सुप्रीम कोर्ट ने कोलकाता रेप और हत्या मामले में पीड़िता की तस्वीरें, नाम और पहचान उजागर करने वाली सोशल मीडिया पोस्ट्स को तुरंत हटाने की चेतावनी दी है। कोलकाता के आरजी कर मेडिकल कॉलेज और अस्पताल में हुए इस दर्दनाक हत्याकांड की शिकार डॉक्टर की तस्वीरें ऑनलाइन वायरल हो रही हैं, जिसके मद्देनजर अदालत ने यह आदेश जारी किया है।
Kolkata: कोलकाता के आरजी कर अस्पताल में हुए रेप-मर्डर की घटना पर सुप्रीम कोर्ट ने एक्शन मोड में कदम रखा है। चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की बेंच ने सुनवाई के दौरान कई अहम बातें कही, साथ ही उन्होंने लोगों को फटकार लगाई कि वे पीड़िता का नाम सोशल मीडिया पर फैला रहे हैं।
साल 2012 में दिल्ली गैंगरेप की पीड़िता को भी उसके असली नाम की बजाय 'निर्भया' के नाम से जाना गया था। आइए जानते हैं, अगर कोई रेप पीड़िता की पहचान सार्वजनिक कर दे। जजों की बेंच ने एक आदेश जारी करते हुए कहा कि सोशल और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया मृतका की पहचान उजागर कर रहे हैं, जो बिल्कुल गलत है।
पहचान से संबंधित विषय पर चर्चा
आपको बता दें कि भारतीय न्याय संहिता (BNS) का सेक्शन 72 इस विषय पर प्रकाश डालता है। यदि कोई व्यक्ति या समूह किसी ऐसे व्यक्ति की पहचान प्रकट करता है, उसकी तस्वीरें प्रकाशित करता है, या सोशल मीडिया एवं टीवी पर उसे प्रदर्शित करता है, जिसके साथ यौन शोषण हुआ है या जिसने यौन शोषण का आरोप लगाया है, तो ऐसे मामलों में पहचान उजागर करने वाले व्यक्ति को कुछ महीनों से लेकर दो साल की सजा हो सकती है। यह महत्वपूर्ण है कि जानें कि बीएनएस के सेक्शन 64 से लेकर 71 तक महिलाओं और बच्चों के साथ बलात्कार और यौन दुर्व्यवहार के मामलों पर चर्चा की गई है।
कानून के तहत छूट कब लागू होती है ?
जानकारी के अनुसार, बीएनएस के सेक्शन 72 में कई अपवाद शामिल हैं, जिनमें रेप पीड़िता की पहचान उजागर करने वालों को सजा नहीं दी जाती है। इस धारा का दूसरा हिस्सा बताता है कि यदि पीड़िता की मृत्यु हो जाती है, तो उसकी पहचान केवल तभी उजागर की जा सकती है जब ऐसा करना अत्यंत आवश्यक हो। इस मामले में निर्णय लेने का अधिकार केवल सेशन जज या उससे उच्च स्तर के अधिकारियों को ही है।
शीर्ष अदालत ने यह भी स्पष्ट किया था कि यदि रेप पीड़िता एक वयस्क है और अपनी इच्छा से, बिना किसी दबाव के, अपनी पहचान उजागर करने का निर्णय लेती है, तो इस पर किसी को भी आपत्ति नहीं होनी चाहिए। लेकिन यह तय करने का अधिकार केवल उसी पीड़िता का होता है। यूपी के हाथरस मामले में भी कुछ व्यक्तियों ने पीड़िता की पहचान को उजागर कर दिया था। उस समय भी कोर्ट ने स्पष्ट रूप से कहा था कि मृत्यु के बाद भी पीड़िता या उसके परिवार की गरिमा से समझौता नहीं किया जा सकता। यह केवल तभी संभव है, जब इससे न्याय मिलने में सहायता प्राप्त हो रही हो।
पहचान न बताने का निर्देश क्यों?
सुप्रीम कोर्ट ने कई मामलों का उल्लेख किया है, जहां पीड़िता के नाम का खुलासा होने के कारण उसे और उसके परिवार को कई परेशानियों का सामना करना पड़ा। पहचान का खुलासा होने के बाद, कई लोग असंवेदनशीलता से उनके जख्मों को कुरेदते हैं। इस स्थिति में, पीड़िता चाहकर भी सामान्य जीवन में लौटने में असमर्थ होती है। बलात्कार के बाद इस अतिरिक्त दुखदाई अनुभव से बचाने के लिए, अदालतें हमेशा पीड़िता की पहचान को गुप्त रखने की आवश्यकता को समझती रही हैं। यह प्रथा दुनिया के लगभग सभी देशों में अपनाई जाती है।
पुलिस के लिए दिशा-निर्देश
कोर्ट ने समय-समय पर पुलिस अधिकारियों को यह निर्देश दिया है कि वे मामले से संबंधित दस्तावेजों को अत्यंत सावधानी से संभालें। जिन रिपोर्टों में पीड़िता की पहचान उजागर होती है, उन्हें सील करके ही जांच एजेंसियों या अदालत तक पहुंचाना चाहिए, ताकि गोपनीयता बनी रहे। सुप्रीम कोर्ट ने बार-बार इस बात पर जोर दिया है कि ट्रायल कोर्ट और हाई कोर्ट को पीड़ितों की गोपनीयता का संरक्षण करना बेहद जरूरी है।
किशोरों और बलात्कार पीड़िताओं से संबंधित मामलों में उनकी पहचान छिपाने के लिए 'X' या इसी प्रकार के नामों का प्रयोग किया जाता है। बीएनएस का सेक्शन 72 पहले आईपीसी के सेक्शन 228 ए के अंतर्गत आता था। इस धार में बलात्कार पीड़िता की पहचान या ऐसा कोई भी संकेत, जो उसकी पहचान को उजागर कर सकता हो, उसे प्रकाशित नहीं किया जा सकता।
क्या अदालतों को पहचान उजागर करने की अनुमति है?
अदालतों पर किसी प्रकार की पाबंदी नहीं है, लेकिन इसके बावजूद सर्वोच्च न्यायालय इस विषय पर लगातार चर्चा करती रही है। उसने कर्नाटक और राजस्थान सहित कई मामलों में आपत्ति जताई है, जहां अदालतों ने सुनवाई के दौरान पीड़िता की पहचान को सार्वजनिक कर दिया। जुलाई 2021 में एक आदेश में, सुप्रीम कोर्ट ने ट्रायल कोर्ट के जजों को निर्देश दिया था कि वे यौन अपराधों से संबंधित मामलों में पीड़ितों की पहचान का खुलासा करने से बचें।