Meher Baba: मेहर बाबा की पुण्यतिथि 31 जनवरी को मनाई जाती है। 31 जनवरी 1969 को उनका निधन हुआ था। यह दिन उनके अनुयायियों के लिए विशेष महत्व रखता है, क्योंकि इस दिन वे उनके योगदान, शिक्षाओं और जीवन को याद करते हैं। मेहर बाबा ने अपनी मृत्यु के बाद भी अपनी शिक्षाओं और दर्शन से लाखों लोगों की आध्यात्मिक यात्रा को प्रभावित किया है। उनकी पुण्यतिथि पर उनके अनुयायी उनके जीवन के सिद्धांतों और संदेशों को अपनाने का संकल्प लेते हैं।
मेहर बाबा (जन्म मेरवान शेरियार ईरानी; 25 फरवरी 1894 - 31 जनवरी 1969) भारतीय आध्यात्मिक गुरु थे, जिन्होंने अपने जीवन और कार्यों से दुनिया को एक नई दिशा दी। उनका मानना था कि वे युग के अवतार थे और भगवान का मानव रूप थे। उनकी शिक्षाएँ और अद्वितीय दृष्टिकोण न केवल भारत में, बल्कि दुनिया भर में लाखों अनुयायियों द्वारा अपनाई गईं। उनका जीवन एक प्रेरणा था, जो आज भी लाखों लोगों को आध्यात्मिक मार्ग पर चलने की प्रेरणा देता हैं।
मेहर बाबा के प्रारंभिक जीवन
मेहर बाबा का जन्म 25 फरवरी 1894 को पुणे, महाराष्ट्र में हुआ। उनका वास्तविक नाम मेरवान शेरियार ईरानी था। उनका परिवार ईरान से भारत में बसने आया था और उन्होंने एक पारंपरिक पारसी परिवार में अपनी प्रारंभिक शिक्षा प्राप्त की। 19 वर्ष की आयु में, मेहर बाबा ने आध्यात्मिक मार्ग पर चलने का संकल्प लिया और इस दौरान उनके जीवन में कई महत्वपूर्ण घटनाएँ घटीं।
उनकी आध्यात्मिक यात्रा में हज़रत बाबजान, उपासनी महाराज, शिरडी के साईं बाबा, ताजुद्दीन बाबा और नारायण महाराज जैसे महान गुरु शामिल थे, जिनसे उन्हें गहरी आध्यात्मिक प्रेरणा मिली। यह समय उनके जीवन में एक तरह का आध्यात्मिक परिवर्तन था, जिसने उन्हें एक नई दिशा दी।
मेहर बाबा का मौन व्रत
1925 में, मेहर बाबा ने एक अनोखा कदम उठाया और 44 वर्षों के लिए मौन व्रत धारण किया। इस अवधि के दौरान, उन्होंने संचार का कोई मौखिक माध्यम नहीं अपनाया। वे केवल हाथ के इशारों और एक वर्णमाला बोर्ड के माध्यम से ही अपने अनुयायियों से संवाद करते थे। इस अवधि के दौरान, उनका संचार एक विशेष रूप से ध्यान और आंतरिक शांति का प्रतीक बन गया। यह उनका विश्वास था कि मौन से गहरी आत्मसाक्षात्कार और ईश्वर के साथ एकता की ओर मार्गदर्शन मिलता हैं।
मेहर बाबा की शिक्षाएँ
मेहर बाबा की शिक्षाएँ जीवन की वास्तविकता और उद्देश्य को समझने में मदद करती थीं। उनका मानना था कि यह दुनिया केवल एक कल्पना है और केवल ईश्वर का अस्तित्व है। उन्होंने यह सिखाया कि प्रत्येक आत्मा अपनी दिव्यता को पहचानने के लिए इस कल्पना से गुजरती है। मेहर बाबा के अनुसार, प्रत्येक व्यक्ति का मुख्य उद्देश्य ईश्वर का साक्षात्कार करना है और इस प्रक्रिया में जन्म और मृत्यु के चक्र से मुक्ति पाना हैं।
उनकी शिक्षाएँ सूफी, वैदिक और यौगिक शब्दावली का एक अनूठा मिश्रण थीं। उन्होंने अपने अनुयायियों को यह समझाने का प्रयास किया कि वास्तविक सत्य केवल आध्यात्मिक साधना और आत्मसाक्षात्कार में छिपा हुआ हैं।
मेहर बाबा का मकबरा
मेहर बाबा की मृत्यु 31 जनवरी 1969 को हुई। उनके अनुयायी उनकी शिक्षाओं को अपने जीवन में उतारने के लिए संकल्पित थे। उनकी मृत्यु के बाद, उनका मकबरा अहमदनगर, महाराष्ट्र में मेहराबाद में स्थित है, जो आज एक प्रमुख तीर्थस्थल बन चुका है। यह स्थल उनके लाखों प्रेमियों के लिए एक श्रद्धा और समर्पण का प्रतीक बन गया हैं।
मेहर बाबा की विरासत
मेहर बाबा की शिक्षाओं का प्रभाव न केवल भारत, बल्कि अमेरिका, यूरोप और ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों में भी देखा गया। उनके अनुयायी उनकी शिक्षाओं को जीवन का हिस्सा मानते हुए, आत्मसाक्षात्कार की ओर अग्रसर हो रहे हैं। वे आज भी अपने अनुयायियों से प्रेम, शांति और एकता की बात करते हैं।
उनकी किताबें, जैसे गॉड स्पीक्स और डिस्कोर्स, आज भी आध्यात्मिक अध्ययन और प्रगति के लिए महत्वपूर्ण ग्रंथ मानी जाती हैं। उनका जीवन इस बात का प्रतीक है कि जब व्यक्ति अपने अंदर की दिव्यता का अनुभव करता है, तो वह बाहरी दुनिया के भ्रम से मुक्त हो जाता हैं।
मेहर बाबा ने अपने जीवन में जो अध्यात्मिक दृष्टिकोण प्रस्तुत किया, वह आज भी लोगों के दिलों में जीवित है। उनका योगदान न केवल भारतीय समाज, बल्कि पूरे विश्व के आध्यात्मिक जगत में महत्वपूर्ण है। उनका जीवन इस बात का प्रमाण है कि यदि हम अपने भीतर झाँककर अपनी सच्चाई और दिव्यता को पहचानें, तो हम सच्चे शांति और आंतरिक सुख की प्राप्ति कर सकते हैं।
मेहर बाबा की जयंती पर हम उन्हें नमन करते हैं और उनकी शिक्षाओं को अपने जीवन में अपनाने का संकल्प लेते हैं। उनके मार्गदर्शन के बिना, हम आध्यात्मिक सत्य की ओर मार्गदर्शन प्राप्त करने में असमर्थ हो सकते हैं, लेकिन उनके संदेश ने हमें सिखाया है कि शांति, प्रेम और दिव्यता की ओर जाने का रास्ता हमेशा खुला रहता हैं।