Pluto Day 2025: प्लूटो सौर मंडल का सबसे बड़ा बौना ग्रह, जानिए कब और किसने की थी प्लूटो खोज?

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प्लूटो सौर मंडल का सबसे बड़ा बौना ग्रह है। इसे कभी सौर मंडल का नवम ग्रह माना जाता था, लेकिन अब इसे काइपर घेरे की सबसे बड़ी खगोलीय वस्तु के रूप में जाना जाता है। प्लूटो की खोज 1930 में क्लाइड टॉमबॉग ने की थी, लेकिन 2006 में इसे ग्रह की श्रेणी से हटाकर बौने ग्रह का दर्जा दिया गया। यह अब भी वैज्ञानिकों के लिए बेहद दिलचस्प पिंड बना हुआ है, और न्यू होराइजन्स मिशन (2015) ने इसके बारे में कई महत्वपूर्ण जानकारियाँ जुटाई हैं। 

आकार और कक्षा

* प्लूटो का आकार पृथ्वी के चंद्रमा का केवल एक-तिहाई है।
* इसकी कक्षा बेढंगी (अण्डाकार) है, जिससे यह कभी वरुण (नेपच्यून) की कक्षा के अंदर, तो कभी बहुत दूर चला जाता है।
* सूर्य से इसकी दूरी 30 से 45 खगोलीय इकाइयों (4.4 से 7.4 अरब किमी) के बीच बदलती रहती है।
* यह सूर्य की एक परिक्रमा 248.09 वर्ष में पूरी करता हैं।

प्लूटो का रंग और मौसम परिवर्तन

प्लूटो का व्यास लगभग 2,300 किमी है, जो पृथ्वी के व्यास का मात्र 18% है। इसका रंग काले, नारंगी और सफेद का मिश्रण है। प्लूटो की सतह पर विभिन्न प्रकार की चट्टानें और जमी हुई गैसें पाई जाती हैं, जो इसे सौर मंडल की सबसे रंगीन बौनी दुनिया बनाती हैं। सौर मंडल की अधिकांश वस्तुओं की सतह पर रंगों में ज्यादा भिन्नता नहीं देखी जाती, लेकिन प्लूटो की सतह पर रंगों का असमान वितरण इसे विशेष बनाता हैं।

1994 से 2003 के बीच किए गए अध्ययनों में यह देखा गया कि प्लूटो के रंगों में परिवर्तन आया है। उत्तरी ध्रुव थोड़ा उजला हो गया है, जबकि दक्षिणी ध्रुव थोड़ा गहरा हो गया है। वैज्ञानिकों का मानना है कि यह बदलाव प्लूटो के मौसम परिवर्तन का संकेत हो सकता है। चूँकि प्लूटो की कक्षा अत्यधिक अण्डाकार है, इसलिए इसके मौसम भी अत्यंत धीमी गति से लेकिन बड़े पैमाने पर बदलते हैं।

प्लूटो का वायुमंडल और उसके उपग्रह

प्लूटो का वायुमंडल बहुत पतला है और मुख्य रूप से नाइट्रोजन (N₂), मीथेन (CH₄) और कार्बन मोनोऑक्साइड (CO) से बना है। जब प्लूटो सूरज से दूर जाता है, तो इसकी सतह पर ठंड बढ़ जाती है, जिससे वायुमंडल की कुछ गैसें जमकर बर्फ़ में बदल जाती हैं और सतह पर गिर जाती हैं। जब प्लूटो सूरज के करीब आता है, तो सतह की जमी हुई गैसें फिर से गैसीय रूप में बदलकर वायुमंडल में लौट आती हैं।

प्लूटो के पाँच ज्ञात उपग्रह

* शैरन (Charon) – सबसे बड़ा उपग्रह, जिसका व्यास प्लूटो के आधे के बराबर है (1978 में खोजा गया)।
* निक्स (Nix) – 2005 में खोजा गया छोटा चंद्रमा।
* हाएड्रा (Hydra) – 2005 में खोजा गया एक और छोटा चंद्रमा।
* स्टिक्स (Styx) – प्लूटो का चौथा उपग्रह।
* कर्बेरॉस (Kerberos) – 20 जुलाई 2011 को खोजा गया, जिसका व्यास लगभग 30 किमी है।

प्लूटो से जुडी कुछ खास बातें 

1. कक्षा: प्लूटो की कक्षा अन्य ग्रहों की कक्षाओं से अजीब थी। बाकी ग्रह सूरज के चारों ओर अंडाकार कक्षाओं में घूमते हैं, लेकिन प्लूटो की कक्षा कभी सूरज के बहुत पास और कभी बहुत दूर होती है।

2. कक्षा का झुकाव: प्लूटो की कक्षा बाक़ी ग्रहों की कक्षाओं से अलग थी, क्योंकि यह ढलान पर थी। बाकी ग्रहों की कक्षाएँ चपटी होती हैं, लेकिन प्लूटो की कक्षा कोण पर थी। इस वजह से कभी प्लूटो और वरुण की कक्षाएँ एक-दूसरे को काटती नहीं थीं, और इसलिए उनकी टक्कर का खतरा नहीं था।

3. आकार: प्लूटो का आकार बहुत छोटा था। इससे पहले, सबसे छोटा ग्रह बुध था, लेकिन प्लूटो उससे भी आधा छोटा था।

इन वजहों से खगोलशास्त्रियों को संदेह हुआ कि शायद प्लूटो वरुण का भागा हुआ उपग्रह हो, हालांकि यह संभावना कम थी क्योंकि प्लूटो और वरुण कभी एक-दूसरे के पास नहीं आते थे। फिर, 1990 के दशक के बाद वैज्ञानिकों को बहुत सी वरुण-पार वस्तुएं मिलीं जिनकी कक्षाएँ, रूप-रंग और बनावट प्लूटो से मिलती-जुलती थीं। इन्हें काइपर घेरा कहा गया, और अब वैज्ञानिक मानते हैं कि यह इलाका पूरी तरह से ऐसी वस्तुओं से भरा हुआ है, जिनमें से प्लूटो सिर्फ एक है।

२००४-२००५ में काइपर घेरे में हउमेया और माकेमाके जैसे बड़े ऑब्जेक्ट्स पाए गए (जो प्लूटो से थोड़ा छोटे थे), और २००५ में काइपर घेरे से बाहर ऍरिस मिला, जो प्लूटो से भी बड़ा था। ये सभी वस्तुएं ग्रहों से अलग थीं, लेकिन प्लूटो से बहुत मिलती-जुलती थीं।

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