मोदी सरकार की कैबिनेट ने "एक देश, एक चुनाव" की सिफारिश को मंजूरी दे दी है, जिससे लोकसभा और विधानसभा चुनावों को एक साथ कराने का प्रस्ताव आगे बढ़ा है। हालांकि, इस पर विपक्षी दलों ने सवाल उठाए हैं, उनका कहना है कि एक साथ चुनाव कराना व्यावहारिक नहीं है और यह जमीनी स्तर पर चुनौतीपूर्ण हो सकता हैं।
इंडिया: सरकार ने "एक देश, एक चुनाव" योजना को लेकर एक बड़ा कदम उठाते हुए, बुधवार को एक उच्च स्तरीय समिति की सिफारिशों को स्वीकार कर लिया है, जिसके तहत लोकसभा, राज्य विधानसभाओं और स्थानीय निकायों के चुनाव एक साथ कराने की योजना बनाई जा रही है। यह फैसला व्यापक आम सहमति बनाने की कवायद के बाद आया है। गृह मंत्री अमित शाह ने इस कदम की सराहना करते हुए कहा कि यह देश में ऐतिहासिक चुनाव सुधार की दिशा में एक महत्वपूर्ण प्रयास हैं।
हालांकि, कई विपक्षी दल इस योजना के खिलाफ हैं और इसे व्यावहारिक रूप से मुश्किल मानते हैं। उनका कहना है कि इतने बड़े पैमाने पर एक साथ चुनाव कराना चुनौतीपूर्ण हो सकता है। दूसरी ओर, सरकार का दावा है कि कई राजनीतिक दल इस विचार का समर्थन कर रहे हैं और जनता की ओर से मिल रहे व्यापक समर्थन के चलते विपक्षी दल भी अपने रुख में बदलाव का दबाव महसूस कर सकते हैं।
सूचना एवं प्रसारण मंत्री ने क्या कहा?
सूचना एवं प्रसारण मंत्री अश्विनी वैष्णव ने "एक देश, एक चुनाव" प्रस्ताव को केंद्रीय मंत्रिमंडल से मिली मंजूरी की जानकारी देते हुए कहा कि इस योजना को आगे बढ़ाने के लिए पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता वाली समिति की सिफारिशों के आधार पर एक क्रियान्वयन समूह का गठन किया जाएगा। अगले कुछ महीनों में इस विषय पर देशभर के विभिन्न मंचों पर विस्तृत चर्चा की जाएगी, ताकि व्यापक आम सहमति बनाई जा सके।
वैष्णव ने कहा, "हमारी सरकार लोकतंत्र और देश को दीर्घकालिक रूप से प्रभावित करने वाले मुद्दों पर आम सहमति बनाने में विश्वास करती है। यह एक ऐसा विषय है जो देश को मजबूत करेगा।" विपक्षी दलों की प्रतिक्रिया को लेकर पूछे गए एक सवाल पर मंत्री ने कहा कि "एक देश, एक चुनाव" के बारे में विपक्ष पर आंतरिक दबाव हो सकता है, क्योंकि परामर्श प्रक्रिया के दौरान 80 प्रतिशत से अधिक उत्तरदाताओं, विशेष रूप से युवाओं, ने इस विचार का समर्थन किया हैं।
जदयू ने किया केबिनेट के फैसले का स्वागत
जनता दल (यूनाइटेड) ने "एक देश, एक चुनाव" के प्रस्ताव का स्वागत करते हुए इसे देश के लिए महत्वपूर्ण कदम बताया है। जद (यू) के राष्ट्रीय प्रवक्ता राजीव रंजन प्रसाद ने कहा कि इस पहल से बार-बार चुनाव कराने की समस्या से निजात मिलेगी, सरकारी खजाने पर बोझ कम होगा और नीतियों में निरंतरता बनी रहेगी। उन्होंने इस निर्णय को देश के दीर्घकालिक लाभ के रूप में देखा।
वहीं, कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने इस प्रस्ताव की आलोचना करते हुए इसे व्यावहारिक रूप से असंभव बताया। उन्होंने कहा कि भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) इस विचार के माध्यम से विधानसभा चुनावों में असली मुद्दों से ध्यान भटकाने का प्रयास कर रही है। खरगे ने संवाददाता सम्मेलन में कहा, "यह योजना व्यावहारिक नहीं है और इसे लागू करना मुश्किल होगा।
2029 के बाद हो सकता है "एक देश, एक चुनाव"
"एक देश, एक चुनाव" की योजना को लागू करने के लिए कई संवैधानिक संशोधनों की आवश्यकता होगी, जिन्हें संसद में पारित करना जरूरी होगा। इनमें एक एकीकृत मतदाता सूची और एकल मतदाता पहचान पत्र से संबंधित संशोधन शामिल हैं, जिन्हें आधे से अधिक राज्यों द्वारा अनुसमर्थित किए जाने की भी जरूरत होगी। इसके अलावा, विधि आयोग भी जल्द ही एक साथ चुनाव कराने पर अपनी रिपोर्ट पेश कर सकता है, जिसमें यह प्रस्ताव रखा जा सकता है कि 2029 से लोकसभा, राज्य विधानसभाओं और स्थानीय निकायों (नगर पालिकाओं और पंचायतों) के चुनाव एक साथ कराए जाएं।
सूत्रों के अनुसार, विधि आयोग त्रिशंकु सदन जैसी स्थितियों में एकता सरकार बनाने के प्रावधान की भी सिफारिश कर सकता है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी लंबे समय से इस विचार के समर्थक रहे हैं और यह मुद्दा भाजपा के चुनावी घोषणापत्र में भी शामिल रहा है। इस कदम का उद्देश्य चुनावी प्रक्रिया को सरल और सुचारू बनाना, प्रशासनिक खर्चों में कमी लाना और नीतिगत निरंतरता बनाए रखना हैं।
देश में 1951 से 1967 के बीच हुए एक साथ चुनाव
जानकारी के मुताबिक साल 1951 से 1967 तक देश में लोकसभा और राज्यों की विधानसभाओं के चुनाव एक साथ कराए जाते थे। लेकिन बाद में मध्यावधि चुनावों और विभिन्न राजनीतिक घटनाओं के कारण यह प्रक्रिया बाधित हो गई, और चुनाव अलग-अलग समय पर होने लगे। अब "एक देश, एक चुनाव" की योजना को फिर से लागू करने के लिए काफी जटिल प्रयासों की आवश्यकता होगी, जिसमें कुछ राज्यों के चुनावों को पहले कराना या कुछ को विलंबित करना शामिल हो सकता हैं।
इस साल मई-जून में लोकसभा चुनाव के साथ ओडिशा, आंध्र प्रदेश, सिक्किम और अरुणाचल प्रदेश में विधानसभा चुनाव भी कराए गए थे। वहीं, जम्मू-कश्मीर और हरियाणा में विधानसभा चुनावों की प्रक्रिया जारी है और महाराष्ट्र तथा झारखंड में साल के अंत तक चुनाव होने हैं। इसके अलावा, दिल्ली और बिहार में 2025 में विधानसभा चुनाव प्रस्तावित हैं। इस स्थिति में सभी चुनावों को एक साथ कराने के लिए समन्वित योजना और समयबद्ध रणनीति की आवश्यकता होगी।