Birth Anniversary of Khudiram Bose: भारत की स्वतंत्रता के लिए अपने प्राणों की आहुति देने वाले युवा शहीद को सलाम

Birth Anniversary of Khudiram Bose: भारत की स्वतंत्रता के लिए अपने प्राणों की आहुति देने वाले युवा शहीद को सलाम
Last Updated: 1 दिन पहले

खुदीराम बोस की जयंती 3 दिसंबर को मनाई जाती है। उनका जन्म 3 दिसंबर 1889 को पश्चिम बंगाल के मिदनापुर जिले के बहुवैनी गाँव में हुआ था। खुदीराम बोस ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में अपनी शहादत देकर एक अमिट छाप छोड़ी। महज 18 साल की उम्र में उन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ अपनी आवाज उठाई और फांसी पर चढ़कर देश के लिए अपने प्राणों की आहुति दी। उनका बलिदान आज भी भारतीय युवाओं के लिए प्रेरणा का स्रोत हैं।

खुदीराम बोस की जयंती पर विभिन्न जगहों पर श्रद्धांजलि समारोह, कार्यक्रम और प्रदर्शन होते हैं, जो उनकी वीरता और स्वतंत्रता संग्राम में योगदान को याद करते हैं।

3 दिसंबर 1889 – 11 अगस्त 1908 भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के महान शहीद

खुदीराम बोस का नाम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में स्वर्णाक्षरों में लिखा गया है। उनका जन्म 3 दिसंबर 1889 को पश्चिम बंगाल के मिदनापुर जिले के बहुवैनी गाँव में हुआ था। एक सामान्य परिवार में जन्मे खुदीराम का जीवन एक प्रेरणा की तरह है। मात्र 18 साल की उम्र में देश की आज़ादी के लिए फांसी पर चढ़कर उन्होंने अपनी वीरता और देशभक्ति का अनमोल उदाहरण पेश किया। खुदीराम बोस ने अपनी शहादत से न केवल ब्रिटिश साम्राज्य को चुनौती दी, बल्कि अपने बलिदान से युवाओं में देशभक्ति का जज़्बा भी जगाया।

शुरुआत और क्रांतिकारी जीवन

खुदीराम बोस का बचपन साधारण था, लेकिन उनके भीतर देश की स्वतंत्रता के लिए एक गहरी तड़प थी। उनकी शिक्षा भी सामान्य थी, और उन्होंने नौवीं कक्षा के बाद पढ़ाई छोड़ दी थी, ताकि वह स्वतंत्रता संग्राम में भाग ले सकें। खुदीराम ने अपनी क्रांतिकारी यात्रा की शुरुआत 1905 में बंगाल के विभाजन के विरोध में हुए आंदोलन से की। इस समय उन्होंने 'वन्दे मातरम्' जैसे पैम्फलेट बांटने का काम किया, और जल्द ही वह एक प्रमुख क्रांतिकारी समूह के सदस्य बन गए।

राजद्रोह और गिरफ्तारी

खुदीराम ने अपनी पहली बड़ी घटना 1906 में की, जब उन्होंने मिदनापुर में एक पुलिसकर्मी को घूंसा मारा और कुछ राजद्रोह संबंधित दस्तावेज़ों को बचाकर भाग निकले। उन्हें गिरफ्तार किया गया, लेकिन बिना किसी गवाह के मामले में उन्हें छोड़ दिया गया। इसी तरह, उन्होंने कई बार ब्रिटिश अधिकारियों के खिलाफ अपनी आवाज उठाई और कई बार गिरफ्तार भी हुए, लेकिन उनका आत्मविश्वास कभी कमजोर नहीं पड़ा।

किंग्जफोर्ड की हत्या की योजना

खुदीराम का नाम उस समय देशभर में मशहूर हुआ जब उन्होंने ब्रिटिश अधिकारी किंग्जफोर्ड की हत्या की योजना बनाई। किंग्जफोर्ड बंगाल में विभाजन के खिलाफ आंदोलन करने वालों के खिलाफ अत्याचार करता था। खुदीराम और उनके साथी प्रफुल्ल कुमार चाकी ने मिलकर किंग्जफोर्ड की हत्या करने के लिए एक योजना बनाई। 30 अप्रैल 1908 को, जब किंग्जफोर्ड की गाड़ी का पता चला, खुदीराम ने उस पर बम फेंका। हालांकि किंग्जफोर्ड बच गया, लेकिन इस बम विस्फोट ने ब्रिटिश साम्राज्य को हिला दिया।

गिरफ्तारी और फांसी

इस बम हमले के बाद खुदीराम और प्रफुल्ल कुमार चाकी फरार हो गए। कुछ दिनों बाद, खुदीराम को पकड़ा गया। उन्होंने भगवद गीता का पाठ करते हुए अपनी शहादत को आत्मसात किया। 11 अगस्त 1908 को मुजफ्फरपुर की जेल में उन्हें फांसी पर चढ़ा दिया गया। उनकी उम्र उस समय केवल 18 वर्ष थी, लेकिन उनका साहस और निष्ठा भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के लिए अमर हो गया।

अमर शहीद देश के लिए उनकी शहादत

खुदीराम बोस का बलिदान भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में एक मील का पत्थर साबित हुआ। उनकी शहादत ने न केवल बंगाल, बल्कि समूचे भारत में क्रांतिकारी आंदोलनों को प्रेरित किया। उनका नाम आज भी भारतीय इतिहास में स्वर्ण अक्षरों से लिखा जाता है। उनके बलिदान के बाद, बंगाल के जुलाहे एक खास तरह की धोती बुनने लगे, जिसमें खुदीराम का नाम लिखा होता था। उनके योगदान को आज भी गीतों और लोककथाओं के माध्यम से याद किया जाता हैं।

खुदीराम बोस के जीवन की यह प्रेरणादायक कहानी हमें यह सिखाती है कि देशभक्ति और साहस की कोई उम्र नहीं होती। उनका बलिदान आज भी युवाओं के दिलों में देशप्रेम की भावना को जागृत करता हैं।

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