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दृढ़ नज़र, अडिग इरादे: छोंजिन अंगमो बनीं एवरेस्ट फतह करने वाली पहली दृष्टिबाधित महिला

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हिमालय की ऊंचाइयों को छूने के लिए केवल आंखों से देखना ही नहीं, दिल से देखना जरूरी होता है, यह साबित कर दिखाया है छोंजिन अंगमो ने। हिमाचल प्रदेश के किन्नौर जिले के सुदूर गांव चांगों की रहने वाली 28 वर्षीय छोंजिन अंगमो ने 19 मई 2025 को एक ऐतिहासिक उपलब्धि अपने नाम की। 

Climb Mount Everest 2025: हिमाचल प्रदेश के किन्नौर जिले के दुर्गम गांव चांगों की रहने वाली 28 वर्षीय छोंजिन अंगमो ने एक अभूतपूर्व उपलब्धि हासिल की है। उन्होंने 19 मई को माउंट एवरेस्ट को फतह कर न केवल भारत बल्कि दुनिया की पहली दृष्टिबाधित महिला बनकर इतिहास रच दिया है, जिन्होंने यह कारनामा किया। छोंजिन अंगमो ने मन की आंखों से एवरेस्ट तक की कठिन राह तय की, जो अद्वितीय साहस, दृढ़ निश्चय और आत्मविश्वास की मिसाल है। 

उन्होंने बताया कि माउंट एवरेस्ट पर चढ़ना उनका बचपन का सपना था, और यूनियन बैंक ऑफ इंडिया ने उनके इस सपने को साकार करने में अहम भूमिका निभाई।

आठ साल की उम्र में खोई दृष्टि, नहीं हारा सपना

छोंजिन अंगमो का जीवन साधारण नहीं रहा। महज आठ साल की उम्र में एक दवा के एलर्जी रिएक्शन के कारण उनकी आंखों की रोशनी हमेशा के लिए चली गई। यह एक बच्ची के लिए बड़ा झटका था, लेकिन उनकी इच्छाशक्ति कहीं अधिक मजबूत निकली। तीसरी कक्षा में पढ़ रही अंगमो ने तभी तय कर लिया था कि वो खुद को किसी भी कमी से पराजित नहीं होने देंगी।

छोंजिन अंगमो का माउंट एवरेस्ट चढ़ने का सपना वर्षों पुराना था, लेकिन इसे पूरा करने के लिए संसाधनों की कमी बड़ी बाधा थी। कई जगहों से सहायता मांगी, मगर असफल रहीं। अंततः यूनियन बैंक ऑफ इंडिया ने उनकी इस अभूतपूर्व यात्रा में आर्थिक सहयोग देकर उनका सपना साकार किया। वर्तमान में छोंजिन दिल्ली में इसी बैंक की एक शाखा में ग्राहक सेवा सहयोगी के रूप में कार्यरत हैं।

पर्वतारोहण का प्रशिक्षण और शुरुआती सफलता

साल 2016 में उन्होंने मनाली स्थित अटल बिहारी वाजपेयी पर्वतारोहण एवं स्कीइंग संस्थान से पर्वतारोहण का विधिवत प्रशिक्षण प्राप्त किया। प्रशिक्षण के दौरान उन्हें ‘सर्वश्रेष्ठ प्रशिक्षु’ का पुरस्कार मिला, जिससे उनका आत्मविश्वास और बढ़ा।इसके बाद छोंजिन ने लद्दाख की कई चोटियों पर सफल चढ़ाई की। वे ऑपरेशन ब्लू फ्रीडम के तहत सियाचिन ग्लेशियर के कठिनतम इलाकों में पर्वतारोहण कर चुकी हैं। 

इस मिशन में सशस्त्र बलों के पूर्व सैनिकों की एक विशेष टीम ‘टीम क्लॉ’ ने उनका मार्गदर्शन किया। सियाचिन में उन्होंने 15,632 फीट की ऊंचाई वाली कुमार पोस्ट और 19,717 फीट की एक अज्ञात चोटी पर विजय प्राप्त की।

शिक्षा और परिवार

छोंजिन अंगमो पांच भाई-बहनों में दूसरे नंबर पर हैं। उनके पिता अमर चंद और माता सोनम छोमो ने कभी उनका हौसला टूटने नहीं दिया। उन्होंने लेह स्थित महाबोधि स्कूल में दाखिला लिया, जहां दृष्टिबाधित बच्चों के लिए विशेष सुविधाएं थीं। इसके बाद उन्होंने चंडीगढ़ से 11वीं और 12वीं की पढ़ाई पूरी की और फिर दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रतिष्ठित मिरांडा हाउस कॉलेज से स्नातक किया।

उनकी उपलब्धियों को मान्यता देते हुए भारत सरकार ने उन्हें 2024 में ‘सर्वश्रेष्ठ दिव्यांगजन’ के राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित किया। यह सम्मान उनके साहस, संघर्ष और प्रेरणादायी जीवन की सरकारी मान्यता है।

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