वास्तु शास्त्र में नैऋत्य दिशा की ज्ञान - Knowledge of south-west direction in Vastu Shastra
वास्तु शास्त्र में दक्षिण-पश्चिम दिशा को नैऋत्य कोण कहा जाता है। इस दिशा पर राहु का शासन है, जिसे छाया ग्रह माना जाता है। यह अत्यंत प्रभावशाली एवं शक्तिशाली दिशा है। इस दिशा में मौजूद किसी भी प्रकार का दोष अन्य वास्तु दोषों की तुलना में अधिक हानिकारक हो सकता है; यह काफी गंभीर है. इसलिए यह दिशा ऊंची और भारी मानी जाती है। इस दिशा का शुभ और अशुभ प्रभाव घर के मुखिया, उनके जीवनसाथी और सबसे बड़े बच्चे पर पड़ता है। दोष होने पर व्यक्ति को दुर्घटना, रोग, मानसिक अशांति, भूत-प्रेत बाधा तथा अन्य समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है। यह दिशा दोष मुक्त होने पर भवन के निवासी स्वस्थ रहते हैं और उनके मान-सम्मान में वृद्धि होती है। वास्तु की भाषा में नैऋत्य दिशा को बेहद प्रतिकूल माना जाता है, यहां तक कि इसे दुर्भाग्य और नरक की दिशा भी कहा जाता है।
नैऋत्य दिशा के लिए कुछ महत्वपूर्ण विचार:
1. यह दिशा घर में सबसे ऊंची और भारी होनी चाहिए। घर के मुख्य निर्माण का मुख इसी दिशा में होना उत्तम माना जाता है। इससे ईशान कोण से प्रवेश करने वाली शुभ ऊर्जा घर में ही रहती है, जबकि नकारात्मक ऊर्जा प्रवेश नहीं कर पाती है।
2. घर के प्रत्येक कमरे को नैऋत्य कोण में अपेक्षाकृत भारी रखें।
3. भूमि का ढलान दक्षिण-पश्चिम दिशा की ओर नहीं होना चाहिए। भूमि का ढलान सदैव उत्तर एवं पूर्व की ओर होना चाहिए।
4. इस दिशा में घर के मुखिया का कमरा बनाया जा सकता है। इस दिशा में कैश काउंटर, मशीनरी आदि भी रखे जा सकते हैं।
5. इस दिशा में गड्ढे, बोरहोल, कुएं, पूजा कक्ष, अध्ययन कक्ष आदि रखने से बचें। इस दिशा में शौचालय का निर्माण कराया जा सकता है।
6. नैऋत्य कोण में दोष होने पर त्वचा और मस्तिष्क संबंधी रोग होने की संभावना अधिक रहती है।
7. इस स्थिति में रसोईघर होने से व्यक्ति के व्यावसायिक जीवन में अस्थिरता आ सकती है। ऐसे घरों में रहने वाले व्यक्ति अपनी पूरी क्षमता के अनुसार कार्य करने में सक्षम नहीं हो पाते हैं। इसलिए यहां रसोईघर बनाने से बचें।
8. इस दिशा के लिए पानी एक विरोधी तत्व है और इस दिशा में भूमिगत पानी का टैंक खोदने से भी नकारात्मक परिणाम मिल सकते हैं।