई मुलाकात के बाद ठाकुर रोशन सिंह ने हिन्दुस्तान रिपब्लिकन ऐसोसिएशन (HRA) में शामिल होने का निर्णय लिया। उन्होंने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को एक नई दिशा देने के लिए अस्त्र-शस्त्र से सुसज्जित क्रांतिकारी दल बनाने का समर्थन किया। ठाकुर साहब के निशानेबाजी कौशल ने उन्हें क्रांतिकारी दल में महत्वपूर्ण स्थान दिलाया।

हालांकि, ठाकुर रोशन सिंह काकोरी काण्ड में प्रत्यक्ष रूप से शामिल नहीं थे, फिर भी उनका नाम इस काण्ड से जुड़ा हुआ है। काकोरी काण्ड के मुख्य सूत्रधार पं. राम प्रसाद बिस्मिल थे, और उनका व्यक्तित्व ऐसा था कि ठाकुर साहब को भी इस आन्दोलन में सक्रिय भूमिका निभाने के लिए प्रेरित किया। काकोरी काण्ड के बाद उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया, और अंग्रेजी हुकूमत ने उन्हें फाँसी की सजा सुनाई।

बमरौली डकैती और संघर्ष का नया मोड़

1922 में, क्रांतिकारी दल को धन की आवश्यकता पड़ी, और इसे पूरा करने के लिए डकैती का रास्ता अपनाया गया। बमरौली डकैती 25 दिसम्बर 1924 को पीलीभीत के बल्देव प्रसाद के यहाँ की गई, जहाँ से क्रांतिकारियों ने 4000 रुपये और कुछ सोने-चाँदी के गहने लूटे। इस डकैती में ठाकुर रोशन सिंह का प्रमुख योगदान था, और इस दौरान एक पुलिस अधिकारी मोहनलाल पहलवान को मारकर उन्होंने ब्रिटिश शासन के खिलाफ अपनी मजबूत स्थिति को और भी मजबूत किया। यह घटना उन्हें फाँसी की ओर ले गई।

फाँसी से पूर्व पत्र और अंतिम वक्त की स्थिति

19 दिसम्बर 1927 को जब ठाकुर साहब को फाँसी की सजा सुनाई गई, तब उन्होंने अपने मित्र को एक पत्र लिखा, जिसमें उन्होंने अपने मृत्यु के प्रति आस्था और शांति का इज़हार किया। ठाकुर रोशन सिंह ने लिखा था, "मैं दुनिया में आकर मरना जरूर है, लेकिन मरते वक्त मेरे दिल में कोई पछतावा नहीं है। मैं धर्म युद्ध में प्राण दे रहा हूँ, और मुझे पूरा विश्वास है कि मैं ईश्वर की कृपा से शांति की स्थिति में रहूँगा।"

फाँसी के दिन, उन्होंने गीता का पाठ किया और फिर निर्भीकता से फाँसी के फन्दे को चूमा। उनके अंतिम शब्द थे "वन्दे मातरम्", और उनके शव के साथ भारी जनसमूह ने उन्हें अंतिम श्रद्धांजलि अर्पित की।

शहीदी का अमिट इतिहास और उत्तराधिकार

ठाकुर रोशन सिंह का बलिदान भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में सदैव याद किया जाएगा। उनके संघर्ष, साहस और दृढ़ता ने केवल अपने समकालीनों को प्रेरित किया, बल्कि आने वाली पीढ़ियों को भी यह संदेश दिया कि स्वतंत्रता के लिए संघर्ष कोई तात्कालिक उद्देश्य नहीं बल्कि एक जीवनपर्यंत संकल्प होना चाहिए।

इलाहाबाद के नैनी स्थित मलाका जेल के बाहर उनकी एक प्रतिमा स्थापित की गई है, जो उनकी शहादत और संघर्ष को याद करती है। इस प्रतिमा के नीचे उनका प्रसिद्ध शेर अंकित है, "ज़िन्दगी ज़िन्दा-दिली को जान रोशन, वरना कितने ही यहाँ रोज़ फना होते हैं।" ठाकुर रोशन सिंह का जीवन एक प्रेरणा है, जो हमें यह सिखाता है कि स्वतंत्रता की कीमत जानने के लिए हमें अपने जीवन को देश के लिए समर्पित करना होता है। उनकी शहादत और संघर्ष ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को एक नया आयाम दिया, और उनका नाम हमेशा अमर रहेगा।

Leave a comment